सुखबीर के हाथ आई अकाली दल अध्यक्ष की मुकम्मल कमान

जालन्धर, 24 मार्च (मेजर सिंह) : गत दो दशक से अकाली सियासत के दिग्गज नेता व पिता स. प्रकाश सिंह बादल की गहरी परछाई में राजनीतिक सफलता की सीढ़ियां चढ़ते आए स. सुखबीर सिंह बादल ने इस समय पार्टी अध्यक्ष की मुकम्मल कमान अपने हाथों में ले ली है।  वह इस समय एक स्वायत्तता व मजबूत नेता की तरह फैसले ले रहे हैं। पार्टी का मज़बूत दस्ता समझे जाते यूथ अकाली दल का नेतृत्व करते सबसे पहले उनकी एक मजबूत अकाली नेता के रूप में पहचान 2007 के विधानसभा चुनावों में पार्टी को मिली जीत से हुई थी। इसके बाद पूरे 10 वर्ष सत्ता में रहते समय चाहे राजनीतिक व प्रशासनिक फैसलों में उनकी भूमिका बेहद अहम रही परंतु यह सभी फैसले ‘बड़े बादल’ की निगरानी से होकर निकलते थे और हर मामले में ‘बड़े बादल’ की सलाह व निगरानी स्पष्ट झलकती नज़र आती रही है। बादल सरकार के 2012 में पुन: सत्ता में आने के बाद चाहे सुखबीर सिंह बादल की पार्टी व सरकार पर पकड़ तो ज्यादा मज़बूत हो गई थी, परंतु फिर भी कमान प्रकाश सिंह बादल के हाथों में ही रही। हर संकट व पैदा होती समस्या हल करने के लिए प्रकाश सिंह बादल ही आगे आते रहे। यहां तक कि बरगाड़ी बेअदबी कांड के बाद में हुई घटनाओं व किसान संगठनों के संघर्ष से आगे होकर निपटने के सभी मामलों में बादल की नेता भूमिका नज़र आती थी हालांकि बादल सरकार की पिछली पारी समय किए जाते फैसलों व अफसरशाही की तैनाती आदि में सुखबीर सिंह बादल का रुतबा स्पष्ट झलकता रहा है परंतु फिर भी 2008 में पहले पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष व फिर उसी वर्ष बाकायदा अध्यक्ष चुने जाने के बावजूद हर अहम फैसले में बादल की छाप स्पष्ट झलकती रही है या यह भी कहा जा सकता है कि सुखबीर सिंह बादल खुद भी फैसले लेने में उनके ऊपर निर्भर रहते रहे हैं। यही कारण था कि पार्टी नेता भी पार्टी अध्यक्ष के साथ-साथ ‘बड़े बादल’ की ओर भी वही तवज्जो देते आ रहे थे परंतु 2015 के बाद पार्टी के बड़े राजनीतिक धार्मिक संकट में फंसते और फरवरी 2017 के चुनावों में अकाली दल को हुए बड़े नुक्सान ने पार्टी की कमर ही तोड़कर रख दी थी। अकाली दल के इतिहास में यह शायद सबसे बड़ा संकट था। शुरुआती कुछ समय तो ‘बड़े बादल’ इस संकट के भवसागर को पार करने के लिए सुखबीर सिंह बादल की डोरी बनते नज़र आए, परंतु पिछले साल के मध्य में मौजूदा संकट के लिए पार्टी लीडरशिप को ज़िम्मेवार ठहराने के रुझान के तहत जब टकसाली नेता बगावती सुर निकालने लगे तो उस समय ‘बड़े बादल’ को लगभग सारी कमान सुखबीर सिंह बादल के हाथ सौंपकर खुद सियासत से रुखस्तगी के आलम में चले गए। कुछ माह पहले तक अकाली लीडरशिप की पुन: बहाली जोकि मुश्किल लगती थी, अब राजनीतिक सूत्रों में आम चर्चा है कि लोकसभा चुनावों से पहले अकाली दल के पांव  टिकने शुरू हो गए हैं। संगरूर क्षेत्र से बगावत पर बैठे सुखदेव सिंह ढींडसा के बेटे परमिंदर सिंह ढींडसा को चुनाव लड़ने के लिए सहमत कर लेना, तीन बार विधायक रहे गुरतेज सिंह घुड़ियाणा को वापिस पार्टी में शामिल करना, फरीदकोट ज़िला कांग्रेस अध्यक्ष व तीन बार कांग्रेस विधायक रहे जोगिंदर सिंह पंजग्राईं का पार्टी में शामिल होने पर टकसाली नेता रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा के भतीजे ज़िला परिषद् सदस्य गुरिंदर सिंह टोनी का उन्हें छोड़कर पार्टी में शामिल होना पार्टी के पांव टिकने के संकेत ही समझे जा रहे हैं। सुखबीर सिंह बादल द्वारा पार्टी से अलग हो गए या नाराज़ नेताओं के साथ भी पता चला है कि लगातार सम्पर्क रखने के अभियान शुरू किया हुआ है। पता चला है कि सुखबीर सिंह बादल टोहरा परिवार को पंथक स़फां में वापिस लाने के लिए प्रयत्नशील हैं और उनके मध्य दो बार बैठक भी हो चुकी है। रास आ रहा है सम्पर्क अभियान : पार्टी अध्यक्ष द्वारा अलग-अलग विधानसभा क्षेत्राओं के नेताओं, कार्यकर्त्ताओं के साथ शुरू किया सम्पर्क अभियान पार्टी को रास आ रहा प्रतीत होता बताया जा रहा है। पार्टी नेता ऐसी बैठकों में अध्यक्ष के साथ कार्यकर्त्ताओं के साथ सीधे सम्पर्क व तालमेल से उत्साह पैदा करने की बातें कर रहे हैं। इन बैठकों में पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल अकेले ही क्षेत्रीय प्रभारी या स्थानीय नेताओं के साथ जाते हैं। कोई भाषण करने की बजाय वह अकेले-अकेले कार्यकर्त्ता के साथ मिलते और बातचीत करते हैं फिर सभी के साथ तस्वीरें खिंचवाते और सैल्फी लेते हैं। हर बैठक में 3 घंटे वह सम्पर्क में ही व्यतीत करते हैं। पार्टी नेता सम्पर्क की इस तकनीक को ‘बड़े बादल’ के ‘संगत दर्शन’ अभियान के साथ भी तुलना करते देखे जाते हैं।