गेहूं रबी की स्थायी फसल बनी रहेगी

इस वर्ष गेहूं का रिकार्ड उत्पादन होने की सम्भावना है। आई. सी. ए.आर. आई. ए. डबल्यू. बी.आर. की ओर से लगाए गए अनुमान के अनुसार यह 100 मिलियन टन को छू जायेगा। यह पिछले वर्षों से अधिक उत्पादन अनुकूल मौसम और पर्यावरण, यकीनी मंडीकरण और एम.एस.पी. में 105 रुपए क्विंटल की बढ़ौतरी करके वर्ष के 1735 रुपए के मुकाबले 1840 रुपए किए जाने पर होगा। भारत में गेहूं की काश्त निचले रकबे 30 मिलियन हैक्टेयर को छू गया। यह रकबा पिछले वर्ष 29.80 मिलियन हैक्टेयर थी। इसमें से एक तिहाई के करीब रकबा उत्तर प्रदेश में काश्त किया गया है। तकरीबन 60 लाख हैक्टेयर रकबा मध्यप्रदेश में काश्त किया गया है। पंजाब में 35 लाख हैक्टेयर और हरियाणा में 25 लाख हैक्टेयर रकबा गेहूं की काश्त नीचे हैं। आसाम, महाराष्ट्र, झारखंड, गुजरात, कर्नाटक, जम्मू-कश्मीर और पश्चिमी बंगाल में गेहूं की काश्त निचले रकबा कम हुई है, बाकी सब राज्यों में बढ़ी है। मध्यप्रदेश में सबसे अधिक 5.97 लाख हैक्टेयर का इज़ाफा होकर वहां 60 लाख हैक्टेयर के करीब रकबे पर गेहूं बोई गई है। चाहे रकबे संबंधी पंजाब तीसरे दर्जे पर आता है। उत्पादन के पक्ष से इसका दर्जा दूसरा है और उत्पादन में सब राज्यों से प्रथम है। पंजाब का केन्द्र अन्न भण्डार में भी योगदान सब राज्यों से अधिक है। पंजाब का रकबा भारत में कुल गेहूं की काश्त निचले रकबे का 12 प्रतिशत बनता है। मध्यप्रदेश का 20 फीसदी और उत्तर प्रदेश का 33 फीसदी। पंजाब में उत्पादन अधिक होने पर केन्द्र भण्डार में सब राज्यों से अधिक योगदान पाने का कारण यहां की अधिक उत्पादकता (51 क्विंटल प्रति हैक्टेयर) है। जो अमरीका और कई अन्य गेहूं पैदा करने वाले देशों से भी अधिक है। हरियाणा की उत्पादकता 44 क्विंटल और मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश की क्रमवार 33 क्विंटल और 30 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। वैसे तो सारे उत्तरीज़ोन के राज्यों में रबी की सबसे ज्यादा काश्त की जाने वाली फसल गेहूं ही है, लेकिन पंजाब, हरियाणा की तो यह उत्तम फसल है जो हर छोटा, बड़ा किसान बीजता है। 55 प्रतिशत जनसंख्या का रोटी-रोज़ी का साधन खेती ही है। आई.सी.ए.आर. भारतीय गेहूं खोज संस्थान के निर्देशक डा. ज्ञानइंदर प्रताप सिंह रिकार्ड उत्पादन का कारण इस वर्ष ठंड का पड़ना और तापमान कम रहना बताते हैं। इस वर्ष जो तापमान कम रहा, उससे गेहूं को बहुत ही लाभ हुआ। मौसम विभाग के अनुसार अब भी मार्च के दौरान तापमान आम से कम की सम्भावना है। पहाड़ों में अभी भी बर्फ गिर रही है, जिससे मौसम ठंडा रहने का यकीन बना हुआ है। इस वर्ष  गेहूं पकने में भी अधिक दिन लेगी। पंजाब में कहीं-कहीं विशेषकर तलहटी के इलाकों में नमी रहने के कारण पीली कुंगी की रिपोर्टें मिली हैं, जिससे कृषि के किसान भलाई विभाग के डा. काहन सिंह पन्नू के अनुसार समय पर नियंत्रण पा लिया गया। केन्द्र के अन्न सुरक्षा कार्यक्रम निचले पंजाब के किसानों को 205 लाख क्विंटल अलग-अलग झाड़ देने वाली किस्मों के सुधरे बीज 1000 रुपए प्रति क्विंटल की सबसिडी पर उपलब्ध किए गए। इसमें 54,000 क्विंटल बीज पनसीड ने स्वयं पैदा किए। कृषि विभाग के किसान भलाई विभाग ने 267 करोड़ रुपए की रियायत किसानों को 28,000 कृषि यंत्र देकर प्रदान किए। इन यंत्रों से हैप्पी सीडर (जिसकी उपयोगिता विवादग्रस्त है) और रोटावेटर जैसे महंगे और बड़े आकार वाले यंत्र भी शामिल थे। इस कार्यक्रम निचले जो पिछले वर्षों में पीली कुंगी पर छिड़काव करने के लिए ‘प्रोपिकोनाज़ोल’ (इल्ट) और सब्सिडी दी जाती थी, वह इस वर्ष नहीं दी जायेगी। हालांकि इस वर्ष नमी अधिक होने के कारण.... को गेहूं पर छिड़काव करना किसानों के लिए ज़रूरी है। पीली कुंगी के हमले को रोकने के लिए किसानों को खेतों का लगातार सर्वेक्षण करना चाहिए। यह छिड़काव दोबारा दोहराने की भी सिफारिश पी.ए.ज. की ओर से की गई है, ताकि टीसी वाला पत्ता बीमारी रहित रहे। भूरी कुंगी की रोकथाम के लिए भी विजेता। इल्ट के छिड़काव किए जा सकते हैं। कृषि विभाग और किसान कल्याण विभाग के डायरैक्टर स्वतंत्र कुमार ऐरी के अनुसार खेतों में गेहूं की फसकल लह-लहा रही है। पिछले वर्षों के शिखर के 178.50 लाख टन के उत्पादन पार कर जाने की आशा बनी है। डायरैक्टर ऐरी के अनुसार अब दाने भरने के समय झाड़ बढ़ाने के लिए पोटाशियम नाइट्रेन (13:0:45) या (19:19:19) स्प्रे कर देना चाहिए। पहले छिड़काव गोभ वाला पत्ता निकलना और दूसरा भूर पड़ने के समय के कारण ज़रूरी है। छिड़काव साफ मौसम में एकसार होना चाहिए। करनाल बंट (जो ऐसी बीमारी है जो दाने को खाने योग्य नहीं रहने देती) से रहित करने के लिए फसल पर 200 मिलीलीटर टिल्टष फोलिकुर 25 ए.सी. प्रति एकड़ का छिड़काव कर देना चाहिए।

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