मध्य युग की याद दिलाता है कॉर्डोबा शहर

स्पेन कट्टर कैथलिक देश है, लेकिन अनुमानित ‘ऐतिहासिक गलतियों’ से ग्रस्त नहीं है। एक समय में इसका नाम अन्दुलिस था, जिसका पुराना शहर कॉर्डोबा आज भी बहुत सुंदर है और अक्सर एक दूसरे के टकराव में रहने वाले तीन धर्मों- यहूदी, ईसाई व इस्लाम- का वारिस है, जिनकी यादों व स्मारकों को प्यारे व वैज्ञानिक अंदाज में सुरक्षित रखा गया है। 1236 से पहले इस्लाम स्पेन का प्रमुख धर्म था, जिसके मुस्लिम शासकों ने 10वीं शताब्दी में कॉर्डोबा को यूरोप का सबसे बड़ा व सबसे सुसंस्कृत शहर बना दिया था। अनेक खलीफाओं के दौर में यहूदी धर्म ने जबरदस्त तरक्की की थी। कॉर्डोबा के मुस्कुराते लोगों ने हमें सुनिश्चित किया, हम वास्तव में बहुत आराम पसंद व सहज लोग हैं। हमें गार्डन, फूल, नाजुक जेवर, सड़कों के किनारे बने कैफे में दोस्तों से मिलना जैसी चीजें पसंद हैं। आप जो थोड़ा समय यहां बिताओगे उसमें ही इस बात का अंदाजा हो जायेगा। हमें अंदाजा हो गया। कैल्लेजा डे लॉस फ्लोर्स की पतली गलियों में चहलकदमी करते हुए हमने पुती हुई दीवारों पर गमले लटके हुए देखे जिनमें फूल खिल रहे थे। लोहे के सुंदर दरवाजों में से झांका तो अंदर आंगन में फव्वारे व पौधों की ठंडक थी। शहर की मुस्लिम विरासत पूरी तरह से झलक रही थी। खुले आंगनयुक्त मकान न सिर्फ  वेंटिलेशन उपलब्ध करा रहे थे बल्कि परिवार की महिलाओं की प्राइवेसी भी सुनिश्चित कर रहे थे। लोग खुलकर चांदी के जेवरों की खरीदारी कर रहे थे। सभी डिजाइन मूरिश मूल के थे। एक महिला ने बताया, मैं भारत गई हूं। मुझे मालूम है कि तुम्हारी महिलाओं को सोना बहुत पसंद है, जो शानदार कपड़ों के साथ अच्छा लगता भी है। लेकिन अधिकतर मुस्लिम सोने को दिखावा समझते हैं। फिर परम्परागत मूरिश महिलाएं जो सादे रंग के कपड़े पहनती हैं, उनके साथ चांदी अधिक अच्छी लगती है। पतली गलियों से निकलकर हम चौड़ी सड़कों पर आ गये। खुली हवा में, रंग बिरंगे छातों के नीचे लोगों की टोलियां बैठी हुई थीं, गहरी वार्ता में व्यस्त। स्पेनी लोग सिर्फ भूख शांत करने के लिए भोजन नहीं करते हैं। उनके लिए प्रत्येक भोजन प्रसन्न सामाजिक अवसर है और हमनें पुरानी बातें सुनने के लिए हर भोजन के लिए दो घंटे आवंटित कर दिए थे, विशेषकर अन्दुलिस प्रांत में। स्पेन के इस दक्षिणी हिस्से में घर से बाहर बैठने की आरामदायक संस्कृति है, जैसे मध्ययुग की सभ्यता किसी वजह से आधुनिक से मिल गई हो। इसका हम पर नाटकीय प्रभाव पड़ा जब हमने महान कैथेड्रल में प्रवेश किया जिसे आज भी स्थानीय लोग ला मेज्कुइत (मस्जिद) कहते हैं। इतिहास बताता है कि पहले यह सेंट विन्सेंट की चर्च थी जिसे जर्मनी मूल के विसिगोथ शासकों ने बनवाया था, जो कॉर्डोबा पर मूर मुस्लिमों से पहले राज करते थे। मूरों ने आधी चर्च को खरीद लिया और कुछ समय तक धार्मिक भाईचारे की शानदार मिसाल के तहत दोनों मुस्लिमों व ईसाइयों का साझा पूजा स्थल था। फि र मुस्लिमों की बढ़ती संख्या को देखते हुए खलीफ ा अब्दुर्रहमान ने मोटी कीमत देकर और शहर में अन्य चर्च निर्माण की अनुमति देकर 784 में चर्च का बाकी आधा हिस्सा भी खरीद लिया और इस तरह आहिस्ता आहिस्ता एक महान मस्जिद की बुनियाद पड़ी। यह आरामदायक प्रक्रिया थी। लगातार चार शासकों ने मस्जिद के निर्माण व विस्तार की निगरानी की। आखिरकार 200 वर्ष में 24,000 वर्ग मीटर पर इस मस्जिद का निर्माण पूरा हुआ। फि र 1236 में ईसाई राजा फरदीनंद ने कॉर्डोबा पर कब्जा किया। लेकिन इसके 200 साल बाद जिस चर्च को महान मस्जिद के रूप में रिडिजाइन किया गया था, उसे फि र एक प्रभावी कैथेड्रल में बदल दिया गया। इसमें मूरिश, स्पेनी बरोकुए व रेनैस्सांस आर्किटेक्चर का ऐसा शानदार मिश्रण है कि शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता, इसकी सुन्दरता को देखकर आंखें खुली की खुली रह जाती हैं। इस प्रभावशाली बिल्डिंग की सुन्दरता को निहारने के लिए आपका आर्किटेक्ट होना आवश्यक नहीं है। इसके बाद यूरोपीय आर्किटेक्चर शैली देखने को मिलती है, जिसे यूरोप के पूजनीय कैथेड्रलों में बहुत पसंद किया जाता है। इन सभी अलग अलग सांस्कृतिक मुहावरों का तालमेल गजब है। कैथेड्रल के फ र्श में एक जगह इस स्थान पर बनी पहली चर्च का मूल विसिगोथ चित्रकारी भी देखने को मिली। कॉर्डोबा छोड़ते हुए बहुत दु:ख हुआ। इस शहर में जो शांति व ठहराव है वह दूसरे शहरों में देखने को नहीं मिलता है।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर