22 मार्च को विश्व जल दिवस पर विशेष पानी की सम्भाल के प्रति महिलाओं की ज़िम्मेदारी

बहुत पुरानी और सच्ची कहावत है कि जब हमारे पास कोई वस्तु होती है, तो हमारे लिए उसके प्रति महत्त्व तथा कीमत कम हो जाती है, तथा जब हम उसे खो बैठते हैं, फिर हम पछताते हैं तथा खो जाने पर ही उसकी कीमत का पता चलता है।
अंग्रेज़ी में कहा जाता है कि ङ्खद्धद्गठ्ठ ह्लद्धद्ग 2द्गद्यद्य द्बह्य स्रह्म्4, 2द्ग द्मठ्ठश2 ह्लद्धद्ग 2शह्म्ह्लद्ध शद्घ 2ड्डह्लद्गह्म् जिसका अर्थ है कि कुआं सूखने के बाद ही पानी के मूल्य का पता चलता है। धरती के नीचे वाले पानी के कम हो रहे स्तर के कारण ऐसी स्थिति ही हमारी बनी हुई है। हम लगातार पानी की कमी का सामना कर रहे हैं—पीने के लिए, कृषि के लिए, उद्योग के लिए और सैनीटेशन के लिए। हम प्रतिदिन अपने जीवन में अखबारों में, टैलीविज़न पर, सोशल मीडिया पर प्राकृतिक स्रोतों को बचाने, सम्भालने संबंधी बातें सुनते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार वर्ष 2030 तक पूरे विश्व में पानी की मांग 40 प्रतिशत  तक बढ़ जाएगी और लगभग 2 अरब 80 करोड़ लोग जो अलग-अलग देशों में रहते हैं, पानी की कमी का सामना करेंगे। 
21वीं सदी में भी देश के कई राज्यों में अनेक ऐसे गांव या क्षेत्र हैं, जहां अभी भी महिलाओं को कई किलोमीटर दूर तक पानी भरने के लिए जाना पड़ता है और थोड़े-से पानी को ही पूरे दिन के कार्यों हेतु प्रयुक्त करना पड़ता है।
समाज के ज्यादातर वर्गों के लोगों  खास तौर पर महिलाओं का एक आम स्वभाव बन गया है कि पानी की सम्भाल न होने की पूरी ज़िम्मेदारी सरकारों या प्रशासन के सिर पर डाल दी जाती है, जैसे कि एक देश के नागरिक होने के नाते हमारी  प्राकृतिक स्रोतों के प्रति कोई ज़िम्मेदारी नहीं। एक नारी यदि मन में कुछ ठान ले या किसी भी कार्य को करने का प्रयास करे तो वह ज़रूर उसे पूरा करने में सफल होती है। हम सभी को एक बात समझनी चाहिये कि पानी को बचाना बेहद ज़रूरी है। हर किसी की छोटी-छोटी कोशिशों से ही इस बहुमूल्य खज़ाने को हमेशा के लिए सम्भाल कर रखा जा सकता है। एक महिला यह प्रयास अपने घर से ही शुरू कर सकती है। अपने बच्चों को, पारिवारिक सदस्यों को और सबसे ज़रूरी घरों में, दुकानों, कार्यालयों में, हर तरह के सहायकों को पानी के कम हो रहे जल स्तर के बारे में उसे बचाने संबंधी जागरूक करना बहुत ज़रूरी है। अक्सर ही देखने में आता है कि चाहे रसोई के सहायक, माली आदि पानी का बिना ज़रूरत उपयोग करते हैं, परन्तु उनमें और हमारे जैसे शिक्षित लोगों में इतना ही अंतर होता है कि वे लोग पानी को बचाने के प्रति जागरूक नहीं हैं तथा हम लोग जागरूक होते हुए भी बेहतरी की ओर कोई पग नहीं उठाते। 
अत: अन्यों को जागरूक करने के साथ-साथ हमें स्वयं भी चाहिए कि अपने घर में छोटी-छोटी वस्तुओं जैसे रसोई में, बाथरूम में और शेष अन्य कार्यों के लिए पानी का सदुपयोग करने संबंधी अवश्य सचेत हों।
यदि महिला घर में  ऐसा माहौल पैदा करती है तो बच्चे बचपन से ही वही बातें सीखेंगे और अपने स्कूल में, पार्कों में, प्रत्येक स्थान पर भी वे इस शिक्षा को लागू करेंगे। जब सभी पारिवारिक सदस्य इस सीमा तक जागरूक हो जाएंगे कि गिलास में उतना ही पानी डालना है जितने की हमें प्यास है, तथा बाद में बचे हुए पानी को फैंकना नहीं, तो समझो कि हमारा एक स्तर पास हो गया है। घरेलू  और कामकाजी महिलाओं को अपनी सोसायटियों, कालोनियों में सहायकों के लिए जागरूकता शिविर या लैक्चर रखने चाहिएं। इस तरह के प्रयासों से ही इस मुहिम को बड़ा प्रोत्साहन मिलेगा और आगे से आगे यह लहर चलती रहेगी। जो लोग पानी के बचाव के प्रति बेहद संवेदनशील होते हैं, वे पानी की प्रत्येक पक्ष से बचत के लिए सचेत तो होते ही हैं। इसके साथ ही वे वर्षा के पानी को सम्भालने  (ह्म्ड्डद्बठ्ठ द्धड्डह्म्1द्गह्यह्लद्बठ्ठद्द) का भी अच्छा प्रयास करते हैं, जो आज समय की बड़ी ज़रूरत है। महिलाओं द्वारा घर में शुरू किया गया पानी सम्भालने का प्रयास बच्चों से लेकर बड़ों तक के मनों पर बहुत प्रभाव डालेगा, जिससे वे घर से बाहर भी इस मुहिम को आगे बढ़ाएंगे। 
यदि हम अपने जान-पहचान के लोगों में जागरूकता पैदा करने में सफल हो गए तथा वे लोग आगे  दो अन्य लोगों को जागरूक करने में सफल हो गए तो इस तरह यह क्रम धीरे-धीरे हमारे समाज के अधिकतर वर्गों पर प्रभाव डालता रहेगा। नारी को अब यह बीड़ा अपने सिर पर उठा लेना चाहिए  ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियां हमेशा एक ही नारा लगायें कि पानी की सम्भाल करो और धरती को बचाओ। हमेशा याद रखो और अन्यों को भी कराओ कि पानी नहीं तो जीवन नहीं। हम सचेत न हुए तो न नीला (नदियां) रहेगा और न ही हरा (धरती)। अत: इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, अब समय आ गया है कि जागो और शेष समाज को भी जगाओ।