रीढ़ की हड्डी टूट जाने के बावजूद व्हीलचेयर दौड़ाता है राजीव कुमार

राजीव कुमार बिहार प्रांत के ज़िला नवादा के गांव बेलधार का रहने वाला है। उसका जन्म 1 जनवरी, 1996 को पिता रामसरण प्रसाद के घर माता कमला देवी की कोख में हुआ। उनको पढ़ने के साथ-साथ खेलों का भी शौक था और वह चाहते थे कि खेल क्षेत्र में उपलब्धियां हासिल कर अपने देश और प्रांत का नाम ऊंचा करे और साथ ही इंटर मीडिएट की तैयारी के लिए उसने ग्रेजुएशन करने के लिए कालेज दाखिला लिया और अपने जीवन में पूरी तरह खुश थे। लेकिन 19 जुलाई 2013 को उनका हंसता खेलता जीवन एकदम पलट गया। हुआ यह कि वह अपने पिता जी के साथ खेतों में गेहूं निकालने वाली मशीन यानि थ्रैशर के ऊपर गेहूं निकलवा रहा था, तो अचानक थ्रैशर पर आ गिरा और वह बुरी तरह घायल हो गया। उनको इलाज के लिए पटना के आर.के. कनौजिया अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उसकी रीढ़ की हड्डी टूट जाने की पुष्टि की। उससे भी बुरा यह हुआ कि उसके नीचे वाले हिस्से ने काम करना बंद कर दिया। उनका इलाज तो हो गया, परन्तु अब वह सारी उम्रू व्हीलचेयर पर ज़िन्दगी निकालने के लिए मज़बूर हो गए। राजीव कुमार के सजाए सपने चकनाचूर हो गए और सदमे में चले जाने जाना स्वाभाविक भी था, क्योंकि हादसे ने उनके सजाए सपनों को हमेशा के लिए ग्रहण लगा दिया। राजीव कुमार को सी.एम.सी. वेलोर अस्पताल जाया गया, जहां स्पाइनल कार्ड इंजरी वालों को स्पैशल तौर पर व्हीलचेयर पर ही ऐसी ट्रेनिंग दी जाती थी कि वह ज़िन्दगी में कभी भी निराश न हों, बल्कि वह दूसरों की तरह ज़िन्दगी ही न जी सकें बल्कि ऊंची उपलब्धियां हासिल कर सकें और राजीव कुमार के साथ ऐसा ही हुआ। राजीव कुमार के साथ एक इत्तेफाक यह हुआ कि उनकी मुलाकात व्हीलचेयर खिलाड़ी सैल्स कुमार के साथ हुई और सैल्स कुमार ने उनको इतना उत्साहित किया कि राजीव को महसूस होने लगा कि उनको दोबारा ज़िन्दगी मिली है और उनका मन व्हीलचेयर के ऊपर ही ऊंचाइयां मारने लगा और उन्होंने पहली बार आई.डी.बी.आई. मैराथन दौड़ में हिस्सा लिया, जहां उन्होंने 10 किलोमीटर दौड़  कर सभी को हैरान ही नहीं किया, बल्कि उन्होंने साबित कर दिखाया कि बुलंद हौसले हों तो बुलंदियों को छुआ जा सकता है और विकलांग होना कभी भी रुकावट नहीं है। यहीं बस नहीं, राजीव कुमार 21 किलोमीटर की मैराथन दौड़ भी दौड़ चुके हैं और साथ ही साथ वह बिहार के व्हीलचेयर बास्केटबॉल टीम के भी माने हुए खिलाड़ी हैं। राजीव कुमार कहते हैं कि जीवन में आए हादसों को स्वीकार करके ज़िन्दगी को पीछे नहीं, बल्कि आगे चलाना चाहिए और वह बहुत गर्व से कहते हैं कि ‘टूटता है जो टूट जाए, लेकिन मैं कहां टूटने वाला हूं, कुछ और इंतजार करिए मैं शिखर छूने वाला हूं।’

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