महामारी एवं रोज़ी-रोटी की समस्या

कोरोना महामारी के तेज़ी से बढ़ते प्रभाव को देखते हुये पंजाब सरकार की ओर से पूर्व घोषित पाबन्दियों में वृद्धि करते हुये इन्हें और कड़ा करने की घोषणा की गई है। चाहे एक दिन पूर्व स्वास्थ्य मंत्री ने यह संकेत दिया था कि इस महामारी को फैलने से रोकने के लिए प्रदेश में पूर्ण तालाबन्दी की जा सकती है परन्तु उसके अगले ही दिन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने इससे इन्कार करते हुये ये निर्देश दिये कि नये निर्देशों का कड़ाई से पालन करवाया जाये जिनमें कुछ आवश्यक वस्तुओं की दुकानें खुलने के बिना अधिकतर समय के लिए और भिन्न-भिन्न दुकानों को बंद रखने के निर्देश शामिल हैं। यहां तक कि खान-पान की दुकानें एवं अन्य संस्थानों को भी बंद करने के निर्देश दिये गये हैं। केवल होटलों एवं ढाबों को खाने वाली वस्तुओं की घरों को सप्लाई करने की छूट दी गई है। अधिकतर उद्योगों के साथ-साथ अन्य बहुत-से संस्थानों को बंद करने के आदेश भी जारी किये गये हैं। इससे आम लोगों में जहां और भी सहम पैदा हो गया है, वहीं उन्हें अपनी रोटी-रोज़ी की भी चिन्ता पड़ गई है। 
पहले ही अनेक कारणों के दृष्टिगत प्रदेश की आर्थिकता लड़खड़ाते हुये दिखाई दे रही है जिसे रोकने की बजाये महामारी को रोकने हेतु की जा रही पेशबन्दियों के दृष्टिगत इसके पूरी तरह से ज़मीन पर गिर पड़ने की सम्भावनाएं पैदा हो गई हैं। हम पूर्ण तालाबन्दी के किसी भी प्रकार से पक्ष में नहीं हैं। आम एवं ़गरीब लोगों के लिए ऐसी अवस्था अतीव घातक सिद्ध होगी। उत्पन्न हुई कमियां जीवन को पटरी से उतार देंगी। सोचने वाली एवं चिन्ताजनक बात यह है कि खास तौर पर रोज़ कमाने एवं परिवार को पालने वाला व्यक्ति किस प्रकार गुज़ारा करेगा। उद्योग भी बंद, व्यापार भी खत्म, जीवन की पूरी गतिविधि का ही स्थिर हो जाना किस प्रकार का माहौल सृजित कर सकता है, इसकी समझ आना कठिन नहीं है। यह तो ़गर्दिश का दौर लम्बा हो जाने के कारण चक्की के दो पाटों में पिसते जाने की निशानी है। एक ओर महामारी एवं दूसरी ओर रोज़ी-रोटी को देखते हुये पंजाब भर में आम लोग गली-बाज़ारों में निकल आये हैं। उन्होंने बीमारी से रोटी-रोज़ी को अधिमान दिया है। सरकार के कड़े नये निर्देशों के विरुद्ध लोगों का खुल कर विरोध में आ जाना भी कल को प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है। यह बात भी स्पष्ट हो चुकी है कि वर्ष भर से अधिक समय में इस पक्ष से न तो केन्द्र एवं न राज्य सरकारें कोई ठोस नीति तैयार कर सकी हैं तथा न ही इसका मुकाबला करने के लिए अधिक साधन ही जुटा सकी हैं। अस्पतालों में अधिकतर स्थानों पर निराश्रित मरीज़ों की कतारें लगी दिखाई देती हैं। दवाइयों की कमी बुरी तरह से खटकने लगी है। आक्सीज़न एवं आवश्यक दवाइयों की काला-बाज़ारी का धंधा बढ़ने लगा है तथा मरीज़ों की हालत अतीव खस्ता हुई दिखाई देती है। 
तालाबन्दी के बिना प्रयुक्त की जाने वाली सावधानियों को सख्ती के साथ लागू करना प्रशासन की ज़िम्मेदारी है परन्तु ऐसा करते हुए लोगों के मुंह से रोटी नहीं छीनी जा सकती। इसके लिए कोई अन्य तरीके ढूंढने एवं अपनाने पड़ेंगे। सभी तरफ उत्पन्न हो रही हाहाकार के लिए ढाढस के उपायों का कोई प्रबन्ध करना पड़ेगा। सम्भवत: इस नये हमले से उत्पन्न हुई कमियों को प्रत्येक ढंग से दूर करना पड़ेगा। पूर्ण तालाबन्दी भूख पैदा करेगी। इससे उत्पन्न हुई निराशा कल को प्रशासन के लिए शांति-व्यवस्था की ऐसी समस्या खड़ी कर देगी जिसे सम्भाल पाना प्रशासन के लिए अत्यधिक चुनौतीपूर्ण बन जाएगा। आगामी दिनों में प्रशासन की पुख्ता योजनाबंदी ही उत्पन्न हो रहे इन अतीव ़खतरनाक हालात को सम्भालने के समर्थ हो सकेगी। इसकी अनुपस्थिति प्रदेश में अतीव बेचैनी पैदा करने के समर्थ है जिसका तुरंत कोई सम्भव हल निकाला जाना आवश्यक है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द