राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण प्रदेश गुजर रहा है पानी के गंभीर संकट में से

फिरोज़पुर, 13 जून (अ.स.): संगरूर में दो वर्षीय बच्चे फतेहवीर सिंह की बोरवैल में गिरने के पश्चात घटित हुई दुर्भाग्यपूर्ण घटना ने पंजाब में नई चर्चा और लोक मसले को जन्म दे दिया है। संगरूर में घटित घटना का डर और दहशत सीमावर्ती जिले फिरोज़पुर के गांवों में आम देखने एवं सुनने को मिल रहा है। घटना के पश्चात ज़िले के विभिन्न गांवों के किसानों से बातचीत करने के पश्चात किसानों का दर्द सामने आया कि हरित क्रांति का प्रमुख राज्य पंजाब जिसको पांच दरियाओं की धरती कहा जाता था, यहां के दरियाई पानी ही इसको कृषि के पक्ष से खुशहाल और मानवीय लालसाओं के कारण पानी के गंभीर संकट में से गुजर रहा है। पंजाब के 137 विकास ब्लाकों में 103 ब्लाक पानी में से डार्क जोन घोषित कर दिए गए हैं, नहरी पानी की कमी के कारण सीमावर्ती ज़िले के किसान भी शेष पंजाब की तरह ट्यूबवैल से कृषि करने हेतु मजबूर हैं। पंजाब में इस समय 14 लाख से अधिक ट्यूबवैल चल रहे हैं, धान के मौसम में यह ट्यूबवैल 8 से 10 घंटे लगातार चलते हैं, केवल धान के सीजन में भी बिजली की मांग 13500 मैगावाट इन ट्यूबवैलों के लिए हो जाती है। इतनी बड़ी संख्या में चलते ट्यूबवैल धरती में पड़े प्रकृति के अनमोल तोहफे पानी के स्तर को लगातार नीचा कर रहे हैं। यदि पानी इसी तरह निकलता रहा तो आने वाले समय में कृषि करना बेहद मुश्किल हो जाएगा। सीमावर्ती किसानों ने बताया कि मौजूदा दौर में कृषि हेतु पानी के गंभीर संकट की नंगी तलवार किसानों पर लटक रही है, उसके अनुसार आज से 25 से 30 वर्ष पहले कृषि करने हेतु केवल 40 फुट गहरे बोर करके धरती पर केवल 3 हार्स पावर की मोटर के साथ सिंचाई का कार्य बढ़िया चलता था। कृषि विशेषज्ञों अनुसार लगातार बढ़ते बोरों के कारण पानी का स्तर नीचा हो चुका है, जिस कारण बोर 150 से 200 फुट गहरे करने पड़े और 15 से 20 फुट गहरे कुओं में मोटर रखने का सिलसिला चला। कृषि विशेषज्ञों अनुसार जब बोरवैल पानी देने में असमर्थ हो जाता तो किसान अंधविश्वासी एवं अनपढ़ता के कारण खुला छोड़ने लगे और संगरूर जैसी घटनाएं देखने को मिलने लगीं। बोरवैल खोदने हेतु सरकार की ठोस नीति की कमी के कारण सीमावर्ती जिले में सैकड़ों गहरे बोर बिना किसी अनुमति के चलते आम देखे जा सकते हैं। धान के सीजन में पानी की बढ़ती मांग की पूर्ति हेतु बढ़ते ट्यूबवैल एवं मोटरों की बढ़ती समर्था पानी के स्तर को नीचे ले जाने के लिए जिम्मेवारी तो है, परन्तु सरकार द्वारा धान के विकल्प के रूप में किसी भी अन्य कम पानी की मांग वाली फसल को न तो उत्साहित किया गया और न ही मंडीकरण के ठोस प्रबन्ध किए गए, जिस कारण धान बीजना किसानों की मजबूरी बन गया। ज़रूरत है मौजूदा दौर में पानी के संकट का सामना कर रहे किसानों हेतु ठोस जल नीति बनाने और लोगों में पानी का प्रयोग संजय से करने की।