प्रकृति का शृंगार पर्व बसंत पंचमी

जीवन में कितने भी उतार-चढ़ाव आएं पर जवानी का बसंत सबसे प्यारा होता है, आदमी अपनी आयु के अच्छे पलों को वर्षों में बताने के बजाय बसंतों में बताकर खुश होता है । बसंत में भी बसंत पंचमी का जो महत्व है, वह अन्य तिथियों का नहीं। आइए जानें आखिर है क्या बसंत पंचमी? बसंत यानि रंग बहार बसंत पंचमी है - माघ मास के शुक्लपक्ष का पाचवां दिन । बसंत पंचमी वह त्यौहार है, जिसे  शास्त्रों में ऋषि पंचमी, तो पुराणों-शास्त्रों में इसे अलग ढंग से चित्रित किया गया है। बसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा खास तौर पर की जाती है, बसंत का आम मतलब व पहचान है कि स्त्रियां पीले वस्त्र धारण करती हैं तो स्वयमेव फूलों पर बहार आ जाती है। खेतों में सरसों का सोना चमकने लगता है , जौ और गेहूं  की बालियां खिलने लगतीं हैं, आमों के पेड़ों पर बौर आ जाता है और हर तरफ  रंग-बिरंगी तितलियां मंडराने लगतीं हैं। प्रकृति हो जाती प्यारी बसंत,  बेशक ऋतुराज यानि सर्वश्रेष्ठ ऋतु है। इस समय पंच-तत्व-जल, वायु, धरती, आकाश और अग्नि अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप में प्रकट होते हैं। अपना मोहक रूप दिखाते हैं। आकाश स्वच्छ वायु सुहावनी, अग्नि (सूर्य) रुचिकर तो जल पीयूष के समान सुखदाता और धरती तो मानों साकार सौंदर्य का दर्शन कराने वाली प्रतीत होती है। ठंड से ठिठुरे विहंग अब उड़ने का बहाना ढूंढते हैं तो किसान लहलहाती जौ की बालियों और सरसों के फूलों को देखकर नहीं अघाता। धनी जहां प्रकृति के नव-सौंदर्य को देखने की लालसा प्रकट करने लगते हैं तो निर्धन शिशिर की प्रताड़ना से मुक्त होने के सुख की अनुभूति करने लगते हैं। बसंत में प्रकृति प्यारी व उन्मादी  हो जाती है। उसका पुनर्जन्म जो हो जाता है। श्रावण की पनपी हरियाली शरद के बाद हेमन्त और शिशिर में वृद्धा के समान हो जाती है, तब बसंत उसका सौन्दर्य लौटा देता है। नवगात, नवपल्लव, नवकुसुम के साथ नवगंध का उपहार देकर विलक्षण बना देता है। प्रणो देवी सरस्वती विद्वान बसन्त पंचमी के दिन को सरस्वती देवी के जन्मोत्सव के रूप में  मनाते हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से खुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि बसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी और यूं भारत के कई हिस्सों में बसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी। पीले कपड़े, पीला प्रसाद पीला  रंग हिन्दुओं का शुभ रंग है। बसंत पंचमी पर न केवल पीले रंग के वस्त्र पहने जाते हैं, अपितु खाद्य पदार्थों में भी पीले चावल, पीले लड्डू व केसर युक्त खीर का उपयोग किया जाता है, जिसे बच्चे तथा बड़े-बूढ़े सभी पसंद करते हैं। अत: इस दिन सब कुछ पीला दिखाई देता है और प्रकृति खेतों को पीले-सुनहरे रंग से सजा देती है, तो दूसरी ओर घर-घर में लोगों के परिधान भी पीले दृष्टिगोचर होते हैं। नवयुवक-युवती एक -दूसरे के माथे पर चंदन या हल्दी का तिलक लगाकर पूजा समारोह आरम्भ करते हैं। तब सभी लोग अपने दाएं हाथ की तीसरी अंगुली में हल्दी, चंदन व रोली के मिश्रण को मां सरस्वती के चरणों एवं मस्तक पर लगाते हैं, और जलार्पण करते हैं। धान व फलों को मूर्तियों पर बरसाया जाता है। सगे-संबंधियों से भेंट कर आशीर्वाद लेना इस दिन अच्छा मानते हैं। बसंत पंचमी के दिन सरस्वती जी को पीला भोग लगाया जाता है और घरों में भोजन भी पीला ही बनाया जाता है। इस दिन विशेषकर मीठा चावल बनाया जाता है। जिसमें बादाम, किसमिस, काजू आदि डालकर खीर आदि विशेष व्यंजन बनाये जाते हैं। इसे दोपहर में परोसा जाता है। घर के सदस्यों व आगंतुकों में पीली बर्फी बांटी जाती है। केसरयुक्त खीर सभी को प्रिय लगती है। बसंत पंचमी परिवर्तन व पतंग बसंत पंचमी अपने साथ कई परिवर्तन लाती है। इस दिन से शरद ऋतु की विदाई के साथ पेड़-पौधों और प्राणियों में नवजीवन का संचार हो जाता है, आयुर्वेद में बसंत पंचमी को स्वास्थ्य के लिए बेहतर बताया गया है। बसंत ऋतु में कई तरह के शारीरिक परिवर्तन देखने को मिलते हैं। इन परिवर्तनों का उल्लेख आयुर्वेद में मिलता है। साहित्यकार इस दिन नई रचना लिखना शुभ मानते हैं। यूं तो पतंगबाजी का बसंत से कोई सीधा संबंध नहीं है। पतंग उड़ाने का रिवाज हज़ारों साल पहले चीन में शुरू हुआ और फिर कोरिया और जापान के रास्ते होता हुआ भारत पहुंचा। बच्चे व किशोर बसंत पंचमी का बड़ी उत्सुकता से इंतजार इसलिए करते हैं क्योंकि , उन्हें पतंग जो उड़ानी होती है। पतंगबाजी की जंग में वे सभी घर की छतों या खुले स्थानों पर एकत्रित होते हैं, कोशिश होती है, प्रतिस्पर्धी की डोर को काटने की,  जब उसकी पतंग कटती है, तो माहौल ‘वो मारा, वो काटा’ के शोर से गुंजायमान हो उठता है।

- 215, पुष्परचना कुंज, गोबिन्दनगर, रुड़की