घोर लापरवाही का नतीजा है वैक्सीन व ऑक्सीज़न की कमी

उत्तर प्रदेश के बहुत से ग्रामीण क्षेत्रों, खासकर आगरा मंडल में, यह परम्परा थी, जो अपवाद के तौरपर अब भी कहीं शेष है, कि तेहरवीं पर आयोजित ब्रह्म-भोज में आस-पास के पूरे-पूरे गांवों को न्यौता दिया जाता था। ज़ाहिर है इसके आयोजन में अक्सर मृतक के आश्रित परिवार का घर व खेत बिक जाते या वह कज़र् के जबरदस्त बोझ तले दब जाता, लेकिन इलाके में किसी की अगली तेरहवीं तक उसी ब्रह्म-भोज की चर्चा रहती। अलग संदर्भ के साथ कुछ ऐसी ही परम्परा उत्तर पश्चिम प्रशांत तट के अनेक देशज अमरीकी समुदायों में भी है जिसे ‘पॉटलैच’ कहते हैं, इसका शाब्दिक अर्थ तो ‘उपहार’ है, लेकिन इसमें होता यह है कि सामाजिक व राजनीतिक सम्मान व प्रशंसा अर्जित करने के लिए समुदाय का कोई सदस्य विस्तृत दावत का आयोजन करता है जिसमें हर किसी को आमंत्रित किया जाता है। यह दावत उस समय तक चलती है जब तक संबंधित सदस्य का आर्थिक दिवाला  निकल जाये। 
इस लेख को पढ़ना जारी रखिये, घर लुटाकर ‘सामाजिक व राजनीतिक सम्मान व प्रशंसा अर्जित’ करने का प्रतीक भी स्वत: ही स्पष्ट हो जायेगा। आईसीएमआर के डाटा से मालूम होता है कि जिन व्यक्तियों ने वैक्सीन की पहली या दूसरी खुराक ले ली है, उनमें से सिर्फ  0.02-0.04 प्रतिशत को ही कोविड-19 संक्रमण हुआ है। इसका अर्थ यह है कि सभी वयस्कों का जितना जल्दी संभव हो सके, टीकाकरण करा दिया जाये। लेकिन अब जब कोविड संक्रमण राकेट की गति पकड़ चुका है तो भारत में लगभग 8 प्रतिशत को ही वैक्सीन की पहली खुराक मिल पायी है। दूसरे शब्दों में बहुत कम भारतीयों का ही टीकाकरण हो पाया है संक्रमण की घातक दूसरी लहर पर किसी भी प्रकार का प्रभावी नियंत्रण स्थापित करने के लिए। इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि कोविड को मात देने के लिए मानवता के तरकश में केवल एक ही तीर है—वैक्सीन, जिससे तीसरी व चौथी लहर को रोका जा सकता है। युद्धस्तर पर व्यापक टीकाकरण की आवश्यकता है, लेकिन वैक्सीन की चिंताजनक कमी है कि टीकाकरण में तेजी लाने के उद्देश्य से घोषित चार दिन (11 से 14 अप्रैल) के ‘टीका उत्सव’ के तीसरे दिन तकरीबन 25 लाख खुराक दी गईं, जबकि 5 अप्रैल को 43 लाख से अधिक ने टीकाकरण कराया था। अब जब एक मई से 18 से 44 वर्ष आयु वर्ग के लिए भी टीकाकरण खोल दिया गया है, तो वैक्सीन की कमी को अधिक शिद्दत से महसूस किया जायेगा।
गौरतलब है कि जिन देशों ने अपनी अधिकतर जनता का टीकाकरण करा दिया है, उनमें अस्पतालों में भर्ती होने और मौतों में काफी कमी आयी है, जैसा कि इंग्लैंड, अमरीका आदि के डाटा से ज़ाहिर है। इजरायल में तो अब सार्वजनिक स्थलों पर मास्क लगाने की ज़रूरत भी नहीं है। कनाडा के पास इतनी मात्रा में वैक्सीन हैं कि वह अपनी जनसंख्या का दस बार टीकाकरण कर सकता है और अमरीका यही काम चार बार कर सकता है लेकिन वैक्सीन का सबसे अधिक उत्पादन करने वाले भारत में वैक्सीन की ही कमी है, क्यों? सबसे पहली बात तो यह है कि भारत ने वैक्सीन निर्माताओं से खरीद समझौता बहुत देर से किया। अमरीका, यूरोपीय संघ आदि ने मई 2020 में ही ऑपरेशन वार्प स्पीड के तहत खरीद समझौते कर लिए थे, कम्पनियों को एडवांस पैसा दे दिया था वैक्सीन विकास व उत्पादन को तेज करने के लिए। अमरीका ने नौ अलग निर्माताओं से एक बिलियन खुराक से अधिक की डील पक्की कर दी थी। 
