ज़िन्दगी में स्वयं को परखना बहुत ज़रूरी है

आधुनिक तेज़-तर्रार दौर में ज़िन्दगी की रफ्तार पहले से काफी अधिक तेज़ हो गई है। ऐसे लगता है कि जैसे मनुष्य किसी मशीन का पुर्जा बन गया हो। हमारी दिन-प्रतिदिन आवश्यकताएं और पदार्थवादी वस्तुओं को एकत्रित करने की दौड़ ने हमें बेचैन और परेशान कर दिया है। शांति, आराम और संयम हमारे जीवन में शून्य होते जा रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है कि हम बहुत ज्यादा गम्भीर हो गये हैं और हमें हास्य वाली बातों पर भी जल्दी कहीं हंसी नहीं आती। यदि मानवीय जीवन का अध्ययन किया जाये तो पता चलता है कि थोड़े समय के लिए जीवन खूबसूरत ढंग से जीने के लिए मिलता है लेकिन आम तौर पर हम यह बात भूल कर दुनिया में विचरते हैं और दुनियावी मामलों में फंसे रहते हैं। यह बात कभी नहीं याद रखते कि आधी उम्र तो केवल सो कर ही निकल जाती है। जीवन की खूबसूरती के लिए स्वयं को परखना, आत्म-विश्वास और आत्म-चिन्तन बहुत ज़रूरी है। हमेशा दूसरे की बढ़ती सुख-सुविधाओं को देख कर हमें अपने जीवन के ढंग में बदलाव नहीं करना चाहिए और न ही परेशान होना चाहिए। इसीलिए खाली समय में बैठ कर स्वयं से बातें अवश्य करनी चाहिए एवं स्वयं के लिए समय ज़रूर निकालना चाहिए। व्यायाम और टहलने की आदत डाल कर सबसे पहले स्वयं को निरोग रखें। अच्छी आदतें डालें, अच्छी किताबें पढ़ें, ज़रूरतमंद की सहायता करें। ये सब चीज़ें मनुष्य को सुकून देती हैं। ईर्ष्या, गुस्सा हमेशा मनुष्य को दुखी रखता है। कभी भी स्वयं को छोटा न समझें। स्वयं की परख करते हुए अपनी उपलब्धियों पर खुश होकर अपनी पीठ को थपथपा कर जीवन में आगे बढ़ने का प्रयास करें। जो कुछ भी आपने अपनी काबलियत से हासिल किया है उस पर गर्व करें। अगले लक्ष्य को हासिल करने के लिए हौंसला, उत्साह और सकारात्मक सोच के साथ मेहनत करें, अवश्य की लक्ष्य प्राप्त हो जाएगा। अक्सर हम यह भूल जाते हैं कि हमारे जैसे बनने के लिए हमारे पीछे कितने और लोग खड़े हैं, लेकिन हम इसे महसूस नहीं करते। हमेशा मानवीय स्वभाव के अनुसार अपने से बड़े को देख कर जीवन व्यतीत करना चाहिए। स्मरण रखें कि यदि जीवन जीना है तो स्वयं को परखना, आत्म-विश्वास, आत्म-चिन्तन उसे आसानी से खोलने वाली चाबी है।