रासायनिक खादों का उपयोग कम करने के लिए सब्ज़ खाद विधि अपनाएं

गेहूं की कटाई लगभग खत्म हो चुकी है। तकरीबन 35 लाख हैक्टेयर रकबा इस समय फसल रहित है। कुछ किसानों ने मंडीकरण करके ब्रिकी कर ली है और कुछ इसमें व्यस्त हैं। गेहूं की फसल से खाली की गई भूमि पर कुछ किसान तूड़ी बनाने के कार्य में लगे हुए हैं।  खरीफ की मुख्य फसल 39 लाख हैक्टेयर रकबे पर काश्त किये जाने वाली धान और बासमती जून के मध्य से लगनी शुरू होगी। कपास-नरमा लगभग 5 लाख हैक्टेयर भूमि पर लगाया जाना है। इसकी बिजाई में भी अभी देर है। गर्म ऋतु की मूंगी की फसल काश्त करने का समय निकल गया है। चाहे संयुक्त राष्ट्र की खाद्य एवं कृषि संस्था (एफ.डी.ओ.) द्वारा फलों तथा सब्ज़ियों की फसलों संबंधी जागरूकता पैदा करने के लिए यह अंतर्राष्ट्रीय वर्ष घोषित किया गया है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा घरेलू स्तर पर सभी सब्ज़ियां और फल पैदा करने के लिए घरेलू बगीची तथा छतों के ऊपर बगीची आदि के माडल बताये गये हैं और इसके द्वारा विभिन्न किस्मों के फलों के पौधे एवं सब्ज़ियों की पौध भी उपलब्ध करवाई जा रही है परन्तु इस समय फलों और सब्ज़ियों की काश्त भी संभव नहीं। किसानों को खरीफ की फसलों के लिए पौष्टिक तत्व उपलब्ध करवाये जाने का प्रयास करना चाहिए और ये खुराकी तत्व सब्ज़ खाद से उपलब्ध किये जा सकते हैं। आज़ादी मिलने के बाद सब्ज़ इन्कलाब के आगाज़ तक फसलों के लिए पौष्टिक तत्व रूढ़ी खादों द्वारा उपलब्ध किये जाते थे। बाद में अधिक उत्पादन देने वाली फसलों की किस्में विकसित होने और निरन्तर बढ़ रही आबादी के मद्देनज़र अनाज की पैदावार बढ़ाने की आवश्यकता थी, जिस के लिए रासायनिक खादों का उपयोग शुरू हुआ और सरकार द्वारा भी इन खादों के उपयोग पर बल दिया गया। आज एक वर्ष की रासायनिक खादों की खपत 225 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर पर पहुंच गई है और फसली घनत्व भी बढ़ कर 200 से ऊपर चला गया है। कीड़े-मकौड़े और बीमारियां आने के बाद कीटनाशकों के उपयोग में वृद्धि हुई है। 
ज़मीन की कम हो रही उपजाऊ शक्ति और मनुष्य के स्वास्थ्य संबंधी तथ्यों को मुख्य रख कर आज आवश्यकता है सब्ज़ खाद, देसी खाद, बायो ख्रादों, ब्लू ग्रीन एल्गी (नील रहित काई), वर्मीकम्पोस्ट जैसी गैर-रासायनिक खादों की। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग सब्ज़ खाद के लिए जंतर (ढैंचा) सबसिडी पर दे रहा है। जंतर का 20 किलो का थैला 620 रुपये में उपलब्ध है। जंतर हरी खाद के लिए बीजी जाने वाली महत्वपूर्ण फसल है। इसे खाद के तौर पर खेत में दबाने से नाईट्रोजन उपलब्ध होती है और भूमि की हालत में भी काफी सुधार आता है। मैरा या नीम रेतीली ज़मीनें जंतर बीजने के लिए बहुत बढ़िया हैं। हरी खाद के लिए 20 किलो जंतर का बीज प्रति एकड़ ड्रिल से 20 से 22 सैंमी. की दूरी पर अप्रैल से मई में बीज देना चाहिए। इसमें 75 किलो सिंगल सुपरफास्फेट प्रति एकड़ बिजाई के समय डाल देना चाहिए, परन्तु ज़मीन में पहले बीजी गई फसल के लिए फासफोर्स की उचित मात्रा न प्रयुक्त की गई हो। हरी खाद के लिए बीजी गई जंतर की फसल को तीन से चार सिंचाईयों की आवश्यकता होती है। 
सब्ज़ खाद के उपयोग से रासायनिक खादों की आवश्यकता कम की जा सकती है और भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ाई जा सकती है। सब्ज़ खाद को सफल करने के लिए मई में पंजाब राज्य बिजली निगम द्वारा ट्यूबवैलों की बिजली बढ़ाने की आवश्यकता है। नहरी पानी की सप्लाई भी बढ़नी चाहिए। हरी खाद के बड़े लाभ हैं जैसे भूमि की निचली सतहों से जड़ों के द्वारा पोष्टिक तत्वों का ऊपर आना, कलराठी ज़मीनों में कल्लर सुधारना, ज़मीन की उपजाऊ शक्ति बढ़ाना और हरी खाद के गलने-सड़ने से ज़मीन के तत्वों का घुलनशील बन कर पौधे की खुराक का हिस्सा बन जाना। रूढ़ी खाद की उपलब्धता तो आजकल असम्भव है। किसान सब्ज़ खाद या फिर ब्लू ग्रीन एल्गी या एजोटोबैक्टर का उपयोग करके रासायनिक खादों की मात्रा कम कर सकते हैं और ज़मीन की उपजाऊ शक्ति बढ़ा सकते हैं। इन खादों में भूमि की पी.एच. को पौधों के अनुकूल बना कर ज़रूरी पोषक तत्वों को उपलब्ध करने की समर्था है। 
रासायनिक खादों का उपयोग कम करने हेतु किसान गोबर से वर्मीकम्पोस्ट बना कर भी उपयोग कर सकते हैं। केंचुओं के उपयोग से वर्मीकम्पोस्ट तैयार की जा सकती है। इससे रसोई में सब्ज़ियों के अवशेष और गोबर आदि को उपयोग किया जा सकता है। याद रहे कि वर्मीकम्पोस्ट में विशेष तरह के केंचये उपयोग किये जाते हैं, बारिश में निकलने वाले केंचये नहीं।  खरीफ में लगभग 6.5 लाख हैक्टेयर रकबे पर बासमती की काश्त की जाएगी। बासमती के लिए रासायनिक खादों की बहुत कम आवश्यकता है।