राम नाम की महिमा

भक्त हरिदास राम नाम के मतवाले थे। प्रभु राम का नाम सदैव उनकी जुबान पर रहता। हरिदास का जन्म एक मुसलमान परिवार में हुआ था, परन्तु उन्हें प्रभु राम का नाम लिए बिना चैन नहीं था। उनके ही गांव में गोराई काजी नामक एक कट्टर मुसलमान भी रहता था जो हरिदास की भक्ति से बहुत चिढ़ता था। उसने हरिदास की शिकायत उस समय के मुगल हाकिम से की और कहा, इस काफिर को ऐसी सजा देनी चाहिए जिससे सब डर जाएं और आगे से कोई भी ऐसा नापाक काम करने की हिम्मत न करे। इसे बैंत मारते हुए शहर के बाजारों में घुमाया जाए। बैंत तब तक मारते रहना चाहिए जब तक कि वह मर न जाए। हाकिम ने काजी की बात पर सहमत होकर हुक्म दे दिया। बैंत मारने वाले जल्लाद ने भक्त हरिदास को बांध लिया और उनकी पीठ पर बैंत मारते-मारते उन्हें बाजारों में घुमाने लगा परन्तु हरिदास जी के मुंह से राम नाम की ध्वनि बंद नहीं हुई। जल्लाद कहता, राम नाम बन्द करो। हरिदास जी कहते, ‘भाई, मुझे एक बैंत और मारो मगर ऐसे ही राम नाम लेते रहने दो। इसी बहाने तुम्हारे कानों में मेरे राम का नाम तो पड़ेगा।’बैंतों की मार से हरिदास की चमड़ी उधड़ गई। खून की धारा बहने लगी परन्तु निर्दयी जल्लाद के हाथ नहीं रुके। इधर हरिदास की राम नाम धुन भी बन्द नहीं हुई। अन्त में हरिदास जी बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़े। जल्लाद ने उन्हें मरा समझ कर गंगा में बहा दिया। गंगा के शीतल जल स्पर्श से उन्हें चेतना प्राप्त हो गई और वह बहते-बहते अपने ही गांव के समीप घाट पर आ पहुंचे। लोगों ने उन्हें देखकर बड़ी खुशी  प्रकट की। जगह-जगह उनका सम्मान- स्वागत किया गया। उन्हें जीवित और कुशल देख मुगल हाकिम को भी अपने किए पर पश्चाताप होने लगा परन्तु लोगों में उसके विरुद्ध बहुत रोष था। लोग बगावत की तैयारी करने लगे थे। इस पर भक्त हरिदास ने कहा, इसमें इनका कोई अपराध नहीं था। मनुष्य अपने कर्मों का ही फल भोगता है। दूसरे तो केवल इसमें सहायक बनते हैं। फिर यहां तो इनको साधन बनाकर मेरे राम ने मेरी परीक्षा ली है। प्रभु राम यह देखना चाहते थे कि राम नाम में मेरी रुचि भी है या मैं ढोंग ही करता हूं। मैं तो कुछ था ही नहीं, उन्हीं की कृपा शक्ति ने मुझे अपनी चेतना के अंतिम श्वास तक नाम-कीर्तन में दृढ़ रखा। इनका कोई अपराध हो तो भगवान इनको क्षमा करें। संत की वाणी सुनकर सभी लोग धन्य-धन्य पुकार उठे। मुगल हाकिम और गोराई काजी पर भी बड़ा प्रभाव पड़ा और वह भी प्रभु राम नाम के कीर्तन का प्रेमी बन गया। अब राम नाम की महिमा के साथ पूरे क्षेत्र में शांति का साम्राज्य है। 

—सीमा भरतगढ़िया