अलगाववादी संगठनों हेतु साझा मंच बन चुका पाकिस्तान

सुरिंदर कोछड़
अमृतसर, 19 फरवरी : विभिन्न अलगाववादी संगठनों के लिए एक साझा मंच बन चुके पाकिस्तान का अब यह बहाना और अधिक चलने वाला नहीं रहा कि भारत में आतंकवाद पैदा करने के लिए अलगाववादी लहरों के पीछे पाक का कोई हाथ या मंसूबा नहीं रहा है। न ही अब पाक के लिए भविष्य में यह दावा करना उचित रहेगा कि वांछित अपराधियों की सूची में शामिल भारत और अन्य देशों के वांछित भगौड़े आतंकवादी पाक में नहीं रह रहे। पाकिस्तान इससे भी इंकार नहीं कर सकेगा कि उसकी भूमि पर उसकी सेना, आतंकवादी संगठनों  और खुफिया एजेंसी आई.एस.आई. की मिलीभगत से भारत विरोधी आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर नहीं चलाए जा रहे हैं या पुलवामा सहित भारत में होने वाले अन्य आतंकवादी घटनाओं के लिए ज़िंम्मेवार नहीं है। पाकिस्तानी अंग्रज़ी अखबार की एक सीनियर पत्रकार ने अपना नाम गुप्ता रखने की शर्त पर इस पत्रकार के साथ फोन पर बातचीत करते हुए बताया कि भारत में खालिस्तान लहर को उठाने का आरंभ पाक ने सन् 1971 की हिंद-पाक युद्ध में पाक की हुई हार की नमोशी का बदला लेने की सोच के तहत किया था। इस स्वयं छेड़े युद्ध में पाक की हुई हार के बाद पाकिस्तानियों में अपनी सेना और सरकार के प्रति पैदा हुए अविश्वास का अस्थाई हल निकालने के लिए पाक ने भारत में सिख भाईचारे की धार्मिक पहचान पर धार्मिक आज़ादी को आधार बनाकर आंतरिक युद्ध को हवा दी। उसने बताया कि पाक चाहे कि हमेशा से भारत में खालिस्तान लहर को उठने देने या पुन: गठित करने के मामले में अपनी शमूलियत से इंकार करता रहा है, परंतु इंटर सर्विसिज़ इंटेलीजैंस (आई.एस.आई.)  के पूर्व सचिव एक स्थानीय चैनल पर इंटरव्यू के दौरान खुले तौर पर यह स्वीकार कर चुके हैं कि भारत में उठी खालिस्तान की लहर से जुड़े सिखों को पाक सरकार के हथियारों के ठेकेदार महंगे रेटों पर हथियार सप्लाई करते रहे हैं। कुछ ऐसे भी दावे पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ और अन्य राजनीतिज्ञ भी कर चुके हैं। मुशर्रफ ने यह भी स्वीकार किया था कि भारतीय बागी सिखों को आधुनिक हथियारों की सप्लाई आईएसआई के आला अधिकारियों की देख-रेख में लश्कर-ए-तैयबा द्वारा पाकिस्तान की भूमि पर दी जाती रही है। उक्त पाकिस्तानी पत्रकार के अनुसार भारत बार-बार दावा करता रहा है कि पाक की भूमि पर न सिर्फ भारतीय बागी सिखों को पनाह दी जा रही है, बल्कि लश्कर-ए-तैयबा, जमात-उद्द-दावा, जैश-ए-मुहम्मद, लश्कर-ए-जांगवी, सिपाहे-ए- मुहम्मद, सिपाहे-सहाबा, तहरीक-ए-निफाज़-ए-शरीयत-ए-शरियत-ए-मुहम्मद, तहरीक-ए-इस्लामी, तहरीक-ए- जाफरिया, अल-कायदा, मिलात-ए-इस्लामिया, खुदम-उल-इस्लाम, इस्लामी तहरीक, जमात-उल-अंसार, जमात-उल-फुरकान, हिज़्ब-उल-तरीर, खैर-उन-नास इंटरनैशनल ट्रस्ट, बलोचिस्तान लिब्रेशन आर्मी, इस्लामिक स्टूडैंट्स मूवमैंट आफ पाकिस्तान, लश्कर-ए-इस्लाम, अंसार-उल-इस्लाम, हाजी नामदर ग्रुप, तहरीक-ए-तालिबान, बलोचिस्तान रिपब्लिकन आर्मी, बलोचिस्तान लिब्रेशन फ्रंट, लश्कर-ए-बलोचिस्तान, बलोचिस्तान लिब्रेशन यूनाईटेड फ्रंट, बलोचिस्तान मुसला देपा तनजीम, शिया तुलबा एक्शन कमेटी गिलगत, मर्कज़  स्बील आर्गेनाईजेशन गिलगत, तनजीम नौजवानां-ए-अहले सुन्नत, अहलै सुनत वल जमात आदि आतंकवादी संगठनों द्वारा पाकिस्तान के विभिन्न शहरों कस्बों में लगातार बारत विरोधी अतिरिक्त रैलियां की जा रही हैं। उक्त पत्रकार ने यह भी दावा किया है कि भारतीय अपराधी बिना रोक-टोक के पाकिस्तान की सड़कों-बाज़ारों में घूमते देखे जा रहे हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट कहा कि आईएसआई की ऐसे कार्रवाईयों के कारण जहां पाक व भारत के रिश्तों में लगातार दरार बढ़ती जा रही है, वहीं पाकिस्तान ने पूर्वी पंजाब में सन 1980 में अलगाववादी लहर का जो बीज बोया था, उसकी फसल अब पाक को राज्य सिंध, बलोचिस्तान और मकबूज़ा कश्मीर के नागरिकों में आज़ाद और अलग देश की मांग को लेकर पाकिस्तानी सरकार के प्रति पैदा हुए विरोध के रूप में भुगतनी पड़ रही है।