मुमताज़ महल से ताज़महल तक

जैसे-जैसे समय गुजर गया, टैक्नालॉजी भी समय के दौर के साथ अपने शिखर पर पहुंचती गई। हर क्षेत्र में नई टैक्नालॉजी पुरानी को फेल करती गई, लेकिन अगर पुराने समय की कुछ इमारतों पर नज़र करें तो उन पुरातन इमारतों में प्रयोग की गई तकनीक या टैक्नालॉजी आज भी आधुनिक टैक्नालॉजी के लिए भी चुनौती बनी हुई है। ऐसी ही बेमिसाल कला का नमूना है ताज़महल, जोकि दुनिया की अद्भुत इमारतों में से एक है, जिसकी सुंदरता को देखने के लिए प्रतिदिन ही पूरी दुनिया में से हज़ारों की गिनती में लोग पहुंचते हैं। ताज़महल आगरा में स्थित एक मकबरा है, जिसमें मुगल काल के महान बादशाह शाहजहां और उसकी सबसे प्यारी ब़ेगम मुमताज़ महल की कब्र है। आधुनिक टैक्नालॉजी के विशेषज्ञों के लिए ताज़महल आज भी मुगल काल के इंजीनियर का एक महान नमूना बना हुआ है। आज के विज्ञानिक और टैक्नालॉजी के जमाने में भी ताज़महल का नक्शा और इसकी सुंदरता पर मज़बूती के लिए प्रयोग की गई सामग्री और सामान एक मिसाल बना हुआ है। अगर ताज़महल के डिज़ाइन की बात की जाए तो इसके लिए मुगल काल के पहले बने कई और मकबरों की सहायता ली गई है। ताज़ की इमारत का अगर बारीकी से अध्ययन किया जाए तो पता लगता है कि उस समय के राजमिस्त्री और कई कारीगरों की ओर से इमारत बनाने के समय हर एक छोटी से छोटी बात और समस्याओं को पहले ही भाप कर ताज़ की इमारत को बहुत ही ध्यानपूर्वक रखा गया है। इतिहासकारों के मुताबिक इसके बाहरी ओर बनीं चारों मीनारें एक-दूसरे से विपरीत दिशा में झुकी हुई हैं, लेकिन नज़र बिल्कुल सीधी आती है, यह इसलिए हैं ताकि भूकम्प आने पर यह ताज़महल के ऊपर गिरने की बजाय बाहर की तरफ गिरें, ताकि जो अंदरूनी इमारत को कोई नुक्सान न हो। ताज़महल का सबसे कमाल का हिस्सा इसका गुबंद है, जोकि 40 मीटर ऊंचा और 4 मीटर चौड़ा है, जिसने अपने वज़न को बिना किसी सहारे से खुद उठाया हुआ है, जो आज कई सौ वर्ष बाद भी कलाकारी और मज़बूती की तस्वीर पेश कर रहा है। ताज़महल की बाहरी सुंदरता से अलावा बहुत ही कम लोग हैं, जो इसके बनने का इतिहास जानते हैं कि ताज़महल कौन से हालातों में क्यों और कैसे बना और इस मकबरे को बनकर  तैयार होने तक कितना समय लगा और इसको बनाने में शाहजहां और कारीगरों को कौन सी समस्याओं का सामना शाहजहां और कारीगरों को  करना पड़ा। उस काल में मुगलों के और भी कई मकबरे पहले मौजूद थे, लेकिन ताज़महल ऐसा अद्भुत मकबरा बनने का असली कारण मुमताज महल थी। इतिहासकारों के अनुसार मुगलों की आमद की शुरुआत चंगेज़ खान से हुई थी। 15वीं शताब्दी में बादशाह जहांगीर के समय मुगलकाल अपने यौवन पर था। शाहजहां का जन्म 1592 ई. को लाहौर में हुआ, जोकि अब पाकिस्तान में है और शाहजहां का पूरा नाम शाह-अब-उद-दीन मोहम्मद था। छोटी आयु में ही भाव 1612 ई. में उसका विवाह मुमताज महल से हुआ था। मुमताज महल का जन्म भी 1592 ई. में हुआ था, जिसका असली नाम अर्जुमंद बानो था। 1617 ई. में जहांगीर की मृत्यु हो गई। मौके के हालात संभालते हुए राजगद्दी की लड़ाई में शाहजहां ने अपने भाइयों का कत्ल करके 1628 ई. में आगरा के लालकिले में तख्त पर बैठा। बहुत ही कम समय में शाहजहां ने अपने राज्य को ऊंचाइयों पर ले आया था। उसकी सारी ब़ेगमों में से मुमताज़ महल उसकी सबसे ज्यादा प्यारी ब़ेगम थी। मुमताज महल शाहजहां की ब़ेगम होने के साथ-साथ उसकी सलाहकार भी थी। जिस कारण वह हर समय शाहजहां के साथ ही रहती थी, मुख्य फैसले मुमताज की सलाह से ही लिए जाते थे। 