तो यहां मिलते हैं ईमानदारी, राष्ट्रवाद तथा नैतिकता के प्रमाण-पत्र 

गोवा, मणिपुर, कर्नाटक, मध्य प्रदेश व बिहार जैसे राज्यों में साम-दाम-दंड-भेद की युक्ति आजमाकर सत्ता में आने वाली भारतीय जनता पार्टी ने पिछले दिनों राजस्थान में भी लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित अशोक गहलोत सरकार को अस्थिर कर सत्ता हथियाने की कोशिश की जो फिलहाल नाकाम भी साबित हुई और कुछ आडिओ टेप लीक हो जाने की वजह से भाजपा को भरी फजीहत का सामना भी करना पड़ा। सत्ता के लिए इस तरह का दल बदल या वैचारिक परिवर्तन करने या इसे प्रोत्साहित करने की नेताओं की वर्तमान शैली ने एक बात तो साबित कर ही दी है कि देश के लोकतंत्र को मतदाताओं से उतना खतरा नहीं, जितना कि लोकतंत्र के सफेदपोश स्वयंभू प्रहरियों से है। मज़े की बात यह है कि बेशर्मी व बेहयाई के इस खेल में जो जितना बड़ा खिलाड़ी है, वही अपने को राजनीति का ‘चाणक्य’ समझने लगता है। इससे भी बेशर्मी की बात यह है कि कल तक कांग्रेस या किसी अन्य पार्टी में रहते हुए जो नेता भाजपाइयों को भ्रष्ट व अनैतिक नज़र आता है, वही व्यक्ति इनके पाले में आकर इतना पवित्र, राष्ट्रवादी, नैतिकतावादी, ईमानदार व आदर्श नेता बन जाता है कि उसे मंत्री बना ये फख्र महसूस करते हैं। याद कीजिये, मध्य प्रदेश में कमल नाथ सरकार के समय कांग्रेस विधायक रहे बिसाहू लाल सिंह को। यह ऐसे विवादित विधायक हैं जिनपर कमल नाथ सरकार के दौरान गरीबी रेखा से नीचे के लोगों के अधिकारों का राशन हड़पने का आरोप भारतीय जनता पार्टी के नेताओं द्वारा लगाया जाता रहा था। बाकायदा एक आर टी आई के द्वारा भाजपाइयों ने यह जानकारी इकट्ठी की थी कि कांग्रेस विधायक बिसाहू लाल सिंह व उनका पूरा परिवार अन्नपूर्णा योजना के अंतर्गत बीपीएल परिवारों को एक रुपए प्रति किलो के हिसाब से दिया जाने वाला  गेहूं व चावल ले रहा है। हालांकि इस आरोप के जवाब में विधायक बिसाहू लाल यही कहते रहे कि वह तथा उनका परिवार आर्थिक रूप से सुदृढ़ है तथा उन्होंने कभी बीपीएल कोटे का राशन नहीं लिया। बहरहाल इन्हीं आरोपों प्रत्यारोपों के बीच विधायक जी मुख्यमंत्री कमल नाथ से इसलिए खिलाफ हो गए क्योंकि उन्हें मंत्री पद से नवाज़ा नहीं गया था। इसीलिए ज्योतिरादित्य सिंधिया से वफादारी का परचम उठाए हुए बिसाहू लाल सिंह भी कांग्रेस के अन्य बागी विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए। अब पिछले दिनों शिवराज सिंह चौहान ने अपने मंत्र्मिंडलीय विस्तार में इन्हीं बिसाहू लाल सिंह को राज्य का खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री बना दिया। पूरा प्रदेश ठगा सा देखता रह गया कि कल तक भाजपा का बी पी एल का राशन डकार खाने का आरोपी आज इसी राज्य का भाजपा सरकार का ही खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री आखिर कैसे हो गया ?  इसी तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया ही नहीं बल्कि उनके स्वर्गीय पिता माधव राव सिंधिया पर भी भाजपा समर्थकों द्वारा तरह तरह के आरोप लगाए जाते थे। यह तक कहा जाता था की सिंधिया राजघराना अंग्रेज़ों का वफादार घराना था। इतना ही नहीं, बल्कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अप्रैल 2017 में राज्य के अटेर विधानसभा क्षेत्र में एक सार्वजनिक रैली में कहा था कि सिंधिया परिवार ने अंग्रेज़ों के साथ मिलकर भारत की जनता पर ज़ुल्म ढाए थे। यह इसलिये कहा जाता था क्योंकि दोनों ही पिता पुत्र भारतीय जनता पार्टी विशेषकर राष्ट्रीय स्वयं संघ का मुखरित होकर विरोध करते थे। यहां तक कि संसद में भी इन्हें खुलकर आईना दिखाते थे परन्तु ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल होते ही ये आरोप भी और इन आरोपों को लगाने वाले भी-सभी ज़मींदोज़ हो चुके हैं। इसी तरह कांग्रेस में आग भड़कानी हो तो इन भाजपाइयों को इस बात की ज़िक्र भी सताता है कि कांग्रेस ने अमुक नेता को मुख्य मंत्री क्यों बनाया, अमुक नेता को क्यों नहीं। गोया कांग्रेस पार्टी को अपना मुख्यमंत्री किसे बनाना है, यह सलाह भाजपा से लेने की ज़रूरत है। गत दिनों राजस्थान में चल रही राजनीतिक उठा पटक संबंधी एक टीवी डिबेट के दौरान एक वरिष्ठ भाजपा नेता में ऐसा ही दर्द छलकता दिखाई दिया। नेता जी फरमा रहे थे कि ‘कांग्रेस को राजस्थान में सत्ता दिलाने में सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण भूमिका सचिन पायलट ने निभाई परन्तु जब मुख्य मंत्री बनाने का समय आया तो अशोक गहलोत को बना दिया गया।’ ज़ाहिर है, वह भाजपा नेता  सचिन की हमदर्दी में नहीं बोल रहे थे बल्कि सचिन-गहलोत के बीच की खाई को और गहरा करने के मकसद से आग में घी डालते हुए सचिन के प्रति अपनी हमदर्दी के  इज़हार का प्रदर्शन कर रहे थे। परन्तु उसी समय वह यह भी भूल रहे थे कि राजस्थान से पहले उत्तर प्रदेश के चुनाव भी लड़े गए थे। उस समय चुनाव के दौरान डॉक्टर दिनेश शर्मा व केशव प्रसाद मौर्य का नाम ही सबसे आगे नज़र आ रहा था। पूरे प्रदेश में किसी को नहीं पता था कि योगी आदित्य नाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री होने जा रहे हैं  परन्तु भाजपा नेताओं को राजस्थान में गहलोत तो दिखाई दिए, मगर उत्तर प्रदेश में योगी की नियुक्ति नज़र नहीं आई।