विलक्षण प्रतिभा की धारणी दीपा करमाकर

जिम्नास्टिक के क्षेत्र में अनेक पदक प्राप्त करके भारत का नाम समूचे विश्व में चमकाने वाली दीपा के पांव बचपन ने ऐसे थे जो खिलाड़ी की कार्यक्षमता में रुकावट बनते हैं। ऐसे शारीरिक तौर पर पीड़ित होने के बावजूद उसका आत्मविश्वास कभी कमज़ोर नहीं हुआ। दीपा ने कड़ी मेहनत और अच्छे प्रशिक्षण से अपने पांवों को सामान्य खिलाड़ियों के पांवों की तरह परिवर्तित ही नहीं किया अपितु जिम्नास्टिक की प्रडुनोवा जैसी मुश्किल और जोखिम भरी शैली को अपनाकर जिम्नास्टिक के क्षेत्र में भारत का नाम भी ऊंचा किया। दीपा का नाम उन चंद खिलाड़ियों में शामिल है, जिन्होंने जिम्नास्टिक को भारत में लोकप्रिय किया है। कलात्मक जिम्नास्ट दीपा करमाकर का जन्म 9 अगस्त, 1993 को पिता दुलाल और माता गीता करमाकर के घर अगरतला में हुआ। उसे खेलों के प्रति प्रेरणा घर से मिली, क्योंकि उसके पिता वेट लिफ्ंिटग के प्रसिद्ध कोच रह चुके हैं। दीपा ने 6 वर्ष की आयु में जिम्नास्टिक का अभ्यास करना शुरू कर दिया था। सन् 2008 में जलपाईगुड़ी में खेले गए जूनियर राष्ट्रीय जिम्नास्टिक टूर्नामैंट में स्वर्ण पदक जीत कर उसने खेल प्रेमियों का ध्यान अपनी ओर आकर्षिक कर लिया था। वर्ष 2011 की राष्ट्रीय खेलों में त्रिपुरा की ओर से खेलते हुए उसने जिम्नास्टिक की चारों श्रेणियों में पदक प्राप्त किये थे। ग्लास्गो में खेले गये वर्ष 2014 के राष्ट्रमंडल खेल मुकाबलों में भारतीय जिम्नास्टिक का प्रतिनिधित्व करते हुए दीपा ने 15.1 अंकों से कांस्य पदक प्राप्त किया था। कोच बिशवेश्वर नंदी की मेधावी शागिर्द दीपा ने सन् 2015 के जापान शहर हिरोशिमा में हुई एशियन चैम्पियनशिप में कांस्य पदक प्राप्त किया था। कलात्मक जिम्नास्टिक में उक्त दोनों पदक जीतने वाली वह पहली भारतीय महिला जिम्नास्टिक बन चुकी है। दीपा ने सन् 2016 में रियो डी जनेरियो में हुई ओलम्पिक खेलों के कलात्मक जिम्नास्टिक मुकाबलों के लिए भारत द्वारा क्वालीफाई किया और ऐसा करने वाली वह पहली भारतीय महिला खिलाड़ी थी। 15.066 अंक प्राप्त करके दीपा चौथे स्थान पर रही थी, जो कि एक बड़ी उपलब्धि थी। जुलाई, 2018 में तुर्की में हुए कलात्मक जिम्नास्टिक विश्व चैलेंज कप के वाल्ट मुकाबले में दीपा ने स्वर्ण पदक जीता  था और ऐसा करने वाली वह पहली भारतीय महिला जिम्नास्ट बनी थी।

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