भौतिक शास्त्र वैज्ञानिक डा. रोहिणी गोडबोले

इस 21वीं सदी में भी जब महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं, अब भी पुरुषों की दुनिया में दबी जुबान से कहा जा रहा है कि गणित व साइंस महिलाओं के क्षेत्र नहीं हैं। हालांकि इसे सार्वजनिक तौर पर कहते हुए लोग अब झिककते लगते हैं, लेकिन व्यवहार में जो कुछ हो रहा है, उससे अंदाजा लगता है कि बहुसंख्यक पुरुषों की धारणा ऐसी ही है। यूं तो भारत में महिला वैज्ञानिकों की संख्या सैकड़ों और हजारों नहीं बल्कि लाखों में है, जिन्होंने तमाम छोटे से लेकर बड़े काम विज्ञान को समृद्ध करने के लिए किये हैं। लेकिन हम यहां अगले कुछ हफ्तों तक हिंदुस्तान की ऐसी महिला वैज्ञानिकों के बारे में हर बार एक लेख देंगे, जिनको लोग जानते नहीं मगर उनका काम बहुत महत्वपूर्ण है डॉ. रोहिणी गोडबोले भारत में न केवल एक महिला वैज्ञानिकों की हिमायती, बल्कि एक साइंस कम्युनिकेटर के तौर पर भी काफी लोकप्रिय और विश्वविख्यात थ्योरिटिकल पार्टिकल भौतिकशास्त्री के रूप में जानी जाती हैं। वह 35 वर्षों तक हिग्स पार्टिकल (2013 में हुई एक मौलिक खोज जिसने साबित कर दिया कि कणों में द्रव्यमान होता है) की खोज में शामिल थीं। मुंबई की भौतिक विज्ञान की वैज्ञानिक रोहिणी गोडबोले को फ्रांस के प्रतिष्ठित सम्मान ऑर्डर नेशनल ड्यू मेरिट से सम्मानित किया गया है। रोहिणी को ये पुरस्कार महिलाओं को विज्ञान के क्षेत्र में आने के लिए प्रोत्साहित करने और फ्रांस और इंडिया के बीच सहयोग देने के कारण दिया गया है।
रोहिणी गोडबोले का जन्म 1952 में पुणे के नजदीक एक छोटे से गांव में हुआ था। वह एक ऐसे परिवार में पैदा हुईं जो शिक्षा को आवश्यक मानता था और ये चारों बहनें विज्ञान से ही जुड़ीं। उन्होंने एक बार कहा था, ‘मेरे दादाजी ने तय किया था कि किसी भी बेटी का विवाह मैट्रिक की पढ़ाई पूरी करने से पहले नहीं करेंगे और मेरी दादी एकमात्र ऐसी रिश्तेदार थीं, जिन्होंने रेडियो पर मेरा इंटरव्यू सुनने के बाद मुझे अपने एक प्रश्न के साथ पत्र लिखा था। मेरा परिवार ऐसा था जो लड़कियों के करियर बनाने को अजीब नहीं मानता था।’ रोहिणी ने फि जिक्स, केमेस्ट्री और बायोलॉजी की पढ़ाई करके अपने आपको स्टेट मेरिट स्कॉलरशिप के लिए तैयार किया। वह अपने स्कूल में स्कॉलरशिप पाने वाली पहली लड़की थीं। उनकी गणित की टीचर श्रीमती सोहनी ने रोहिणी के भीतर ‘स्टेम’(साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग, मैथमैटिक्स) की क्षमता को पहचाना और उसके बाद वह विज्ञान संबंधी पुस्तकों को पढ़ने लगीं। विज्ञान संबंधी तरह-तरह की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने लगीं। उनके भीतर उस उम्र में गणित और भौतिकशास्त्र के प्रति रुचि जाग गई थी, जिसमें उन्हें यह भी मालूम नहीं था कि इन विषयों को लेकर शोध भी किया जा सकता है। पहले तो वह गणित विषय लेकर आगे बढ़ना चाहती थीं, लेकिन इस डर से कि कहीं उन्हें नौकरी न मिली तो क्या होगा, वह भौतिकशास्त्र की ओर मुड़ गईं। कॉलेज में टॉप करने के तुरंत बाद ही बैंक में नौकरी का प्रस्ताव मिल गया, जहां उनका वेतन अपने पिता के वेतन से अधिक था। लेकिन उन्होंने नौकरी को ठुकरा दिया, क्योंकि उन्हें शोध-कार्य करना था। इसके बाद परिवार के सहयोग से 1974 में अमेरिका रवाना हो गईं और न्यूयॉर्क के स्टोनी ब्रुक विश्वविद्यालय से कण भौतिकी (पार्टिकल फि जिक्स) में पीएचडी आरंभ की। रोहिणी का मानना है,  यह निर्विवाद है कि लड़कियों को रिसर्च के क्षेत्र में यदि आगे बढ़ना है तो परिवार, खासतौर पर माता-पिता का सहयोग मिलना बहुत जरूरी है। 1974 में रोहिणी के पीएचडी शुरू करने के तुरंत बाद ही क्वार्क स्टेट की खोज हुई। इसने पार्टिकल फिजिक्स के मानक मॉडल के साथ रोहिणी की यात्रा की। उन्होंने अपना करियर स्टैंडर्ड मॉडल की शुद्धता के परीक्षण और न्यूट्रिनो प्रतिक्रियाओं में हिग्स बोसोन की तलाश में लगाया। उन्हें यूरोप में पोस्टडॉक्टरल ऑफ र  थे, लेकिन रोहिणी को अपना देश और अपना घर याद आ रहा था। 1979 में अपनी पीएचडी पूरी करने के बाद, रोहिणी 5 साल बाद भारत लौट आयीं। उन्होंने मुंबई में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ  फं डामेंटल रिसर्च में 1979 में विजिटिंग फेलो के रूप में काम करना शुरू किया, इसके बाद 1982-1995 तक बॉम्बे विश्वविद्यालय में भौतिकी विभाग में व्याख्यान दिए। वह 1995 में सेंटर फॉर थियोरेटिकल स्टडीज, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ  साइंस (आईआईएससी), बंग्लुरु में एसोसिएट प्रोफेसर बनीं और जून 1998 से सेंटर फॉर आई एनर्जी फिजिक्स, भारतीय विज्ञान संस्थान बंग्लुरु में प्रोफेसर हैं। वह विशेष रूप से स्पार्टिकल्स और सुपरसिमेट्री सिद्धांत के काम के लिए जानी जाती हैं। फिजिक्स के क्षेत्र में उनके द्वारा किए गए सराहनीय कार्यों के लिए 2019 में उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया। इससे पहले 2009 में उन्हें सत्येंद्रनाथ बोस पदक मिला। रोहिणी ने अब तक तीन किताबों का संपादन किया। उनकी एक किताब ‘लीलावती की बेटियां’ भारत की महिला वैज्ञानिकों पर आधारित है। उन्होंने 150 से अधिक शोध पत्रों का लेखन भी किया है। रोहिणी ने अपना पूरा जीवन विज्ञान को समर्पित कर रखा है। रोहिणी गोडबोले न केवल अपने शिक्षण कार्य के माध्यम से बल्कि विज्ञान के करियर में आगे बढ़ने के लिए कई युवा वैज्ञानिकों को प्रेरित करते हुए भी, भारतीय विज्ञान के चेहरे को बदलने के लिए एक सच्चे पथ प्रदर्शक का कार्य कर रही हैं।

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