दहेज प्रथा को मिटाना होगा


विवाह के अवसर पर लड़की के माता-पिता और रिश्तेदार कन्या को उपहार स्वरूप कुछ दहेज़ देते थे। युग की अवस्था के अनुसार दहेज का स्वरूप भी बदलता गया। आज के युग में स्कूटर, टेलीविज़न, फ्रिज़ आदि की मांग होने लगी है। आधुनिक अवस्था में दहेज एक सामाजिक लानत की शक्ल अख्तियार कर गया है। 
कन्या का जन्म पुरुष प्रधान समाज में सिर्फ और सिर्फ मानसिक तनाव और दु:ख का कारण ही माना जाता रहा है। उसके जन्म से ही उसे पराया धन कहा जाता है।  दहेज आज फैशन का रूप धारण कर भयानक दानव बन निर्दोष लड़कियों को निगल रहा है। अगर वर तरफ की मांग पूरी नहीं होती तो लड़कियों को मारने व जलाने से भी गुरेज नहीं करते और इसके परिणामस्वरूप कई घर उजड़ने के कगार पर पहुंच गए हैं। समाज के लोग मिल-जुल कर दहेज देने वालों और लेने वालों का सामाजिक बहिष्कार करें तथा सरकार उन्हें कठोरतम  दण्ड दे। 
—राम प्रकाश शर्मा