तेज़ाब हमले का अपराधी नरमी का हकदार नहीं : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली, 18 मार्च (भाषा) : उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि तेज़ाब से हमला एक बर्बर और हृदयहीन अपराध है जिसके लिए किसी प्रकार की नरमी नहीं बरती जा सकती। शीर्ष अदालत ने करीब 15 साल पहले 2004 में 19 वर्षीय लड़की पर तेजाब फेंकने के अपराध में पांच साल जेल में गुजारने वाले दो दोषियों को आदेश दिया कि वे पीड़ित लड़की को डेढ़-डेढ़ लाख रुपए का अतिरिक्त मुआवज़ा भी दें। शीर्ष अदालत ने हिमाचल प्रदेश सरकार को भी निर्देश दिया कि वह पीड़ित मुआवज़ा योजना के तहत तेज़ाब हमले की पीड़ित को मुआवज़ा दे। न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने कहा कि निश्चित ही, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि इस मामले में प्रतिवादियों (दोनों दोषियों) ने पीड़ित के साथ बर्बर और हृदयहीन अपराध किया और इसलिए उनके प्रति नरमी सोचने के लिए कोई गुंजाइश ही नहीं है। पीठ ने कहा कि इस तरह के अपराध के मामले में किसी प्रकार की नरमी नहीं की जा सकती है। यह न्यायालय इस स्थिति से बेखबर नहीं रह सकता कि पीड़ित को इस हमले से जो भावनात्मक आघात पहुंचा है उसका भरपाई दोषियों को सज़ा देने या फिर किसी भी मुआवज़े से नहीं की जा सकती है। न्यायालय ने दोनों दोषियों की दस-दस साल की सज़ा घटाकर पांच-पांच साल करने के हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के 24 मार्च, 2008 के फैसले को चुनौती देने वाली अपील पर यह निर्णय सुनाया। पीड़ित के अनुसार वह 12 जुलाई, 2004 को अपने कालेज जा रही थी तभी दुपहिया वाहन पर दो व्यक्ति आए और उस पर तेज़ाब फेंक कर भाग गए। इस हमले में वह 16 फीसदी तक झुलस गई।