हालांकि मोदी सरकार पिछले साल से ही सीरम इंस्टीट्यूट से वार्ता कर रही थी और उसने पहली 100 मिलियन खुराकों के लिए प्रति खुराक 200 रुपये देने की हामी भी भर ली थी, लेकिन उसने कागज पर हस्ताक्षर जनवरी 2021 तक नहीं किये थे, जिससे वह वैक्सीन उपलब्ध कराने के मामले में बहुत पिछड़ गई। इससे भी महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि सरकार ‘सामाजिक व राजनीतिक सम्मान व प्रशंसा अर्जित’ करने के लिए पाकिस्तान सहित 90 देशों को वैक्सीन निर्यात करने में व्यस्त थी। कुछ को तो मुफ्त में ही, और इस तथ्य को पूर्णत: अनदेखा कर दिया गया कि दवाओं व स्वास्थ्य इन्फ्रास्ट्रक्चर के अभाव में हमारे अपने देश को वैक्सीन की वरीयता पर आवश्यकता है, खासकर इसलिए कि इस समय हम विश्व में कोविड संक्रमण के सबसे ज्यादा दैनिक केस रजिस्टर कर रहे हैं।
जब खुद मेडिकल ऑक्सीजन की जरूरत थी तो निर्यात दोगुना क्यों किया गया? घर फूंककर बस्ती में उजाला करना कहां की सियासी अक्लमंदी है? ऑक्सीजन की कमी केवल बढ़ते मरीज़ों के कारण नहीं है। अब देश में हर जगह से ऑक्सीजन की कमी की दुखद खबरें आ रही हैं, जिनमें से कुछ को सुनकर तो आंखें भर आती हैं। ये तीन बातें स्थितियों का आकलन दर्शाती हैं। एक, लखनऊ के मायो अस्पताल ने नोटिस चस्पा किया कि ‘उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री/केंद्र सरकार से निरंतर आग्रह के बाद भी पर्याप्त ऑक्सीजन सप्लाई नहीं हुई है, इसलिए रोगियों के परिजनों से आग्रह है कि वे उच्च केन्द्रों में अपने रोगियों को ले जायें’। दो, 38-वर्षीय लैब तकनीशियन अंशुल उपाध्याय ने कोविड से मरने से पहले वीडियो पोस्ट किया, ‘मेरा सही से उपचार नहीं हो रहा है... जो भी आता है, नब्ज देखकर चला जाता है... अगर एक हेल्थ वर्कर की यह स्थिति है तो आम आदमी पर क्या गुजर रही होगी?’ 
तीसरा, गाज़ियाबाद की एक बच्ची का सवाल है कि उसने अपनी गुल्लक तोड़कर पीएम केयर्स में 5100 रुपये दिए थे। अब जब उसको सांस लेने में तकलीफ  है तो ऑक्सीजन की व्यवस्था क्यों नहीं है? इस चिंताजनक स्थिति का स्वत: ही संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसे ‘नेशनल हेल्थ इमरजेंसी’ कहा है। अब अपनी ही गलत नीतियों के कारण बिगड़ी स्थितियों को सुधारने के लिए सरकार रूस से वैक्सीन और खाड़ी व सिंगापुर से ऑक्सीजन आयात करने का प्रयास कर रही है, और चाहती है कि कोई उससे सवाल न करे।         
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर