काठगढ़ महादेव इन्दौरा

भारत के हर नगर , गांव में शिवालय हैं। कांगड़ा जनपद के इन्दौरा के समीप काठगढ़ गांव में आदिकालीन एक चमत्कारिक शिवलिंग  है। धार्मिक ग्रंथों में भारत को पुण्य भूमि माना है। यहां अनेक ऋषि-मुनियों और साधु , संत,फकीरों ने तप किये और सिद्धियां प्राप्त की हैं। यह धरा विश्व में पूजनीय एवं विख्यात रही। यहां प्रत्येक कण में भगवान की भक्ति की और प्रकृति के शांत वातावरण में अनेक विभूतियों ने दिव्य शक्तियां प्राप्त कीं और उनका प्रयोग जन कल्याण हेतू किया। वर्षा ऋ तु में श्रावण मास के सोमवारों और शिवरात्रि को असंख्य लोग आते और भगवान शिव का आशीर्वाद पाते हैं । मंदिर और यहां का दृश्य देखने वाला है। कमेटी की ओर से काफी विकास किया है। नीचे से मंदिर के प्रांगण तक पहुंचने की लिये सीढ़ियां हैं। विशाल परिसर सुंदर है। शिव के दर्शनों के लिये लोग पंक्तिबद्ध हो कर जाते हैं।  एक ओर राम मंदिर बनाया गया है। ठहरने हेतू यात्री सदन और खाने आदि की आधुनिक सुविधायें हैं। नीचे दुकानें  है। मंदिर और शिवलिंग से सम्बन्धित कई जनश्रुतियां हैं। कहा जाता है पहले यहां गुज्जर लोगों का निवास हुआ करता था। आसपास की भूमि बंजर रही  और पास ब्यास नदी कलकल करती वहती थी। गुज्जरों को घास और जल स्रोत ही चाहिये। अब जहां शिवलिंग है।वहां गुज्जर लोगों का डेरा था। वह जहां दही निकालते थे, वहां भूमि उभरी हुई थी। एक बार उन्होंने इसे उखाड़ कर देखा। वहां बड़ा सा पत्थर दिखा। वे उसे कई बार तोड़ते एवं दबाते रहे, ताकि स्थान समतल हो जाय और दंही निकालने में सुविधा रहे। कहते यह स्थान वैसा ही रहता।वे इस शिवलिंग को साधारण पत्थर समझते थे। कुछ समय पष्चात तत्कालीन राजा के पासजा किसी ने इस बारे बताया। राजा ने बिना सोचे-समझे कर्मचारियों से कहा। इस को वहां से उखाड़ कर यहां आओ। खुदाई का कार्य आरम्भ हुआ। यह लिंग भूमि के बीचों बीच एक स्तम्भ के आकार में मिला। इस का अंत नहीं पाया गया। खुदाई में वहुत नीचे कई प्रकार की चींटियां आदि निकलने आरम्भ हुईं। वे मजदूरों को काटते तथा असहनीय पीड़ा देतीं और वे बेहोश होते और अधिकतर मर जाते। इस बारे राजा को बताया। यह शिव स्तम्भ नहीं निकल पाया। राजा राज पुरोहित के साथ यहां पधारे। सारी स्थिति की जानकारी की। राज पुरोहित और अन्य विद्वानों ने धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन से जाना। ब्रह्मा ने क्षीर सागर में विष्णु का निरादर किया। ब्रह्मा , विष्णु दोनों में कौन बड़ा । इस पर प्रलयकारी युद्ध शुरू हुया। भगवान शिव ने दोनों का अहंकार समाप्त करने हेतू अग्निरूपि स्तम्भ पैदा कर कहा था। इस का आदि और अंत पा कर आओ। जो वास्तविकता का पता करेगा। वहीं मुख्य होगा। ब्रह्मा आकाश मार्ग को हंस पर सवार हो कर गये। विष्णु कच्छुये पर पाताल लोक गये। विष्णु ने लौट कर बताया। मैं इस का अंत नहीं पा सका। ब्रह्मा ने लौटने पर झूठ कहा। मैंने आदि पा लिया। साक्षी तौर पर कपिला गाय से कहलवा कि मेरा दूध इस विराट स्तंभ पर गिरता और कनेर पुष्प ने साक्षी दी कि मेरे पुष्प अर्पित किये जाते थे। क्रोध से शिव ने गाय, कनेर ,बह्मा को झूठ कारण श्राप दिया। कलियुग में गाय का अनादर और कनेर पुष्प देव पर नहीं चढ़या जायेगा तथा ब्रह्मा अन्य देवों की भांति पूजा नहीं जायेगा। ब्रह्मा का मंदिर पुष्कर में केवल एक है । लोगों का मानना है कि यह स्वंयभू शिवलिंग है और दो भागों में विभाजित दिखाई देता है। इसे शिव  पार्वती मानते हैं। चंद्र कला एवं नक्षत्रों अनुसार जुड़ता और अलग होता है। काल्पनिक नहीं अपितु वास्तविक लिंग है। कहते उस राजा ने दर्षन किये और क्षमा याचना  की। पण्ड़ितों एंव राज पुरोहित से शिवलिंग का पंचामृत से अभिषेक  और यज्ञ एंव भंडारे का आयोजन किया। कहा जाता भरत व शत्रुघ्न अपने ननिहाल कैकेय वर्तमान कश्मीर जाते समय यहां  ठहरते और व्यास में स्नान करने पश्चात इस शिवलिंग की पूजा करते । आक्रमणकारी सिकंदर विश्व विजय हेतू आया। कहते उसने यहां विश्राम किया और यहीं उस की सेना का उत्साह समाप्त हो गया। सेना ने आगे जाने से इन्कार कर दिया। वह यहां से वापिस लौट गया। यहां कहते चार दीवारी और अष्टकोणीय चबूतरा बनवाया था। यूनानी शिल्पकला एवं सभ्यता का पता चले। महाराजा रणजीत सिंह ने यहां की भूमि को समतल करवाया। विशेष उत्सवों पर कुएं के पानी को मंगवाते रहे। कई वार स्वयं दर्शन करने आये। पास छांछ खड और ब्यास नदी है। पास विस्तृत मैदानी भूमि का दृश्य दिखाई देता हैं। गांव के नामकरण के बारे कहा जाता। आरम्भ में चार पांच छोटे गांव रहे। गुज्जर , तेली रहते थे। दूध और तेल का काम था। अधिकतर कोल्हू थे। निकटवर्ती राजा अपराधियों को दण्ड काठ के कोल्हू में जोतने का देता था। इस कारण गांव का नाम बाद में काठगढ़ ही हो गया। कहते भूमि खुदाई में मिट्टी के बर्तन , पुरानी ईंटें आदि मिलती रहती हैं। स्थानीय कमेटी विकास के काम में सक्रिय है। शिव चढ़ावा गोंसाई पुजारी लेते हैं। स्थानीय लोगों और सरकारी अनुदान एवं सहयोग से मंदिर व अन्य विकास हुआ है। कमेटी में चार सौ से अधिक सदस्य हैं। सरकारीकरण बारे मांग चली है।  हजारों शिवभक्त शिवरात्रि को आते हैं। 

—सुदर्शन अवस्थी ‘इन्दु’ 
मो. 98165-12911