हिमाचल में असामयिक हिमपात का प्रकोप

हिमाचल प्रदेश में पिछले दिनों हुए असामयिक हिमपात ने प्रदेश से बाहर के पर्यटकों को बेशक थोड़े आनन्द की अनुभूति कराई हो, परन्तु प्रदेश के किसानों एवं बागवानों के चेहरे मुरझाये हैं। उन्हें प्रकृति के एक विपरीत झोंके के कारण अपनी आशाएं एवं उम्मीदों पर तुषारापात हुआ भी दिखाई देता है। इस हिमपात के कारण सेब और अन्य फलदार बाग-बगीचों को काफी नुकसान पहुंचने की सम्भावना है। खास तौर पर गुठली वाले फलों के बौर को भी नुकसान पहुंचा है। जो फल पकने की प्रक्रिया के दौरान थे, वे द़ागी हो कर गिरे भी हैं। इस हिमपात के साथ चूंकि हल्की वर्षा भी हुई थी, अत: प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में गेहूं की बोई गई और पक गई फसल के साथ सब्ज़ियों को भी नुकसान पहुंचा है। इस प्रकार प्रदेश के किसान और बागवान, दोनों अपनी-अपनी फसल को हुए नुकसान से प्रभावित हुए हैं। यह संयोग भी कई वर्षों के बाद हुआ है कि अप्रैल मास अन्तिम दिनों में निचले पहाड़ी क्षेत्रों में हिमपात हुआ हो, अथवा वर्षा भी हुई हो।
हिमाचल प्रदेश एक दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र है, और इसकी आय के बड़े स्रोत पर्यटन और बागवानी हैं। पर्यटन पर कोरोना महामारी का प्रकोप जारी है, और बागवानी एवं कृषि पर असामयिक हिमपात और वर्षा का अंकुश भारी पड़ा है। हम समझते हैं कि सरकारें तो प्राय: इस प्रकार के असामयिक प्रहारों से स्वयं को बचा-बचा लेती हैं, परन्तु आम किसान और बागवान की नियति फिर पराये हाथों पर जा निर्भर होती है। ऐसे में उनकी एकमात्र टेक सरकारी मदद और दया-दृष्टि पर निर्भर होकर रह जाती है। नि:सन्देह प्रदेश सरकार को ऐसी विपरीत स्थितियों में जबकि लोगों को कोरोना-निरोधी अंकुशों के साये में जीना पड़ रहा है, इस प्राकृतिक आपदा से पीड़ित एवं प्रभावित लोगों का हाथ थामने के लिए आगे आना चाहिए। सरकार का यह पग किसानों एवं बागवानों को तो राहत प्रदान करेगा ही, सरकार के अपने हित में भी यह एक अच्छा फैसला सिद्ध होगा।