आज्ञापालन ही कर्त्तव्य

एक व्यक्ति ने सपने में देखा कि स्वयं ईश्वर उसके सामने खड़े हैं और उससे कह रहे हैं ‘तुम्हें एक काम सौंप रहा हूं। सुबह अपने घर के बाहर तुम्हें एक बड़ी-सी चट्टान नज़र आएगी। तुम्हें केवल उसे धकेलने का कार्य करना है।’  सुबह जब वह उठा तो देखा कि घर के बाहर वास्तव में एक बड़ी सी चट्टान पड़ी है। वह व्यक्ति ईश्वर में दृढ़ विश्वास रखता था। अत: वह उस चट्टान को धकेलने में जुट गया। सुबह से शाम हो गई, पर चट्टान अपने स्थान से बाल भर भी नहीं सरकी। दूसरे दिन फिर वह उसी कार्य में लग गया। इसी तरह दिन-पर-दिन बीतने लगे, परन्तु चट्टान नहीं हिली। लोग समझने लगे कि चट्टान बहुत बड़ी है, वह नहीं खिसकेगी। व्यर्थ प्रयास मत करो। पर वह प्रभु के आदेश को मानकर इस कार्य में लगा रहा। इस दौरान उसका शरीर, जो पहले बेहद कमज़ोर था, कुछ मज़बूत हो गया। भुजाएं भी बलिष्ठ हो गईं। पर वह स्वयं कुछ-कुछ निराश होने लगा कि इतने प्रयास के बावजूद चट्टान तो जरा सी भी नहीं खिसकी। उसे लगा कि अब यह कार्य बंद कर देना चाहिए। एक दिन जब वह बहुत थक गया, उसने सोचा, क्यों न मैं ही उनसे पूछ लूं? उस रात स्वप्न में उसे पुन: ईश्वर के दर्शन हुए। उसने पूछा कि उसे किस व्यर्थ के काम में लगा दिया? चट्टान तो खिसक ही नहीं रही है, फिर इतने लम्बे समय के परिश्रम से उसे क्या मिला? ईश्वर मुस्कराए और बोले, तुम्हें बलिष्ठ शरीर मिला है। पहले तुम शारीरिक रूप से कमज़ोर थे, पर अब ताकतवर बन चुके हो। तुम्हें केवल चट्टान को धकेलने के लिए कहा गया था, जो तुमने ईमानदारी से किया। चट्टान तो मेरे चाहने मात्र से खिसक सकती है, पर तुम्हारी परीक्षा यह होनी थी कि तुम सिर्फ एक भावुक भक्त हो या मेरे द्वारा सौंपी हुई ज़िम्मेदारियों को निभाने के लिए भी समर्पित हो।

—देविंद्र शर्मा