अभिभावक ही देते हैं बच्चों को उचित मार्गदर्शन

बच्चों के व्यक्तित्व का निर्माण मुख्यत: उसके अपने परिवार व मित्रगणों द्वारा ही होता है। माता-पिता का बच्चों की परवरिश में मुख्य स्थान होता है, इसके पश्चात् अन्य किसी सदस्य का। कई माता-पिता बच्चों के साथ अपनापन नहीं रखते। इससे बच्चे अपने आपको उपेक्षित महसूस करते हैं। अत: बच्चों से भावनात्मक संबंध जरूर होने चाहिए। उनकी हर बात को गंभीरतापूर्वक समझना चाहिए ताकि वे कोई भी बात आपसे कहने में हिचकिचाएं नहीं। अपनी बातों को उन पर जबरदस्ती न थोपें। इससे बच्चा जिद्दी व बदतमीज़ हो जाता है। आपने देखा होगा कि बच्चे ज्यादा से ज्यादा सम्पर्क अपनी मां से रखते हैं इसलिए मां को चाहिए कि वे बच्चे से हमेशा सम्पर्क बनाए रखें।
अभिभावकों को बच्चों की दिनचर्या यानी किस समय उन्हें पढ़ना है, किस समय खेलना, या टी. वी. देखना है, बना देनी चाहिए। उनकी किस काम में रूचि है, इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए। आजकल के बच्चों में अनुशासन की बहुत कमी है। इस समस्या से माता-पिता बहुत परेशान रहते हैं, परंतु अनुशासित करना भी माता-पिता का ही कर्तव्य है। अनुशासन की बच्चों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यदि बच्चे उनका कहना नहीं मानते या पलटकर जवाब देते हैं तो अभिभावक को चाहिए कि उन्हें सजा दें या डांटें परंतु उम्र के मुताबिक। बच्चों को यह अहसास नहीं होना चाहिए कि उसकी स्वतंत्रता को छीना जा रहा है।
छोटी-छोटी गलतियों पर मारपीट न करके प्यार से समझाना चाहिए। कई बार बच्चों को यह कह कर डराया जाता है कि पापा से शिकायत करूंगी या टीचर से कहूंगी। ऐसा न करें इससे बच्चे के मन में उन के प्रति डर उत्पन्न हो जाएगा।
परिवार के अच्छे बुरे संबंधों का भी बच्चों की पढ़ाई पर असर पड़ता है। जिन घरों में क्लेश, लड़ाई-झगड़ा ज्यादा होता है, उन घरों के बच्चों का मन पढ़ाई में नहीं लगता है। वे अशांत व दुखी से रहते हैं क्योंकि बच्चों को शांत वातावरण नहीं मिलता। बच्चे सर्वप्रथम पढ़ना भी घर से ही प्रारंभ करते हैं। अत: माता-पिता को चाहिए कि घर का माहौल खुशनुमा रखें ताकि बच्चे की सोच अच्छी बने, पढ़ाई में मन लगे व उसका सम्पूर्ण विकास हो सके। अगर आप इन बातों को ध्यान में रखेंगे तो बच्चे को अच्छा माहौल दे पाएंगे और उसके व्यक्तित्व का सही विकास संभव हो जाएगा। (उर्वशी)