आसमान में उड़ते ताबूत बने हैं मिग विमान

पिछले दिनों भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान द्वारा मिग-21 से पाकिस्तानी लड़ाकू विमान एफ -16 को मार गिराये जाने के बाद मिग-21 के क्रैश होने और 8 मार्च को राजस्थान के बीकानेर जिले में एक और मिग-21 के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद भारतीय वायुसेना के बेड़े में शामिल मिग विमानों को लेकर फि र सवाल खड़े होने लगे हैं। दरअसल करीब पांच दशक पुराने इन मिग विमानों को बदलने की मांग काफी लंबे समय से की जा रही है किन्तु वायुसेना के बेड़े में दूसरे लड़ाकू विमानों की कमी के चलते मिग की सेवाएं लेते रहना वायुसेना की मजबूरी रही है। हालांकि वायुसेना द्वारा अब तर्क दिया जा रहा है कि वायुसेना को अत्याधुनिक राफेल विमान मिलने के बाद वह धीरे-धीरे मिग विमानों को युद्धक भूमिका से हटाएगी। पहले चरण में 2022 तक मिग-21 विमान हटाए जाएंगे और 2030 तक मिग-27 तथा मिग-29 विमानों को भी हटाया जाएगा। सवाल यह है कि क्या ऐसे में 2030 तक मिग विमान इसी प्रकार दुर्घटना के शिकार होते रहेंगे और ऐसे हादसों में हम जांबाज लड़ाकू पायलटों को इन दुर्घटनाओं में खोते रहेंगे? हम इस तथ्य को भी नजरअंदाज नहीं कर सकते कि जहां एक लड़ाकू विमान पर अरबों रुपये की लागत आती है, वहीं वायु सेना के लड़ाकू विमान चालकों को प्रशिक्षण देने पर भी भारी धनराशि खर्च होती है। ऐसे में स्पष्ट है कि एक लड़ाकू विमान और एक विमान चालक को खो देने से देश को कितना नुकसान झेलना पड़ता है और हम तो जब से मिग भारतीय बेड़े में शामिल हुए हैं, तब से अभी तक अपने सैंकड़ों मिग विमान और सैंकड़ों लड़ाकू पायलटों को गंवा चुके हैं। निरन्तर होते ऐसे हादसों का सीधा असर हमारी वायुसेना की युद्धक क्षमता और उसके मनोबल पर भी पड़ता है।  आंकड़ों पर नजर डालें तो भारतीय वायुसेना को 1964 में पहला सुपरसोनिक मिग-21 विमान प्राप्त हुआ था। भारत ने रूस से 872 मिग विमान खरीदे थे, जिनमें से अधिकांश क्रैश हो चुके हैं तथा इन हृदयविदारक हादसों में हम अपने 200 के करीब प्रशिक्षित लड़ाकू पायलटों की बलि दे चुके हैं। 1971 से 2012 के बीच 482 मिग विमान दुर्घटनाग्रस्त हुए अर्थात् प्रतिवर्ष औसतन 12 मिग दुर्घटना के शिकार हुए। सरकार द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार इस अवधि के दौरान इन दुर्घटनाओं में 171 फाइटर पायलटों, 39 आम नागरिकों, आठ सैन्यकर्मियों और विमान चालक दल के एक सदस्य की मौत हुई।  हालांकि वायुसेना के पास अब जो मिग विमान हैं, उन्हें तकनीकी रूप से उन्नत किया जा चुका है किन्तु फि र भी ये बार-बार दुर्घटना के शिकार हो रहे हैं। केन्द्र सरकार द्वारा मार्च 2016 में संसद में यह जानकारी दी गई थी कि वर्ष 2012 से 2016 के बीच भारतीय वायुसेना के कुल 28 विमान दुर्घटनाग्रस्त हुए, जिनमें एक चौथाई अर्थात् 8 मिग-21 विमान थे और इनमें से भी 6 मिग-21 विमान ऐसे थे, जिन्हें अपग्रेड कर ‘मिग-21 बायसन’ का दर्जा दिया गया था। कुछ समय पहले तक वायुसेना के पास करीब 120 मिग 21 विमान थे, जिनमें से अधिकांश क्रैश हो गए हैं और फिलहाल केवल 40-45 मिग-21 ही बचे हैं। 1960 के दशक में भारतीय वायुसेना के बेड़े में शामिल किए गए मिग विमान सोवियत रूस में बने हैं। रूस में निर्मित इन विमानों के निरन्तर दुर्घटनाग्रस्त होते जाने का प्रमुख कारण यही बताया जाता रहा है कि ये विमान रूस की पुरानी तकनीक से निर्मित हैं और अब इनके असली पुर्जे नहीं मिल पाते। यह बात सही है कि मिग विमानों ने 1971 के भारत-पाक युद्ध और उसके बाद 1999 के कारगिल युद्ध सहित कई मौकों पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है लेकिन ये विमान अब इतने पुराने हो चुके हैं कि सामान्य उड़ान के दौरान ही क्रैश हो जाते हैं। पिछले कुछ ही वर्षों में मिग विमानों की इतनी दुर्घटनाएं हो चुकी हैं कि अब इन्हें वायुसेना के ही कुछ अधिकारी तथा इन विमानों को उड़ाने