रोबोट अब कहानी नहीं, हकीकत हैं

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने तीन साल पहले ही एक रिपोर्ट बनाई थी जिसमें कहा गया था कि बेरोजगारों के लिए एक बड़ा संकट रोबोट बनने वाले हैं क्योंकि उसके अध्ययन आकलन के मुताबिक 2030 तक वैश्विक स्तर पर 80 करोड़ नौकरियां इंसानी हाथों से निकलकर रोबोटों के कब्जे में जाने वाली हैं। संकट सिर्फ  इस संख्या भर का नहीं है, इससे भी बड़ा संकट परफोर्मेंस का है। रोबोट इंसानों से ज्यादा ही काम नहीं करेंगे बल्कि इंसानों के मुकाबले कहीं ज्यादा सफाई से काम करेंगे। मतलब मुकाबला मानव और मशीन के बीच है। जाहिर है भावनात्मक सन्दर्भों के इतर मशीन आमतौर पर इंसान पर भारी ही पड़ती है, खासकर मशीनी अंदाज वाले कामकाज के मामले में। शायद इसीलिए इंसानी जिंदगी में रोबोटों के इस शुरू हो चुके दखल को चौथी औद्योगिक क्रांन्ति का दर्जा दिया गया है। बहरहाल आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस,रोबोटिक्स और बायोटेक्नोलॉजी के मेल से जो चौथी औद्योगिक क्रांति 21वीं सदी के इस दूसरे दशक के शुरू में ही शुरू हो चुकी थी, अब हर गुजरते साल के साथ वह तीखी होती जायेगी। इसी के साथ ही शुरू हो चुका है यह विमर्श कि आखिर यह मौजूदा दुनिया से अपनी कीमत क्या वसूलेगी ? माना जा रहा है कि शुरू में तो यह इंसानों यानी कामगारों की ही बलि लेगी। बाद में इसकी मांगी जाने वाली बलियों की लालची सूची बढ़ती ही जायेगी जो प्रसिद्ध उद्योगपति जैक मा के मुताबिक तीसरे विश्वयुद्ध तक पहुंचेगी और महान भाषाविद् नोमचोमस्की के मुताबिक भाषाओं के अंत तक पहुंच सकती है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम नई पुरानी फ्यूचर ऑफ  जॉब्स’ रिपोर्टें जो भी कुछ बता रही हैं वह भले अभी धुंधलके का पाठ हों लेकिन ये रिपोर्टें राहत कम देती हैं, डराती ज्यादा हैं। साल 2016 से अब तक करीब 5 लाख लोगों के हाथों से रोबोट काम छीन चुके हैं। इससे पूरी तस्वीर भले न साफ  होती हो लेकिन यह तो साफ  होता ही है कि डर हवा हवाई नहीं है। आखिर कौन-कौन से क्षेत्र सबसे पहले इस जंग की चपेट में आयेंगे ? जवाब बहुत लंबा है बस इतना समझ लीजिये कि शुरू में करीब 800 क्षेत्रों में से नौकरियां जायेंगी। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने अपनी शुरुआती रिपोर्ट में इतने ही  क्षेत्रों को चिन्हित किया है लेकिन सब कुछ के बाद भी यह अभी एक अनुमान ही है इसलिए न तो 801वां क्षेत्र यह समझे कि उसका इस लड़ाई से कुछ मतलब नहीं है और न ही 799वां यह मान ले कि उसका कोई भविष्य ही नहीं है। विज्ञान और तकनीकी के अनुमान भी आखिर अनुमान ही होते हैं। शायद यह बात बहुतों को न पता हो कि अनुमान सबसे ज्यादा विज्ञान के क्षेत्र में ही फरल होते हैं थोड़े बहुत नहीं बल्कि 90 प्रतिशत फीसदी