भारत की पूज्य धर्म-स्थलियां

हमारा देश भारत एक धर्म-परायण देश है। इस देश में पावन स्थलियों की भरमार है। कुछ पावन स्थलियां समुद्र तट पर होती हैं तो कुछ पहाड़ों के ऊपर अवस्थित होती हैं। कुछ पूजा स्थलियों के भवन नहीं होते। मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरुद्वारा तथा बौद्ध मठों के रूप में देखी जा सकती हैं। कई पावन स्थलियां ऐसी जगह होती हैं जो दूरस्थ अवस्थित होती हैं और उनके चारों ओर जल ही जल होता है। इस स्थान पर भी भक्तों की भीड़ उमड़ती है और उनकी भक्ति भावना देखते ही बनती है। कन्याकुमारी और द्वारका ऐसी ही पावन स्थलियां हैं। कुछ पावन स्थलियां सुदूर पर्वत की शृंखलाओं पर होती हैं जहां पहुंचने में कष्ट उठाना पड़ता है लेकिन भक्ति के समक्ष, लगन के समक्ष सभी चीजें सर्वसाध्य हो जाती हैं। वैष्णो देवी जैसी पावन स्थलियां भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं तथा अपने भक्तों को सुखी बनाती हैं। विंध्यवासिनी देवी के दर्शन करना भी पुण्यकारी माना जाता है तथा वहां भी भक्तजन अपनी श्रद्धा निवेदित करते हैं। अयोध्या, काशी, बनारस, मथुरा, वृंदावन में देवी-देवताओं के अनगिनत मंदिर हैं जहां का वातावरण भक्तिमय रहता है। कोणार्क का मंदिर भी अपनी विशेषताओं के लिए जाना जाता है। भगवान जगन्नाथ की यात्रा में लाखों नर-नारी बिना छोटे-बड़े का भेदभाव किए सम्मिलित होते हैं। गणेश चौथ की धूमधाम महाराष्ट्र तथा गुजरात में वृहद् पैमाने पर होती है। यूं तो चार धाम विश्वविख्यात हैं ही। श्रावण के महीने में कांवरियों के बोल बम के नारों से वातावरण गूंजता है और वह स्थान देवघर है। भारत में जितनी पूजा स्थलियां हैं सबके पीछे कोई न कोई पौराणिक कथाएं जुड़ी होती हैं। राजस्थान के सलीमुद्दीन चिश्ती की दरगाह विश्व प्रसिद्ध है। इस्लाम धर्म में मक्का शरीफ, मदीना शरीफ तथा अजमेर शरीफ पावन स्थलियां हैं, वैसी ही पावन स्थलियां बिहार शरीफ, फुलवारी शरीफ, मनेर शरीफ इत्यादि हैं जहां मुसलमान भाई इबादत करते हैं। जुम्मे के दिन नमाज अदा करना सामूहिक कार्य होता है जिसमें छोटे-बड़े सभी समान रूप से अपनी श्रद्धा निवेदित करते हैं। ईसाइयों की पूजा स्थली को चर्च अर्थात गिरजा-घर कहा जाता है जहां ईसा मसीह के प्रति भक्तों की भक्ति भावना का प्रदर्शन होता है। क्रिसमस के अवसर पर क्रिसमस ट्री को सुरुचिपूर्ण ढंग से सजा कर ईसा मसीह का स्मरण किया जाता है और एक दूसरे को क्रिसमस की बधाई दी जाती है। सिखों की पवित्र स्थली को गुरुद्वारा साहिब कहा जाता है जहां माथा टेका जाता है और वाहेगुरु की जय-जयकार के साथ भजन कीर्तन का वातावरण बन जाता है। पटना में सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिन्द सिंह जी की स्मृति में पटना सिटी में विशाल कीर्तन दरबार तथा लंगर का आयोजन होता है जिसमें दूर-दूर से सिख धर्मावलम्बी माथा टेकते हैं और वाहे गुरु की जय-जयकार करते हैं। अपने देश में नदियां भी पूजी जाती हैं। विद्वान विचारक तथा लेखक पंडित जवाहरलाल नेहरू ने नदियों को मंदिर की संज्ञा से विभूषित किया था। सत्य है जो पावन होते हैं, जो प्रतिष्ठा पाते हैं, वे पवित्र होते हैं। इलाहाबाद में गंगा, यमुना और सरस्वती का मिलन होता है और इन तीन नदियों के मिलन स्थल को संगम कहा जाता है। तीनों पवित्र नदियों के मिलन के कारण उस स्थान को तीर्थराज प्रयाग कहा जाता है। प्रत्येक बारह वर्ष पर यहां कुम्भ का मेला लगता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार कुंभ के पावन अवसर पर सभी देवता वहां विराजमान होते हैं और धर्म परायण लोग संगम में पावन डुबकी लगाना अपना सौभाग्य समझते हैं। नदियों के प्रादुर्भाव के पीछे भी पौराणिक कथाएं जुड़ी होती हैं जिससे उनकी पावनता और बढ़ जाती है। प्रत्येक पूर्णमासी के अवसर पर नदी में स्नान करना पावन माना जाता है। आज भी नदियों के किनारे पावन अनुष्ठान होते हैं। बिहार से प्रारंभ होकर छठ व्रत (सूर्य षष्ठी व्रत) हिन्दुस्तान के कोने-कोने फैल गया और भगवान भास्कर को अर्घ्य दान नदियों के किनारे करने की परम्परा है। कुछ पावन ऐतिहासिक नदियों में गंगा, यमुना, सरस्वती, सिंधु, ब्रह्मपुत्र, कावेरी, सरयू, गोमती हैं जो अपनी पावन विशेषताओं से पूजित होती रही हैं। इन नदियों में स्नान करना बड़ा ही पुण्यकारी माना जाता है। नदियां ही नहीं, पेड़-पौधे भी पूजन का विषय रहे हैं। प्रत्येक मंदिर के सम्मुख पीपल का वृक्ष अवश्य होता है जहां मंदिर के देवता का पूजन करने के उपरांत पेड़ों की जड़ में भी लोग अपना सर झुका कर अपनी श्रद्धा निवेदित करते हैं। नीम का पेड़ भी देवी-देवताओं के मंदिरों के अहाते में दृष्टिगोचर होता है। लोग पीपल तथा नीम के वृक्ष की जड़ों में भी जल का अर्पण करते हैं। वट वृक्ष जिसे बड़ या बरगद भी कहा जाता है पूजन का एक केंद्र होता है। सोमवती अमावस्या के अवसर पर वट वृक्ष के चतुर्दिक सौभाग्यवती नारियां परिक्रमा करती हैं और पूजन करके अपने पति के दीर्घायु की कामना करती हैं। केले के स्तम्भ में बृहस्पति भगवान निवास करते हैं जहां गुरुवार के दिन केले के स्तम्भ का पूजन भक्तिमय भाव से किया जाता है। सभी प्रकार की पूजा में आम्र पल्लव तथा केले का स्तम्भ पत्र सहित अवश्य होता है पूजन सामग्री में तुलसी पत्र सहित अवश्य होता है। पूजन सामग्री में तुलसी दल लेकर उनकी पवित्रता बढ़ाई जाती है। तुलसी का पौधा भी प्रत्येक हिन्दू घर के आंगन में सम्मानपूर्वक स्थापित होता है जिसका पूजन भक्तिभाव से किया जाता रहा है।

—सियाकांत भारती