पेशेवर प्रबंधन और हितधारकों के आपसी सहयोग से  भारत की ओलम्पिक तैयारी  ट्रैक पर

व्यक्तिगत दौड़ जीतने में बहुत खुशी होती है, लेकिन सामूहिक प्रयास से मिलने वाली सफलता में और अधिक खुशी होती है। टोक्यो ओलम्पिक की तैयारी के वर्तमान दौर के लिए मैं बिना संकोच के कह सकता हूं कि यह बात भारत के सर्वश्रेष्ठ एथलीटों के लिए खुद को तैयार करने में सच साबित हुई है।इस ओलम्पिक को वर्तमान महामारी के कारण एक वर्ष से विलंबित किया गया है। इसके सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक भारतीय खेल इकोसिस्टम के विभिन्न हिस्सों के बीच उल्लेखनीय रूप से उच्च स्तर का समन्वय है। इसने हमारे ओलम्पिक के होनहार खिलाड़ियों के एक बड़े वर्ग को बिना किसी बाधा और चिंता के तैयारी करने का अवसर दिया है।प्रमुख हितधारकों राष्ट्रीय खेल महासंघ, भारतीय ओलम्पिक संघ और भारतीय खेल प्राधिकरण के एक मंच पर आने से इस अभियान को पटरी पर लाने में मदद मिली है। इस कदम से प्रतिस्पर्धा और प्रशिक्षण के वार्षिक कैलेंडर के जरिए हासिल हुई उपलब्धियों के अतिरिक्त सहायता संबंधी एथलीटों के अनुरोधों को पूरा करने में एक अभूतपूर्व स्तर की पारदर्शिता आई है।युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय की टारगेट ओलम्पिक पोडियम योजना (टॉप्स) की देख-रेख करने वाले मिशन ओलम्पिक सैल से जुड़े  होने के चलते मैंने यह देखा है कि एथलीटों के प्रदर्शन को लेकर टॉप्स के शोधकर्ता कितने सजग हैं।जितनी मेहनत के साथ आंकड़ों का मिलान और विश्लेषण किया जाता है, वह भारत द्वारा अपनाए गए पेशेवर दृष्टिकोण का एक स्पष्ट संकेत है। आदर्श प्रशिक्षण स्थानों को सुनिश्चित करने में मदद से लेकर अभ्यास के लिए साथियों की मंजूरी देने तक का काम तेज़ी से किया गया। इसके साथ ही सर्वश्रेष्ठ कोच की सेवाओं को हासिल करने से लेकर अनुभवी एवं कुशल सहायक कर्मचारियों के लिए भुगतान का पूरा इंतजाम किया गया। यात्रा और ठहरने की व्यवस्था करने से लेकर इस महामारी का खिलाड़ियों के प्रशिक्षण और प्रतियोगिता संबंधी उनकी योजना पर बहुत प्रभाव न पड़े इसके लिए भारतीय इकोसिस्टम एकजुट होकर खड़ा रहा है।एथलीटों द्वारा दिए गए प्रस्तावों के प्रति मिशन ओलम्पिक सैल के रवैये की एक मुख्य विशेषता वो त्वरित गति रही जिसके तहत चीज़ों को मंजूरी दी गई। खेलों में उच्चतम स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले एक ऐसे व्यक्ति के तौर पर आपको बता सकता हूं कि इस तरह का बदलाव अब तक अनसुना था। इसमें कोई संदेह नहीं कि मिशन ओलम्पिक सैल द्वारा बिना पलक झपकाए अधिकांश प्रस्तावों को मंजूरी देने के पीछे इस महामारी द्वारा थोपी गई अनिश्चितता का हाथ रहा। सामान्य समय में हम प्रत्येक प्रस्ताव की छानबीन करने में थोड़ा अधिक समय लगाते।इसके पीछे का विचार यह रहा कि ओलम्पिक खेलों से ठीक पहले किसी भी तरह की देरी से किसी एथलीट के तनाव में वृद्धि न की जाए। ईमानदारी से कहूं तो हम सभी के लिए कई सबक हैं । आने वाले ओलम्पिक चक्र में चीज़ें तभी बेहतर होंगी जब सभी राष्ट्रीय खेल संघ और एथलीट सरकारी मामलों में आवश्यक बुनियादी आवश्यकताओं के बारे में जागरूक होंगे और उसका पालन करेंगे। मेरा मानना है कि टीम भावना और जिस तरह से भारतीय खेल जगत अब पेशेवर प्रबंधन को आकर्षित कर रहा है, वह दीर्घकालिक स्तर पर बेहद मददगार साबित होगा।

(लेखक एक ओलम्पियन और भारतीय एथलैटिक्स महासंघ के अध्यक्ष हैं)