डलहौजी की बर्फ बारी 

उत्तराखण्ड और देवभूमि हिमाचल सहित कई पहाड़ी सथानों पर हुई बर्फ बारी ने पहाड़ों को अपनी सफेद चादर के नीचे ढक लिया था। सुबह-सुबह मैंने टीवी देखना बन्द किया और खिड़की खोल बाहर देखा और हो रही बर्फ बारी का नजारा देख स्माइल को आवाज दी।  स्माइल जब पांचवीं कक्षा से अच्छे अंक प्राप्त करके पास हुआ तो मैंने उससे वादा किया था कि उसे सर्दियों की छुट्टियों में बर्फ बारी दिखाने लेकर जाऊंगा।मैं टीवी की खबरों पर नजर रख रहा था। मनाली में एक फीट से ज्यादा बर्फ  पड़ चुकी थी। रोहतांग पास बन्द  हो चुका था। राजधानी शिमला सहित पूरे ऊपर के इलाकों में भारी बर्फ बारी शुरू हो चुकी थी। उत्तराखण्ड में चारों धाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमनोत्री भी बर्फ  से ढके गए थे। केदारनाथ में दो फीट से अधिक बर्फ  पड़ चुकी थी। गुलमर्ग, सोनमर्ग और पहलगाम की तरह शिमला, मनाली भी हमारी पहुंच से दूर थे और हम रिस्क भी नहीं ले सकते थे। इसलिए हम लगभग 10 बजे के करीब मैं अपने बेटे और पोते स्माइल के  साथ जगतार गिल्ल और उसके पोते को साथ लेकर नैशनल हाईवे से पठानकोट की तरफ  चल पड़े। दोपहर तक हम डलहौजी रोड पर थे। सड़क के दोनों तरफ  पहाड़ों को काटकर बनाए खेत अत्यन्त सुंदर दृश्य पेश कर रहे थे। धार और दनेरा क्षेत्रों से गुजर हम हिमाचल में ठाकुर ढाबे पर रुक गए। यहां से हमने चिकन, दाल मखन, आमलेट पैक करवाया। पिछले दस सालों में इस ढाबे पर हम तीस- पैंतीस बार आ चुके हैं। रास्ते में हम रानी खड्ड, बनीखेत और बलून छावनी की ऊंचाईयों को पार कर देवताओं जैसे देवदारों को सिजदा करते हम सुभाष चौक के इस होटल में आ रुके।  जम्मू-कश्मीर में हालात बिगड़ जाने की वजह से टूरिस्टों का रुख हिमाचल की तरफ  हो गया और हिमाचल टूरिज्म का भारी विकास हुआ। डलहौजी का ऐतहासिक पक्ष:- ब्रिटिश सरकार के फौजी ऑफि सर लाहौर की भीषण गर्मी से तंग थे और किसी ठंडे इलाके की तलाश में थे।  इस जगह की खोज कर्नल नेपियर ने की, इसलिए उसे लार्ड का दर्जा दिया गया। यह जगह अंग्रेजों ने 1854 ईस्वी में लीज पर ली थी और उनका यहां सेनिटोरियम बनाने का इरादा था पर  1860 ईस्वी में उन्होंने 600 एकड़ और जमीन चम्बा के राजा से लीज पर ली और बलून छावनी बना दी। मैंने कहीं से पड़ा था कि 1883 ईस्वी में रबिन्द्र नाथ टैगोर ने  सनिद्र की कोठी स्नोडन में ठहरने के दौरान अपनी पहली कविता लिखी थी। शहीद भक्त सिंह के चाचा जी और महान क्रांतिकारी स. अजीत सिंह आज़ादी संग्राम दौरान यहां ही ठहरे थे। सुभाष चन्द्र बोस भी सेहतयाबी के लिए धर्मवीर की रिहायश पर 1939 ईसवी में यहां ठहरे थे। पंजाबी नावल के पितामह स. नानक सिंह  गर्मियों में हर साल यहां लाला अमीर चन्द करियाना की दुकान के ऊपर बनी रिहायश पर ठहरते थे और अपना नया नावल लिख कर साथ ले जाते। उन्होंने 28 नावल लिखे। मैं जब 1972 में पहली बार डलहौजी आया तो लाल जी को मिला उन्होंने कहा कि स. नानक सिंह यहां महीनों तक ठहरते और हमारे परिवार के साथ घुल-मिल गए थे। अगली सुबह नाश्ता करने के उपरांत हम ना चाहते हुए भी बच्चों के जिद करने पर बर्फ  देखने गाड़ी लेकर निकल पड़े। फि सलन के बावजूद थोड़ी सी ऊंचाई के बाद हम सुभाष चौक में पहुंच गए।  सैलानियों खासकर बच्चों की काफी भीड़ थी। बच्चे स्नो मैन और बर्फ  के घर बना रहे थे। मैंने और शायर जगतार गिल्ल ने कॉफी हाउस की तरफ  जाते हुए बच्चों से पूछा, ‘क्या कभी बर्फ  का घर भी बन सकता है’? बच्चे ने उत्तर दिया,‘‘अंकल मैने गोवा के तट पर रेत का घर बनाया था जो अगली सुबह तक कायम था। ‘बलेसड’ कह कर हम आगे की तरफ  चल पड़े। मैंने पीछे मुड़कर देखा और  जगतार गिल्ल से कहा,‘देखो बच्चे कितनी जल्दी घुलमिल जाते हैं’। सभी बच्चे बर्फ  के गोले एक-दूसरे पर फेंकने और दूसरे बर्फ  के खेलों में मस्त थे। वह रोमांचकारी खेलों का आनंद ले रहे थे। हम होटल की तरफ  बढ़ रहे थे तो देखा के इमारतों की लाल छतों और खड़े वाहनों पर सफेद बर्फ  जम चुकी थी। पहाड़ों पर भी कई-कई फीट बर्फ  जम चुकी थी जैसे कुदरत ने सफेद चादर ओढ़ ली हो।   नीचे गिर रही बर्फ  को वृक्षों के पत्ते कुछ देर के लिए शरण देते और फि र बर्फ  नीचे गिर जाती। हमारे होटल के मैनेजर ने बताया कि बर्फ  की वजह से डलहौजी-खजियार का मार्ग बंद हो चुका है इस लिए अगला प्रोग्राम मुल्तवी कर दीजिए।  कमरे में आ हमने चाय और स्नैक्स आर्डर किए। हल्की-हल्की बर्फबारी जारी थी। दोपहर के बाद मेरा बेटा और जगतार गिल्ल पैदल ही घूमने चल पड़े और मैं सैर सफ र लिखने में व्यस्त हो गया। बच्चों ने शाम को गांधी चौक, पंजपुला, और सुभाष चौक में खूब मस्ती की और कमरे में आ  थक कर टीवी देखने में मस्त हो गए। हम मन की बर्फ  को शांत करने में लग गए। पहाड़ों में रात जल्दी घिर आती है। थके बच्चे जल्दी खाना खा कर सो गए।अगली सुबह जैसे बर्फ  से ढकी हुई थी, चारों ओर बर्फ  ही बर्फ  थी मैं सोच रहा था कि बर्फ  से ढकी पर्वत मालाएं, बर्फीले ग्लेशियर, हरियाली और मन मोह लेने वाली झीलें सैलानियों को सम्मोहित करने के लिए काफी हैं। प्रकृति का सुंदर रूप देख कर मन जैसे झूम उठता है। पर वापसी भी ज़रूरी थी। अगली सुबह नाश्ता करने के उपरांत अमृतसर की तरफ  वापिस चल पड़े।

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