युवाओं में अनुशासनहीनता एक गंभीर समस्या 

समाज बदल रहा है। समाज की अवधारणाएं बदल रहीं हैं । इस परिवर्तित युग में यूं तो जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अव्यवस्था पाई जा रही है पर आजकल युवा वर्ग में अनुशासनहीनता अपनी चरम सीमा पर है। जवानी में मदहोश उन्हें अच्छे-बुरे की तनिक भी पहचान नहीं है। हरेक से बेवजह लड़ना-झगड़ना, छोटी-सी बात को लेकर बहस करना व असहनशीलता उनमें घर कर गई है। विशेषता विद्यर्थी वर्ग में पाई जा रही अनुशासनहीनता बर्दाश्त से बाहर है। नशे में रहना अधिकतर युवाओं में फैशन सा बन चुका है। आज की अंधी दौड़ में लड़कियां भी इससे अछूती नहीं हैं। आधुनिक युवा पीढ़ी अपने माता-पिता के कहने में नहीं है तो यह पीढ़ी अपने अध्यापकों की भी  परवाह नहीं करती। इन्हें किसी का डर,भय नहीं है। दरअसल, समाज में नैतिक मूल्यों की बेहद कमी देखने को मिल रही है। चारों ओर अनैतिकता ने अपने पैर जमा रखें हैं। कोई भी किसी की बात मानने को तैयार नहीं है। वास्तव में हमारी सरकारें पश्चिमी सभ्यता की नकल कर रही हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भी नित्य प्रतिदिन अनेक तजुर्बे सरकारें कर रहीं हैं। 14 वर्ष की आयु तक के बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान तो अवश्य सराहनीय प्रयास है पर प्रथम कक्षा से लेकर आठवीं तक किसी को भी अनुत्तीर्ण नहीं करना कदाचित उत्साहवर्धन एवं उचित फैसला नहीं कहा जा सकता है। इससे शिक्षा का स्तर निम्नतर होता जा रहा है। आज सिर्फ  अध्यापकों को इसके लिए दोषी ठहराया जा रहा है। उनका पक्ष जानने की कोशिश नहीं की जा रही हैं। तस्वीर का दूसरा पक्ष यह है कि विधार्थी पढ़ने के लिए राजी ही नहीं हैं। कुछेक विद्यार्थियों को छोड़ दें तो शिक्षा व्यवस्था की दयनीय स्थिति को देखकर रोना आता है। इसीलिए देश की क्रीम का रुख अधिकांश अब विदेशों की तरफ  है। प्राचीनता पर नवीनता भारी पड़ रही है। विद्या उपार्जन हेतु विद्यार्थी गुरुकुल में जाते थे । विद्या प्राप्ति का माध्यम मात्र सेवाभाव था। गुरु .शिष्य परम्परा का समूचे विश्व में भारत का डंका बजता था। विद्यार्थी प्रसन्नचित्त हो अपने गुरुओं की सेवा में सदैव लीन रहते थे। अपने गुरुदेव की आज्ञा का पालन करना विद्यार्थी अपना परम कर्त्तव्य समझते थे। पर अफ सोस, समय की धारा में सब कुछ बह गया। समय के साथ ही गुरु-शिष्य सम्बन्धों में उत्तरोत्तर पतन होता चला जा रहा है। परस्पर मधुरता ने अब कड़वाहट का रूप ले लिया है। नित्य दिन अकारण लड़ना-झगड़ना विद्यार्थियों का शौक बनता जा रहा है। वे शिक्षण स्थानों में पढ़ने कम और आवारागर्दी करने ज्यादा आते हैं।

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