कोरोना संकट से उत्पन्न होता ‘वन नेशन, वन हेल्थ सिस्टम’

भारत में जब से कोरोना वायरस से संक्रमित कोविड-19 का प्रादुर्भाव हुआ है, तभी से ‘वन नेशन वन हेल्थ सिस्टम’ की नीति को अपना कर देश में स्वास्थ्य संबंधी एक ऐसा बुनियादी ढांचा तैयार करने की आवश्यकता महसूस की जा रही है कि देश की केन्द्र व राज्य सरकारें कोरोना जैसी महामारी के समय तथा उसके उपरान्त देशवासियों की रक्षा करने में सक्षम साबित हो सके तथा केन्द्र व राज्य सरकारों के आपसी संबंध भी सौहार्द रूप में बने हैं। चूंकि स्वास्थ्य को संविधान की समवर्ती सूची में शामिल किया गया है अत: नोडल एजेंसियां तो राज्यों के नियंत्रण में ही होती हैं जिससे राज्य सरकार अपनी जवाबदेही और प्राथमिकता को साबित कर सकने में स्वयं को स्थापित नहीं कर पाती।
विश्व में कोरोना जिस तेजी से फैला उससे आर्थिक रूप से सम्पन्न देशों की अर्थव्यवस्था भी डावांडोल हो गई। इसी प्रकार भारत को भी भारी आर्थिक, सामाजिक नुकसान झेलना पड़ा है। भारत में 77 वर्ष से स्वास्थ्य का ढांचा इस प्रकार है। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, जिला अस्पताल और मेडिकल कॅलेज स्तर का है परन्तु कोरोना के आक्रमण से यह ढांचा लगभग धराशायी हो गया है तथा इसे इन परिस्थितियों में पर्याप्त नहीं ठहराया जा सकता। भारत के सर्वजन आरोग्य के कल्याणकारी लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता।
भारत में 1950 से 2014 तक प्रतिवर्ष औसत गति से छ: मेडिकल कालेजों की स्थापना हुई जबकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अभी तक अपने कार्यकाल में 145 नए मेडिकल कॉलेजों की स्थापना की है अर्थात 29 मेडिकल कालेज प्रतिवर्ष स्थापित हो रहे हैं। 2025 तक 16 नए एम्स श्रेणी के कॅलेज भी प्रारम्भ हो जायेंगे। कॉलेजों में बुनियादी ढांचा मजबूत किया जा रहा है तथा फैकल्टी का प्रबंध किया जा रहा है। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एमएनसी) एक नया कानून लाया गया है। कोशिश यह है कि प्रत्येक जिले में एक सुपर स्पेशियल्टी अस्पताल की स्थापना हो जाये। देश में होम्योपैथी, आयुष, प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति भी चलन में है तथा नर्सिंग तथा पैरा मेडिकल सुविधाओं की स्थापना होनी चाहिए। देश में इन सब को मिला कर एक हेल्थ सिस्टम की शुरुआत होने से ही ‘वन नेशन वन हेल्थ सिस्टम’ का सपना पूरा करना होना। देश की केन्द्र सरकार को चिकित्सा शिक्षा, प्रशिक्षण व रोजगार पर भी स्पेशल ध्यान देना होगा। 
प्रत्येक जिले में पीजी सीट वाले मेडिकल कालेज खेलने की आवश्यकता है। अमरीका, यूरोप, ब्रिटेन में 25 प्रतिशत लोगों को मेडिकल क्षेत्र में रोज़गार प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से मिलता है जबकि भारत में मात्र 10 प्रतिशत लोग ही रोज़गार पाते हैं। मेडिकल क्षेत्र में रोजगार का कोई व्यवस्थित तंत्र देश में विकसित नहीं हो पाया है। मात्र डाक्टर, अस्पताल व मेडिकल स्टोर ही विनियमित किये हुए हैं, तथा और कुछ भी विनियमित नहीं है। मेडिकल शिक्षा को बुनियादी शिक्षण से जोड़ना आवश्यक हो गया है। इस समय पैरामेडिकल एवम् नर्सिंग क्षेत्र में लाखों युवाओं को प्रशिक्षण देकर चिकित्सालयों में तैनात किया जा सकता है। दूसरी तरफ देश के प्रत्येक व्यक्ति को सेहत मन्द रहने के विभिन्न गैर चिकित्सीय क्षेत्रों में प्रशिक्षण दिया जा सकता है। देश में विभिन्न सरकारी विभाग जैसे मानसिक स्वास्थ्य, सामाजिक न्याय, लोक स्वास्थ्य, जल जीवन मिशन, पोषण (महिला तथा बाल विकास), समाज कल्याण इत्यादि को समाहित करके स्वास्थ्य विभाग के दायरे को बढ़ाया जा सकता है। लोक स्वास्थ्य के विचार को आरम्भिक शिक्षा के साथ जोड़ा जाना चाहिए ताकि जागरूकता आरोग्य का कारक बन कर व्यवस्था के बोझ को कम कर सके।
स्वास्थ्य पर प्राथमिकता के आधार पर ध्यान तब तक नहीं दिया जा सकता जब तक कि मेडिकल कालेजों में फैकल्टी की उचित व्यवस्था नहीं हो जाती है। मेडिकल क्षेत्र में अफसरशाही भी बड़ी मात्रा में देखी जाती है। कोरोना के इस संकट को अवसर में बदलना चाहिए। ‘वन नेशन वन हेल्थ सिस्टम’ की नीति इस प्रकार से बननी चाहिए कि केन्द्र व राज्य सरकारों में आपसी टकराव न हो। विभिन्न चिकित्सीय विभाग एकीकृत राह में चल सकें जिससे लालफीताशाही दूर हो और चिकित्सकीय सुविधाओं पर गम्भीरतापूर्वक विचार कर देश में एक स्वस्थ बुनियादी संरचना पुनर्गठित की जा सके। संकट की घड़ी में खतरे के बीच स्वास्थ्यकर्मी, पुलिसकर्मी तथा पत्रकार एक योद्धा के रुप में जंग लड़ रहे हैं। इनमें जज़्बा तो है परन्तु मजबूती ज्यादा महसूस की जा रही है। कोरोना से बचाव के लिए सिर्फ सावधानी ही बचाव है। जनसाधारण अपनी जिम्मेदारी समझे तथा सरकार की गाइड लाईन का पालन करें। प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं स्वस्थ रहने के लिए निजी प्रयास करने ही होंगे, तभी सभी देशवासियों को स्वस्थ रखा जा सकता है। (अदिति)