वाले पायलट ‘फ्लाइंग कॉफि न’ अर्थात् ‘हवा में उड़ने वाला ताबूत’ कहने लगे हैं। रूस द्वारा 1985 में ही मिग-21 का प्रोडक्शन बंद किया जा चुका है और उसके बाद से जब भी मिग दुर्घटनाग्रस्त हुए हैं, हर बार आरोप लगे हैं कि इन विमानों में कई ऐसे पुर्जे हैं, जो खराब हैं और दुर्घटना का कारण बनते हैं। करीब एक दशक पहले मिग विमानों को बायसन मानकों के अनुरूप अपग्रेड करना शुरू कर इनमें राडार, दिशासूचक क्षमता इत्यादि बेहतर की गई किन्तु अपग्रेडेशन के बावजूद हकीकत यही है कि इन विमानों की उम्र बहुत पहले ही पूरी हो चुकी है। मिग विमानों की दुर्घटना का सबसे बड़ा कारण इनमें आउटडेटेड स्पेयर पार्ट, पुराने एयर-फ्रेम तथा सिस्टम की खराबी को माना जाता रहा है। दरअसल युद्धक कार्यों में इस्तेमाल की जाने वाली किसी भी मशीनरी को समय-समय पर रिपेयर और अपग्रेड करने के साथ-साथ खराब घोषित करने की आवश्यकता भी होती है। हालांकि मिग अपने समय के उच्चकोटि के लड़ाकू विमान रहे हैं और अगर इनकी विशेषताओं की बात करें तो अधिकतम 2230 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार वाले इस विमान में हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलें ले जाई जा सकती हैं और यह करीब दो हजार किलो तक गोला-बारूद ले जाने में भी सक्षम है। इसके जरिये दुश्मन पर केमिकल, कलस्टर इत्यादि करीब एक हजार किलो वजन तक के कई प्रकार के बम भी बरसाये जा सकते हैं। यही नहीं, इसके कॉकपिट के बायीं ओर से 420 राउंड गोलियां बरसाने का भी इंतजाम है। इसके बावजूद हकीकत यही है कि आज की पीढ़ी के विमानों के समक्ष मिग कहीं नहीं ठहरते क्योंकि मिग करीब चार-पांच दशक पुरानी रक्षा जरूरतों के हिसाब से निर्मित हुए थे, जो मूलभूत लड़ाकू विमान ही हैं। आज के माहौल में ऐसे अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों की जरूरत है, जो छिपकर दुश्मन को चकमा देने, सटीक निशाना साधने, उच्च क्षमता वाले राडार, बेहतरीन हथियार, ज्यादा वजन उठाने की क्षमता इत्यादि सुविधाओं से लैस हों जबकि मिग का न तो इंजन विश्वसनीय है और न ही इनसे सटीक निशाना साधने वाले उन्नत हथियार संचालित हो सकते हैं। अगर मिग के मुकाबले अमरीका द्वारा रूसी फौज तथा अफगानिस्तान में लड़ने के लिए पाकिस्तानी वायुसेना को खैरात में दिए गए एफ-16 विमानों की बात की जाए तो उनकी तकनीक काफी उन्नत है। उनके राडार, दिशासूचक क्षमता, मारक क्षमता तथा अन्य क्षमताएं मिग से बहुत बेहतर हैं। अमरीका द्वारा निर्मित अधिकतम 2414 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार वाले दुनिया के सबसे विख्यात लड़ाकू विमानों में शामिल एफ-16 परमाणु हथियार, हवा से हवा में मार करने वाली 6 मिसाइलें एक साथ ले जाने, हवा से जमीन पर मार करने वाली मिसाइलें ले जाने तथा हर मौसम में लक्ष्य निर्धारण करने में सक्षम हैं। इनमें नौ जगहों पर बम व मिसाइलें फिट की जा सकती हैं। रक्षा विशेषज्ञों की मानें तो मिग विमान 1960 व 1970 के दशक की टैक्नोलॉजी के आधार पर निर्मित हुए थे, जबकि अब हम 21वीं सदी के भी करीब दो दशक पार कर चुके हैं और पुरानी तकनीक वाले ऐसे मिग विमानों को ढो रहे हैं, जिनका पाकिस्तानी वायुसेना के बेड़े में शामिल एफ-16 से कोई मुकाबला नहीं है। सही मायनों में मिग विमानों को 1990 के दशक में ही सैन्य उपयोग से बाहर कर दिया जाना चाहिए था। दरअसल हर लड़ाकू विमान की एक उम्र होती है और मिग विमानों की उम्र करीब 20 साल पहले ही पूरी हो चुकी है लेकिन हम इन्हें अपग्रेड कर इनकी उम्र बढ़ाने की कोशिश करते रहे हैं और तमाम ऐसी कोशिशों के बावजूद इनकी कार्यप्रणाली प्राय: धोखा देती रही है, जिसका नतीजा मिग विमानों की अक्सर होती दुर्घटनाओं के रूप में बार-बार देखा भी जाता रहा है। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार अपनी वायुसेना को गंभीरता से लेने वाले देशों में भारत संभवत: आखिरी ऐसा देश है, जो आज भी मिग-21 का इस्तेमाल करता है।