महिला वार्ड की चिट्ठी

श्री आनंदपुर साहिब की छात्रा कुमारी शिवांगी ठाकुर की तस्वीर मेरे दिमाग से निकलती ही नहीं। शिवांगी जमा एक की छात्रा है। बड़े ही दु:खी पिता मोहन (वास्तविक नाम नहीं) ने मुझे अपनी पत्नी मीरा व बेटी शिवांगी के साथ मिलवाया। हार्ट सर्जरी के बाद शिवांगी को पी.जी.आई. के महिला वार्ड में शिफ्ट किया गया था। शिवांगी को शूगर भी है। उसके पेट का आप्रेशन भी हो चुका है। उसे गेहूं से भी एलर्जी है। दुखी मोहन दो बार आत्महत्या करने नहर पर गया मगर लम्बी सोच कर वापिस आ गया। चिंता ने मोहन के बाल भी सफेद कर दिये हैं। हमारे देश में सामाजिक सुरक्षा मात्र विज्ञापनों में है। कड़वे सत्य कुछ और ही हैं। गरीब व मध्यवर्ग अत्यंत महंगा उपचार करवाते-करवाते टूट जाता है। मोहन को हिम्मत दे कर मैं मैडम शांति देवी (वास्तविक नाम नहीं) के बैड के पास फर्श पर ही बैठ गया। शांति का शौहर मोबाइल मुच्छड़िया व भाई इक्का भी निकट ही बड़े उदास बैठे थे। विगत रात्रि हम लोग शांति को पी.जी.आई. चंडीगढ़ की एमरजैंसी में लेकर आये थे। शांति जो खाती-पीती है बाहर आ जाता है। एमरजैंसी में पहाड़ जैसी रात बहुत ही मुश्किल से काटी। दर्द का सैलाब है एमरजैंसी वार्ड। रोगी के स्टै्रचर के पास खड़े रहो, टैस्ट करवाने इधर-उधर भागो, कोई चीख रहा है, कोई उल्टी कर रहा है। एक-एक मिनट के बाद एम्बुलैंस आ रही हैं। पी.जी.आई. चंडीगढ़ की एमरजैंसी में रोगियों की भीड़ लगी रहती है। रोगी ज्यादा हैं, जगह कम है। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, जे.एण्ड के., उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड इत्यादि से रोगी पी.जी.आई. आते हैं। पी.जी.आई. चंडीगढ़ में बैड मिलना दीपावली बम्पर निकलने जैसा है। चौथी मंज़िल पर स्थित महिला वार्ड में एक सप्ताह ठहरना था तो मुश्किल परन्तु कई दिलचस्प तुजुर्बे भी हुए। पी.जी.आई. के डाक्टरों की कार्यशैली बड़े कमाल की है। चिकित्सकों का दल सी.बी.आई. की तरह असंख्य प्रश्न करता है। डाक्टर रोगी। रोग की हिस्टरी तैयार करते हैं, फिर प्लान बनाकर उपचार करते हैं। आम अस्पतालों में डाक्टर आते ही नहीं, यहां डाक्टर जाते ही नहीं। डाक्टर कई रोगियों की बड़े ही ढंग से छुट्टी भी कर देते हैं। हरियाणा से आई एक महिला रोगी व उसके रिश्तेदारों को ढंग से समझा कर भेज दिया गया कि इस रोग का उपचार हमारे पास नहीं आपके पास है। इस महिला को यह भ्रम पी.जी.आई. ले आया कि उसके शौहर के किसी और औरत से संबंध हैं। महिला वार्ड में ठहरने के दौरान मैंने यह भी नोट किया कि महिलाओं की ज्यादातर बीमारियों, परेशानियों, उलझनों का बड़ा कारण अभिभावकों, पति, प्रेमी, रिश्तेदारों, समाज का बुरा व्यवहार भी है। महिलाओं को एक बड़ा ही खतरनाक रोग भी है जो महिला वार्ड में रहने के बाद मुझे भी लग गया है। जैसे मेरे मन में शिवांगी ठाकुर की तस्वीर बैठ गई है वैसे ही छात्राओं/महिलाओं के मन में अगर कोई बात बैठ जाए तो निकलती ही नहीं। महिलाएं मन में तर्कहीन बातें बिठा लेती हैं व इन बातों का उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। महिला वार्ड में ठहरने के दौरान रोगियों को मिलने वाला खाना ही खाना पड़ा। उबली हुई बंदगोभी, तरी वाला घीया, पतली दाल इत्यादि को जायकेदार बनाने के लिए मैं हल्गी राम का आलू भुजिया मिक्स कर लेता। फर्श ही मेरा मास्टर शयनकक्ष होता। मुश्किल से नींद आती तो हमलावर खटमल उपस्थित हो जाते। सुबह पौने पांच बजे सुरक्षा कर्मचारी बिना अलार्म उठा देता। मैं वाशरूम जाता और गंदा वाशरूम देखकर पंजाबी कहावत को याद करता ‘जो सुख छज्जु दे चुबार, बलख न बुखारे।’ कन्टीन से चाय पीकर प्राइवेट वार्ड के बाहर लगे बैंच पर बैठ जाता। चार-पांच समाचार पत्रों को देखता। बैंच पर बैठे-बैठे मैं सोचता कि अब जनसंख्या कंट्रोल करने के लिए हमें गम्भीर प्रयास करने पड़ेंगे। गरीब के सस्ते ुपचार वाली दिल्ली अभी दूर है। बदन पर खटमल लड़वा कर पता चलता है कि वास्तव में ‘डिज़िटल इंडिया’ खड़ा कहां है। सातवें दिन शांति को छुट्टी मिली, नया जीवन भी।

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