से भी ज्यादा। साल 1990 के बाद से यदि अन्तरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में की गयी भविष्यवाणियां 10 प्रतिशत भी सही होतीं तो आज धरती और अन्तरिक्ष के बीच आवाजाही इतनी ही आसान होनी चाहिए थी जैसे दिल्ली और मुंबई के बीच। सैकड़ों फैक्ट्रियों और दर्जनों बस्तियां न भी होतीं तो सैकड़ों की तादाद में प्रयोगशालाएं और उच्च शैक्षिक संस्थान तो होने ही चाहिए थे। मगर हकीकत क्या है यह किसी को अलग से बताने की ज़रूरत नहीं है। इसलिए सब कुछ अनुमानित भविष्यवाणियों के जैसे हो जाए कतई ज़रूरी नहीं है। लेकिन ये बस अनुमान हैं ऐसा कुछ नहीं होने जा रहा इस तरह का आत्मविश्वास भी बहुत आत्मघाती होगा। मैन्युफैक्चरिंग, प्रोडक्शन से लेकर ऑफि स के काम तक रोबोट के हिस्से निकट भविष्य में जायेंगे, यह तय है। कोई ऐसा क्षेत्र नहीं बचेगा, जहां ऑटोमेशन न हो। इसलिए वर्ल्ड इकॉनॉमी में 2020 के बाद एक पुरुष नौकरी पाएगा तो तीन पुरुष अपनी नौकरी खोएंगे। जबकि महिलाओं के मामले में यह अनुपात 1:5 का होगा। कहने का मतलब एक महिला नौकरी पाएगी और 5 महिलाओं की नौकरी जायेगी। सबसे ज्यादा यह गणित कंप्यूटर, इंजीनियरिंग, आर्किटेक्चर और मैथ्मेटिकल इंडस्ट्री सच होता दिखेगा। लेकिन यह मान लेना कि रोबोट बस एल्गोरिद्म जुबान वाले क्षेत्रों तक ही सीमित रहेंगे,जोखिम भरे निष्कर्ष में दांव लगाना होगा। आज नहीं तो कल रोबोट स्वविवेक के क्षेत्र में भी कदम रखेंगे। फंक्शन फीड जैसे सरल क्षेत्रों में ये हमेशा नहीं रहेंगे। सोफि या जैसा प्यारा या प्यारी? रोबोट बनाकर तहलका मचाने वाले वैज्ञानिक डेविड हासन ने तो यहां तक दावा किया है कि सन् 2045 तक रोबोट अपने लिए शादी की मांग भी करेंगे। कहते हैं हर ताकतवर पहले कमज़ोर का सफाया करता है।  इंसान की यह खामी रोबोट में भी देखी जा रही है। ये उन क्षेत्रों को पहले निशाना बना रहा है जहां महिलाओं का वर्चस्व है-मसलन लॉजिस्टिक्स, हेल्थ सेक्टर, आर्ट और ऑफि स में की जाने वाली 9-5 वाली नौकरियां। कहने का मतलब अपने शुरुआती हमले में रोबोट पुरुषों से ज्यादा महिलाओं को अपना शिकार बना रहा है। ‘द एज ऑफ लिविंग इंटेलीजेंट सिस्टम एंड एड्रॉयड सोसायटी’ नाम से छपे अपने एक लेख में डॉ. डेविड हांसन ने लिखा है कि बहुत जल्द एंड्रॉयड आधारित रोबोट इंसान से शादी करने के लायक भी हो जाएंगे। यही नहीं तब उनमें भी इंसानों वाली कमियां यानी जर, जोरू और जमीन का अंतहीन लालच पनप जाएगा क्योंकि इसी अध्ययन अनुमान में कहा गया है कि साल 2045 तक ऐसे रोबोट भी बाजार में होंगे जो जमीन की खरीद-फ रोख्त में रुचि रखने के साथ ही वोट डालने के लिए भी उत्सुक होंगे। कुल मिलाकर रोबोटों की कहानी अब कागज में उतारा जाने वाला कोई फि क्शन नहीं रहा बल्कि अब ये रोजमर्रा की जटिल जिंदगी की हकीकत बनने वाले हैं।