सत्गुरु राम सिंह जी के आन्दोलन को समर्पित गीत

रख के जान हथेली पर कूके सरदार चले।
गऊ माता के सच्चे सेवक सू-ए-दार चले।
नहीं ये चलने देंगे अंग्रेज़ों के बूचड़खाने।
मासूमों के सिर न कटेंगे अब जाने अनजाने।
गऊ माता के कातिल हैं, इनके जाने-पहचाने
हर कातिल को सज़ा मिलेगी यह हैं मन में ठाने।
भारत की इज्ज़त गैरत के पहरेदार चले।
गऊ माता के सच्चे सेवक सू-ए-दार चले।
एक भी कूका नहीं जो बाणी से मसरूर नहीं।
इनको अपनी देश-भक्ति पर ज़रा गरूर नहीं।
टूटेगी पांवों की बेड़ी वो दिन दूर नहीं।
इनको अंग्रेज़ों की गुलामी तो मन्जूर नहीं।
गुरु गोबिन्द सिंह के शब्दों में 
दे के ललकार चले।
गऊ माता के सच्चे सेवक सू-ए-दार चले।
ये अंग्रेज़ों की नहरों से नहीं पियेंगे पानी।
सत्गुरु राम सिंह जी हैं इस आंदोलन के बानी।
परिवर्तन का नारा भी है, अपने में लासानी।
इनके पास हथियार नया है 
सिविल ऩाफरमानी।
इसी से अपनी धरती मां का कज़र् उतार चले।
गऊ माता के सच्चे सेवक सू-ए-दार चले।
लगने नहीं ये देंगे भारत के होंठों पर ताला।
इनकी आंखें बांट रही हैं, 
हर पल नया उजाला।
मन में है ‘नानक’ की बाणी 
और हाथों में माला।
सच्चे का मुंह चांद का टुकड़ा, 
झूठे का मुंह काला।
मज़लूमों की जीत हुई और ज़ालिम हार चले।
गऊ माता के सच्चे सेवक सू-ए-दार चले।

(सू-ए-दार = फांसी की ओर)