1629 ई. में शाहजहां के राज्य में दक्षिणी भाग के ऊपर बगावत शुरू हो गई और जंग शुरू हो गई। मुमताज़ महल इस सारी जंग के समय में शाहजहां के साथ ही थी। शाहजहां की सेना की जीत चल ही रही थी कि एक बड़ी घटना के कारण रुक गई, क्योंकि जंग के दौरान मुमताज़ महल गर्भवती हो गई और उसके 14वें बच्चे के जन्म के समय मुश्किलें आने के कारण हालात नाजुक हो गए थे। आखिर जून 1631 ई. में एक बच्ची को जन्म देने के बाद मुमताज़ महल की बुरहानपुर में मृत्यु हो गई। उस बच्ची का नाम गोहारा ब़ेगम रखा गया था। इतिहासकारों की ओर से कहा जाता है कि मुमताज़ ने मरने से पहले शाहजहां को उसकी ऐसी कब्र बनाने की इच्छा प्रकट की थी जो पूरी दुनिया में सबसे अद्भुत हो। मुमताज़ की मृत्यु से 6 महीने बाद ताज़महल का काम शुरू हो गया था। यह प्रोजैक्ट उस काल का सबसे बड़ा और खूबसूरत प्रोजैक्ट था और बहुत महंगा साबित हुआ। लगभग 22,000 से ज्यादा मज़दूर, मिस्त्री और कला शिल्प के विशेषज्ञ और कई कारीगरों को दुनिया भर से ढूंढ कर लाया गया और ताज़ की इमारत का काम आरम्भ हो गया। इस काम में बहुत ज्यादा पैसा लग रहा था। दुनिया भर से सबसे महंगा सफेद संगमरमर मकराने राजस्थान से बहुत ही मुश्किलों से मंगवा कर ताज़महल के ढांचे को तैयार किया गया और इसके अलावा ईरान, बगदाद, अफगानिस्तान और कई देश-विदेशों से भी इसके लिए बहुमूल्य सामग्री मंगवाई गई। दीवारों और पत्थरों में की गई मीनाकारी उस समय के मिस्त्रयों और मज़दूरों की कला का प्रत्यक्ष उदाहरण है। इमारत के काम में इन्सानों के साथ-साथ जानवरों की भी जी-तोड़ लगी मेहनत आज भी मुंह से बोल रही है। बहुत ज्यादा हाथी-घोड़े आवमगन के लिए प्रयोग में लाए गए। राजनीतिक और कई अन्य मुश्किलों के बाद 12 वर्ष का समय लगने के बाद 1643 ई. में ताज़महल बनकर तैयार हो गया था, परन्तु इसका शेष हिस्सा बनने में और 10 वर्ष लग गए और आखिर में 1653 ई. में पूरा ताज़महल बनकर तैयार हुआ। ताज़महल का अंदरूनी हिस्सा कुरान, शरीफ की आठ आदतों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। इसके अंदर आठ चैम्बर बनाए गए हैं, जिसमें मुमताज़ की कब्र है। इसकी खूबसूरती का सारा श्रेय शाहजहां और मुमताज़ महल को जाता है। लेकिन किसी ने भी उन कारीगरों के बारे कभी नहीं सोचा जिन्होंने इतनी मुश्किलों के बावजूद अपने हुनर की पेशकारी करके एक मकबरे को दुनिया की अद्भुत इमारत में तबदील करने के बाद खुद भी इस इमारत की सुंदरता में अमर हो गए। 
शाहजहां का शासन 30 साल तक कायम रहा। शाहजहां और मुमताज़ के बेटे औरंगजेब ने 1658 ई. में अपने पिता शाहजहां को गद्दी से उतार कर आगरे के किले में कैद कर दिया था। चोटी के बादशाह ने कैदी बनकर अपने आखिरी दिन जेल में बिताये और उसको कभी भी दोबारा मौत तक कैद से बाहर नहीं निकाला गया। कैद में शाहजहां को खाने-पीने के लिए नाममात्र भोजन ही दिया जाता था। शाहजहां पर बहुत ज्यादा पाबंदियां लगाई गई थीं। बस एक नौकर उसको प्रतिदिन उसकी उपलब्धियों के बारे पढ़कर सुनाता था और उसकी बीते समय की यादों को ताज़ा करता था। शाहजहां ने अपने काल में बढ़िया शासन प्रबंध की मिसाल कायम की थी। लेकिन जैसे कहा जाता है कि हद से ज्यादा किया प्यार और हद से ज्यादा की गई नफरत एक दिन पतन का कारण बन जाती है। 1666 ई. में 74 वर्ष की आयु में शाहजहां की आगरे के किले में मृत्यु हो गई और उसको बाद में ताज़महल में मुमताज़ महल के पास दफना दिया गया। परन्तु यदि आज भी उस समय का अनुमान लगाकर ताज़महल का अध्ययन किया जाता है तो हमें मुगलकाल के महान इंजीनियरिंग एक बार फिर सोचने को मजबूर कर देती है कि आधुनिक साधनों के बिना ऐसी अद्भुत इमारत कैसे खड़ी की गई। जो आज भी सदियां बीत जाने के बाद भी अपनी सुंदरता के लिए जानी जाती है। आज पर्यावरण में बढ़ रहे प्रदूषण के कारण इमारत पर लगे सफेद संगमरमर को काफी नुक्सान हो रहा है, जिसके कारण देश की सरकार की ओर से इमारत की सुंदरता कायम रखने के लिए काफी उच्च प्रबंध किए गए हैं। इसके बाद आतंकवादियों के सम्भावित हमलों से बचाने के लिए इमारत के सुरक्षा प्रबंधों में भी काफी सख्ती की गई है। ऐसी पुरानी इमारतों या कई अन्य चीज़ें देखकर तो एक बार सब को चुनना मुश्किल हो जाता है कि आज की आधुनिक टैक्नालॉजी को बढ़िया कहा जाए या फिर पुरातन समय की टैक्नालॉजी को जो आज की टैक्नालॉजी के लिए एक उदाहरण बनीं हुई है।