जब कांग्रेस के गढ़ रायबरेली में हारीं इंदिरा


रायबरेली, 19 मार्च (वार्ता) कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाले उत्तर प्रदेश के रायबरेली संसदीय क्षेत्र में पार्टी को पहला झटका यहां तब लगा था जब आपातकाल से खिन्न जनता ने  1977 के चुनाव में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को बाहर का रास्ता दिखा दिया था। इस चुनाव में केवल यहीं नहीं पूरे उत्तर भारत में कांग्रेस का सफाया हो गया था और वह सत्ता से बाहर हो गयी थी हालांकि इसके ढाई वर्ष के बाद ही इंदिरा गांधी के नेतृत्व में पार्टी ने सत्ता में वापसी की। आपातकाल के बाद 1977 में चुनाव हुए में इंदिरा गांधी को रायबरेली में उन्हें जनता पार्टी के उम्मीदवार राजनारायण से शिकस्त का सामना करना पडा था। लगभग ढाई साल  तक सत्ता से बाहर रहने के बाद वर्ष 1980 में जब मध्यावधि चुनाव हुए, तो यह अटकले लगायी जाने लगी कि इंदिरा शायद रायबरेली से चुनाव ना लड़ें। खुद इंदिरा रायबरेली से अपनी जीत के प्रति आश्वस्त नहीं थी। इसके कई कारण थे जिनमें एक तो वहां से पिछला चुनाव हार चुकी थीं, दूसरा कि उनके खिलाफ जनता पार्टी ने जबरदस्त योजना बनायी थी। इस योजना के तहत रायबरेली से जनता पार्टी ने अपनी दमदार नेता राजमाता विजयाराजे सिंधिया को मैदान में उतारा था। धुन की पक्की कांग्रेस नेत्री ने अपनी योजना बनायी जिससे वह बगैर जोखिम लिये किसी भी कीमत पर संसद में पहुंचे। उन्होंने तय किया कि वह दो सीटों से चुनाव लड़ेंगी। एक रायबरेली और दूसरा आंध्रप्रदेश की मेडक सीट। रायबरेली की तुलना में मेडक सीट ज्यादा सुरक्षित थी। वर्ष 1977 में जब कांग्रेस को हिंदी भाषी क्षेत्रों में करारी हार झेलनी पड़ी थी, तब दक्षिण ने ही कांग्रेस को कुछ हद तक बचाया था। इसलिए उन्होंने मेडक सीट से भी चुनाव लड़ने का निर्णय लिया था।
 जनता पार्टी के नेता किसी भी हाल में इंदिरा गांधी को संसद में पहुंचने से रोकना चाहते थे। इसलिए जिन दो सीटों पर इंदिरा गांधी चुनाव लड़ रही थीं, उन दोनों सीटों पर जनता पार्टी ने दमदार प्रत्याशी उतारा। रायबरेली में उनके सामने राजमाता सिंधिया थीं, तो मेडक में इंदिरा गांधी के खिलाफ एस जयपाल रेड्डी चुनाव मैदान में उतरे। श्री रेड्डी जनता पार्टी  सरकार में मंत्री थे और ताकतवर नेता माने जाते थे लेकिन उनका सामना इस बार इंदिरा गांधी से हो रहा था। क्या इंदिरा को हरा कर जयपाल रेड्डी राजनारायण की याद ताजा करेंगे, यही सवाल उठ रहे थे। इधर, जनता पार्टी की किचकिच का असर भी दिख रहा था। जनता का मोह जनता पार्टी से भंग हो रहा था।
        चुनाव में इंदिरा गांधी की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने दोनों सीटों पर भारी मतों से जीत दर्ज की। पारंपरिक सीट रायबरेली में उन्होंने राजमाता सिंधिया को डेढ़ लाख से ज्यादा मतों से हराया। यह चुनाव उन्होंने कांग्रेस (आइ) के बैनर तले चुनाव लड़ा था। उन्हें 2,23,903 मत मिले थे, जबकि राजमाता को सिर्फ 50,249 मत मिले। आंध्र प्रदेश की सीट मेडक से भी इंदिरा गांधी दो लाख से ज्यादा मतों से जीती थीं। श्रीमती गांधी को 3,01,577 मत मिले थे, जबकि जनता पार्टी के नेता एस जयपाल रेड्डी को सिर्फ 82,453 मतो से संतोष करना पडा था। बाद में इंदिरा गांधी ने रायबरेली सीट छोड़ दी थी।
        इसके अलावा रायबरेली सीट पर कांग्रेस को दो बार हार का सामना करना पडा जब वर्ष 1996 और 1998 में भाजपा के अशोक कुमार सिंह ने यहां से जीत हासिल की। आजादी के बाद से अब तक यहां 19 बार हुये चुनावों में 16 मर्तबा कांग्रेस का परचम लहराया है। कांग्रेस की मौजूदा प्रत्याशी सोनिया गांधी 2004 से यहां से सांसद है। 
सं प्रदीप जय
वार्ता
नननन