कहानी देव सर पगले की

(क्रम जोड़ने के लिए पिछला रविवारीय अंक देखें)
हमने हाथ जोड़ कर उनके सामने अपनी इच्छा प्रकट की। हमारी बात सुन कुछ देर सोच में डूब गए, फिर बोले, ‘ठीक है! आइए, घर चलते हैं। आराम से बैठकर जो भी जानता हूं, बता दूंगा।’ हम उनके घर पहुंच गए। बातचीत शुरू करने से पहले चाय बनवाकर ले आए। चाय पी ली। हमने प्रश्न भरी नज़रों से उनकी ओर देखा। वे बोले, ‘काफी लम्बी ज़िन्दगी जी चुका है मगर आज तक देव सर जैसा इन्सान मेरे सामने नहीं आया। कम से कम इस शहर में तो नहीं है। आप भला कालेज के छात्र रहे हैं, साठ साल बीत चुके हैं, आज इनके सामने भला कालेज का कोई युवा अध्यापक भी आ जाता है तो यह उसके चरण स्पर्श करते हैं। जब यह वहां के छात्र थे, कालेज का नया भवन बन रहा था, देव की कोशिश से कालेज के छात्रों की एक टोली बन गई थी, जो निर्माण कार्य में श्रम दान करती थी। छात्र सीमेंट-रेत-पानी गीला कर मसाला तैयार करते थे। ईंटों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाते थे- देव अपने साथ के छात्रों को बताते थे-देश के विकास में सरकार तो अपना कार्य कर रही है। जनता को भी उसमें अपना योगदान डालना चाहिए-नेहरू जी चाहते हैं सभी यथाशक्ति श्रम-दान करें। उनकी आवाज़ है- काम करो तुम काम करो-देश की खातिर काम करो-काम करो तुम काम करो, जग की खातिर काम करो।’उस समय कृष्णानगर सती कुण्ड से दक्ष मंदिर तक पगडंडी जाती थी। आज जो सड़क जा रही है-उसे भला कालेज के छात्र-छात्राओं ने तैयार किया था-देव सबसे आगे रहता था उसकी आवाज़ में आवाज़ मिला कर छात्रों की आवाज़ गूंज उठती थी-काम करो तुम काम करो-देश की खातिर काम करो-काम करो तुम काम करो जग की खातिर काम करो-भारत माता की जय, महात्मा गांधी अमर रहें-चाचा नेहरू ज़िंदाबाद, देश पर मर मिटने वाले अमर रहें। समय-समय पर आयोजित होने वाली प्रभात फेरियों में आज भी देव सर की आवाज़ गूंज उठती है।छात्र देव कई वर्षों तक अपने साथी छात्रों के साथ शाम को हर की पौड़ी जाते सेवा-समिति आफिस में बैठते, यात्रियों की हर तरह से मदद करते। एक दिन तो अजीब घटना घट गई। सुभाष घाट पर एक छोटा-सा बच्चा रो रहा था-जब काफी देर  तक कोई उसके पास नहीं आया तो देव ने उसे उठाया, कंधे से लगाया और उसके माता-पिता की तलाश में घाट पर घूमने लगा। उसके साथ एक अन्य छात्र लोगों का ध्यान खींचने के लिए घंटी बजाते हुए चल रहा था। तभी एक औरत ने देव  को पकड़ा-उसके गाल पर कस कर थप्पड़ मारा, चिल्ला कर कहा, ‘मेरे बच्चे को चुरा कर कहां लिए जा रहे हो?’ होता है कभी-कभी अच्छा करते हुए भी गड़बड़ हो जाती है, मुसीबात का सामना करना पड़ता है। थप्पड़ खाने के बाद भी देव ने मुस्कुरा कर कहा था, ‘हम तो घंटे बजा-बजा कर आप की ही तलाश रहे थे।’ सच माने मैं तो ऐसा महसूस करता हूं, इनके जीवन की कई घटनाएं इनके पुराने छात्रों के जीवन में समय-समय पर घंटियां बजाती रही हैं और इन्हें इन्सायनित की राह दिखाती रही हैं।आर्य कालेज में इनका पहला दिन था। छात्रों को ज्ञात था इनको एक नए अध्यापक पढ़ाने आएंगे। सब छात्रों ने मिल कर फैसला किया था, आज उनको पढ़ाने नहीं दिया जाएगा। खूब तंग करेंगे। बातें करेंगे। शोर मचाएंगे। खूब मज़ा आएगा। नए सर आज के दिन को ज़िन्दगी भर याद रखेंगे। नए सर ने क्लास में प्रवेश किया। सबने बिना खडे हुए डैस्क थपथपा कर उनका स्वागत किया, फिर आवाज़ें गूंज उठीं-स्वागत है सर! आपका स्वागत है। देव सर मुस्कुराते हुए उन सब पर अपनी निगाह घुमाते रहे। एक पल के लिए खामोशी छा गई। तभी एक छात्र ने खड़े होकर उस खामोशी को तोड़ा, ‘मास्टर साहिब नमस्ते’ तभी एक ने कहा, ‘गुरु जी प्रणाम।’ ‘बन्दे मातरम् सर।’ ‘जय भारत सर।’ देव सर ने इस सबका बुरा नहीं माना। मुस्कुराते हुये सबका धन्यवाद किया। फिर एक-एक का नाम पूछा अपना परिचय दिया। फिर कहा अच्छा अब थोड़ी-सी पढ़ाई की बात हो जाए। ।

(क्रमश:)