जुराबें

अध्यापक बच्चों की वर्दी का निरीक्षण कर रहा था। उसकी कक्षा में कई बच्चे ऐसे थे जो विद्यालय की पूरी वर्दी पहन कर नहीं आए थे। किसी के पास कोटी नहीं थी। किसी के पास बूट नहीं थे। किसी के पास पैंट और किसी के पास कमीज़ नहीं थी। लेकिन उसकी कक्षा में एक बच्चा ऐसा था जो वर्दी के साथ की जुराबें पहन कर नहीं आया था। अध्यापक ने उसकी जुराबें देख कर पूछा—‘बेटा, कुछ दिन पहले तो तू वर्दी के साथ की जुराबें पहन कर आया था लेकिन आज तुम्हारी जुराबें कहा हैं?’ बच्चे ने अध्यापक का प्रश्न सुनकर उत्तर दिया—‘सर, मेरी बहन दूसरी कक्षा में पढ़ती है। विद्यालय से हमें अभी जुराबें नहीं मिलीं। आज मेरी बहन की वर्दी का निरीक्षण भी है। अध्यापक ने कहा कि जो बच्चा पूरी वर्दी पहन कर नहीं आयेगा, उसे विद्यालय से निकाल दिया जायेगा। आज मेरी जुराबें मेरी बहन डाल कर गई है। अध्यापक बच्चे का उत्तर सुनकर स्तब्ध रह गया। उसके मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे। वह मन में सोच रहा था कि उसके बच्चे नई जुराबें यह कहकर कि अब इनका फैशन नहीं रहा, पहनने से इन्कार कर देते हैं। इन बच्चों को पहनने के लिए जुराबें नहीं मिलती।

—प्रिंसीपल विजय कुमार
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