प्राथमिक शिक्षा—प्रदेश के आगे बढ़ते कदम

केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय की ओर से वर्ष 2019-20 की राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों की शिक्षा के मामले की कारगुज़ारी के मूल्यांकन में पंजाब को अग्रणी राज्यों में शामिल किया गया है। इसके साथ ही केरल एवं तमिलनाडू को भी अंकों की सूची में सर्वप्रथम दर्जा दिया गया है। इस सर्वेक्षण के लिए 70 मापदंडों को आधार बनाया गया था तथा प्रत्येक पक्ष की विस्तृत जांच-पड़ताल की गई थी। स्कूलों में सुविधाओं एवं आधारभूत ज़रूरतों की पूर्ति, उपस्थिति, इनकी व्यवस्था, विद्यार्थियों की संख्या, घोषित परिणामों एवं अध्यापकों की संख्या आदि को भी आधार बनाया गया था। पंजाब के इनमें अधिकतर मापदंडों में खरा उतरने  से यह प्रभाव अवश्य बनता है कि शिक्षा विभाग ने विगत कुछ वर्षों में मेहनत एवं योग्यता से अच्छी उपलब्धियां हासिल की हैं। इसलिए हम जहां स्कूल शिक्षा मंत्री श्री विजय इन्द्र सिंगला को बधाई देते हैं, वहीं शिक्षा सचिव श्री कृष्ण कुमार की ओर से किये गये कड़े परिश्रम की भी प्रशंसा करते हैं। इसके साथ-साथ सम्बद्ध अध्यापकों की ओर से किये गये निरन्तर संयमित कार्यों के लिए भी उन्हें शाबाश देना बनता है। 
विगत समय से इस क्षेत्र में सभी सम्बद्ध कर्मियों ने जो सक्रियता दिखाई थी, उसके कई पक्षों से अच्छे परिणाम सामने आये हैं, परन्तु इसके साथ-साथ अब इसके एक और अहम पक्ष की ओर ध्यान दिया जाना आवश्यक है क्योंकि शिक्षा की गुणवत्ता के पक्ष से यह प्रदेश काफी पीछे है जिसकी ओर पूरा ध्यान देने की आवश्यकता है। अध्यापकों की कमी भी काफी सीमा तक खटकती रही है। बहुत-से स्टेट टैट पास बेरोज़गार अध्यापक नौकरी के इच्छुक हैं जिन्हें अध्यापन क्षेत्र में रोज़गार देना ज़रूरी है। प्रदेश में सरकारी, प्राइमरी, मिडल एवं सैकेंडरी स्कूलों में हज़ारों पद खाली पड़े हैं जिनका शिक्षा के उच्च स्तर के लिए भरा जाना ज़रूरी है। नि:सन्देह सरकार के यत्नों के साथ-साथ गांवों के दानी सज्जनों, विदेशों में बसे भाइयों एवं अध्यापकों के संयुक्त सहयोग से आज प्रदेश के हज़ारों सीनियर सैकेंडरी स्कूल ‘स्मार्ट’ बनाये जा सके हैं। स्कूलों की इमारतें, पानी एवं पाखानों की सुविधा इन स्कूलों में दी गई है तथा कई स्कूलों में निर्धारित नीति के अनुसार ‘एजुकेशनल पार्क’ भी बनाये गये हैं। बहुत-से स्कूलों के स्टाफ ने इन्हें और सुन्दर बनाने के लिए चित्रकारी भी करवाई है। दलित विद्यार्थियों को मुफ्त शिक्षा, 8वीं तक कोई फीस न लेना, मिड-डे-मील, मुफ्त किताबें एवं वर्दियां तथा 9वीं के बाद नाममात्र फीसें लेना अब तक की बड़ी उपलब्धियां हैं। यह भी एक बड़ा कारण है कि अब सरकारी स्कूलों में प्रवेश का रुझान बढ़ा है। चाहे पिछले वर्षों में शिक्षा विभाग को पूर्णरूपेण डिज़ीटल करने के लिए यत्न शुरू हुये हैं तथा बच्चों की सारी किताबें ऑनलाइन की गई हैं परन्तु प्रदेश के लगभग 80 प्रतिशत से अधिक लोगों के पास स्मार्ट फोन नहीं है। यदि एक परिवार में एक स्मार्ट फोन है भी, तो परिवार के तीन अथवा चार बच्चों की पढ़ाई को एक ही समय जारी नहीं रखा जा सकता। इस क्षेत्र में सामाजिक हालात को देखते हुये अभी बहुत कुछ किये जाने की आवश्यकता है। 
इसी प्रकार प्री-प्राइमरी कक्षाएं शुरू किया जाना भी विभाग का एक ऐसा कदम है परन्तु इसके परिणामों को भी भली प्रकार जांचने की आवश्यकता है। इसके सभी पक्षों पर सोचना बनता है। हम अध्यापकों के तबादलों संबंधी नीति को एक अच्छा परिवर्तन अवश्य मानते हैं जिससे इस व्यवस्था में समानता आने की सम्भावना अवश्य बन गई है। आगामी समय में यदि इस क्षेत्र में गुणवत्ता को आधार बना कर और अधिक एवं बड़े कदम उठाये जाते हैं तो जहां प्रदेश की प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में आये बड़े सार्थक परिवर्तनों को महसूस किया जा सकेगा, वहीं प्रदेश सरकार भी समाज की इस आधार-भूत आवश्यकता को पूरा करने में अपना भारी योगदान डालने के समर्थ हो सकेगी। अभी रास्ता कठिन एवं लम्बा है परन्तु इस पर दृढ़ता एवं भावना के साथ चलना सरकार और समाज की एक बड़ी ज़िम्मेदारी अवश्य बन जाता है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द