होली में रंगों के घातक प्रभाव से बचें


रंगों का इतिहास अनोखा है। फिर होली के साथ ये यूं जुड़े हैं जैसे मनुष्य के साथ उसका नाम। होली पर रंगों से खेलना एक प्राचीन रस्म है। आज भी यह रस्म वैसे ही चली आ रही है।
होली रंगों का त्यौहार है और बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि इन रंगों का हमारे शरीर और स्वास्थ्य पर अद्भुत प्रभाव पड़ता है। हमारे शरीर को स्वस्थ रखने के लिये जैसे विविध प्रकार के तत्वों की आवश्यकता है, इसी प्रकार रंगों की भी है।
इस तरह होली के एक दिन पूर्व ही टेसू के रंग तैयार कर लें। टेसू के रंग एक तो नुकसानदायक नहीं होते और इनसे तमाम रोगों से सुरक्षा भी हो जाएगी। एक ओर जहां हमारे शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए होली के रंग-गुलाल एक वरदान हैं वहीं दूसरी ओर वर्तमान में कृत्रिम ढंग से निर्मित रंग हमारे स्वास्थ्य पर प्रभाव डालते हैं। एक दूसरे पर कीचड़ गंदगी आदि फेंकना, तारकोल लगाना, यहां तक आयल पेंट से भी होली खेलने की परंपरा चल पड़ी है। यह अशिष्टता का परिचायक तो है ही, स्वास्थ्य के लिए भी घातक हैं। 
होली खेलने के लिए हमें अच्छे किस्म के रंग व गुलाल का ही इस्तेमाल करना चाहिए। पालिश, पेंट, ग्रीस या सस्ते और घटिया किस्मों के रंगों का प्रयोग कभी नहीं करना चाहिए। इससे त्वचा संबंधी तमाम व्याधियां हो जाती हैं। बालों में लग जाने पर ये सुगमता से साफ नहीं होते और नाक, नेत्र तथा कान पर चले जाने पर खतरे और भी बढ़ जाते हैं। बालों में लगने से न केवल रंगों के छूटने में कठिनाई होती है अपितु बाल टूटते भी अधिक हैं। अक्सर बालों का वर्ण भी समाप्त हो जाता है।
चूंकि हम सब को इनके प्रयोग से मना नहीं कर सकते, अत: खुद इनका प्रयोग न करने का हम संकल्प करें और साथ ही अपनी सुरक्षा के लिए पूरे बदन में तैलीय वस्तु से चिकनाहट पैदा कर लें। स्निग्धता पैदा हो जाने से जहां एक ओर नुकसानदायक चीजों के प्रत्यक्ष प्रभाव से त्वचा नहीं आती, वहीं बाद में रंगों को हटाने में भी सरलता होती है। निरोगता के आधार पर टेसू के फूलों का रंग लाभदायक है अत: प्राचीन परंपरा के मुताबिक ही जब हम शालीनता और शिष्टता के साथ होली खेलेंगे, तभी हम अपने स्वास्थ्य व प्राचीन संस्कृति की रक्षा कर सकते हैं।
होली खेलने के पहले अपने मन को होली खेलने के लिए सही ढंग से तैयार कर लें क्योंकि होली को एक स्वाभाविक हास-परिहास का पर्व मानकर आप होली खेलेंगे तो आपको यही रंग लाजवाब लगेंगे। रंगों से तनिक न डरें।
जहां तक संभव हो, अपनी त्वचा को ढक कर रखें। पूरी बाजू के वस्त्र ही धारण करें। गला भी छोटा होना चाहिए। इससे एक ओर जहां रंग आपकी त्वचा पर न लगकर कपड़ों पर लगेगा, वहीं दूसरी तरफ गीले कपड़े-शीघ्र सूख भी जाएंगे। 
