ऐसे अस्तित्व में आया रबर

रबर का छोटा-सा टुकड़े के लिए जो आज हर बच्चे के बस्ते में मिल जाता है, इसे ‘इरेसर’ भी कहते हैं। पेंसिल से लिखा मिटाने के लिए रबर के उपयोग का विचार सबसे पहले एक फ्रांसीसी मैग्लोन नामक व्यक्ति के मन में पनपा, इसके महत्व को समझकर उसने इस पर बाकायदा एक शोध-निबंध तैयार किया और उसे सन 1752 में फ्रांस में फ्रेंच अकादमी के सामने प्रस्तुत किया। इस विचार को व्यवहार में आने में 18 साल लग गए। सन 1770 में प्रीस्टले की किताब ने रबर को अच्छी प्रसिद्धि दिलाई। नैरने की दुकान से रबर धड़ाधड़ बिकने लगे। बाद में और दुकानें भी रबर बेचने लगीं और इनकी कीमत भी ज्यादा हो गई। पर अभी भी रबर को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर बेचने का काम घरेलू स्तर पर चल रहा था। सन 1811 में वियना में रबर बनाने की पहली फैक्ट्री लगाई गई। पीछे की ओर रबर लगी पेंसिल का विचार सबसे पहले अमरीका में उभरा। 30 मार्च 1858 को फिलाडेल्फिया के हाइमैन एल. लिपमैन ने रबर लगी पेंसिल का डिजाइन पेटेंट कराया। पेंसिल के पीछे एक दरार थी। आज ऐसी पेंसिल आम उपयोग में हैं, पर उस समय इसे एक नायाब चीज माना जाता था। आज तो ऐसे रबर भी मौजूद हैं, जो स्याही का लिखा या टाइप किया हुआ भी मिटा देते हैं। ये तरह-तरह के सुविधाजनक आकारों में उपलब्ध हैं। बच्चों के लिए खुशबू वाले रबर भी बाजार में मिलते हैं।