होली के एक दिन पहले ही समस्त शरीर पर सरसों के तेल की मालिश कर लेनी चाहिए। होली के दिन आप सारे बदन पर सरसों का तेल या कोल्ड क्रीम सही ढंग से मालिश कर लें। इससे एक ओर चिकनाई त्वचा में समा जाने से रंग का असर त्वचा पर बहुत कम होगा, दूसरी तरफ रंग साबुन और तेल की सहायता से शीघ्र साफ हो जाएंगे। साबुन के पश्चात बदन पर उबटन जरूर लगाएं। होली खेलने के पश्चात तिल के तेल में हल्दी तथा चंदन का मिश्रण बना लें। इसमें जरा सा आटा मिला लें। इस उबटन को चेहरे, हाथ-पैरों पर लगाकर मालिश करें। आपकी त्वचा की सुरक्षा, कांति व कोमलता के लिए बेहतर व उपयोगी साबित होगी। होली के रंगों को उतारने के लिए पुराने मोजों का प्रयोग करें। मोजों पर अच्छा साबुन लगाकर त्वचा पर धीरे-धीरे मलिए। आपको त्वचा पर जलन महसूस नहीं होगी और रंग भी शीघ्रातिशीघ्र साफ हो जाएगा।
स्नान करने वाले पानी में नींबू अथवा जरा सी फिटकरी मिला सकते हैं। इससे बदन पर लगा हुआ रंग भी सरलता से छूट जाता है। स्नान के पश्चात सारे बदन पर बेसन रगड़कर दोबारा स्नान कर लें इससे शरीर में ताजगी आयेगी। स्नान के लिए शीतल या ताजे पानी का ही प्रयोग करें।
शरीर में रंग लगने के पश्चात साफ ताजे पानी से बीच-बीच में धोते रहे। इससे रंग के दुष्प्रभावों में कमी आती रहेगी। यदि आपके पैर में बिवाइयां हैं, तो पैर में पुराने मोजे पहनकर होली खेलें नहीं तो बिवाइयों में रंग समा जाने की हालत में साफ करना कष्टदायी साबित होगा और बिवाइयों का असर और गहरा हो जाएगा। रंग डालने वाले व्यक्ति को यह एहतियात बरतने की जरूरत है कि रंग किसी की आंख अथवा मुख में प्रवेश न करने पाये। पेंट, कीचड़, काला रंग, या गहरे रंग से होली की उमंग समाप्त हो जाती है। हरदम अच्छे रंगों का प्रयोग करें। अपनी और अन्य लोगों की सुरक्षा का ध्यान रखते हुए ही रंग खेलना चाहिए। यदि मुंह में रंग चला जाए तो जल्द ही पानी के कुल्ले करके मुंह साफ कर लेना चाहिए। यदि रंग पेट में पहुंच जाएगा तो उसका प्रभाव शरीर पर खराब पड़ेगा। गुलाल प्राय: चेहरे पर लगाया जाता है। ऐसी हालत में आंखें बंद कर लेनी चाहिए। सूखे रंग चेहरे पर कदापि न डालें। गुलाल में पोटेशियम डाइक्रोमेट होता है जो त्वचा रोगों को पैदा करता है।
कुछ लोग होली में स्याही को ही एक दूसरे पर डालते हैं। स्याही का प्रयोग ज्यादातर बच्चे करते हैं। स्याही के दाग छुड़ाने के लिए तुरंत नींबू का रस रगड़ें। न मिल पाने की दशा में टमाटर सरीखी किसी दूसरी खट्टी चीज से भी काम चला सकते हैं। इसके पश्चात इसे पानी से धोएं।
होली के दिन जहां तक हो सके, बालों में तेल का प्रयोग न करें। इससे बालों में लगे गुलाल को साफ करने में सुविधा होगी। बालों में पड़े हुए रंग छुड़ाने के लिए दही या आंवले का भी इस्तेमाल करें। गुलाल को मिट्टी के तेल से नहीं साफ करना चाहिए एवं न ही जल से छुड़ाना चाहिए क्योंकि पानी पड़ने से रंग और चटक हो जाएगा। इसे पंखे की हवा में झाड़कर रीठे से धोएं।(स्वास्थ्य दर्पण)
—डा. हनुमान प्रसाद उत्तम