किसान आन्दोलन के प्रसंग में बढ़ रहे टकराव को रोकने की आवश्यकता

संयुक्त किसान मोर्चे के  नेतृत्व में पिछले 9 माह से निरंतर किसान आन्दोलन चल रहा है। केन्द्र सरकार और किसान नेताओं दोनों की ओर से अपने-अपने स्टैंड पर अडिग रहने के कारण मामले का कोई समाधान नहीं हो पाया। गर्मी, सर्दी, बारिश और आंधी में किसान पंजाब और हरियाणा में सैकड़ों स्थानों पर और दिल्ली की सीमाओं के इर्द-गिर्द लगातार धरने चल रहे हैं। पंजाब और हरियाणा में कार्पोरेट कंपनियों के कारोबारी संस्थानों और टोल प्लाज़ाओं पर भी किसानों द्वारा धरने दिये जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त दोनों राज्यों में किसानों द्वारा भाजपा के कार्यालयों और वरिष्ठ भाजपा नेताओं के घरों के सामने भी धरने दिये जा रहे हैं और रोष प्रदर्शन किये जा रहे हैं। विगत कुछ समय से दोनों राज्यों में एक तरह से किसानों ने भारतीय जनता पार्टी की सभी गतिविधियां ठप्प करके रख दी हैं। उन्हें किसी भी स्थान पर पार्टी की बैठके या रैलियां करने की आज्ञा नहीं दी जा रही। हरियाणा में तो आन्दोलनकारी किसानों द्वारा भाजपा और जे.जे.पी. गठबंधन सरकार के मंत्रियों के सरकारी और गैर-सरकारी दौरों का भी कड़ा विरोध किया जा रहा है। एक तरह से हरियाणा में भाजपा की राज्य सरकार ठप्प होकर रह गई है। 
पंजाब एवं हरियाणा दोनों राज्यों में प्रतिदिन भाजपा नेताओं और आन्दोलनकारी किसानों के बीच टकराव और झड़पें देखने को मिल रही हैं। अधिक पीछे न ही जाएं, यदि 11 जुलाई के घटनाक्रम को ही देख लीजिए तो स्थिति बेहद चिन्ताजनक नज़र आ रही है। राजपुरा में पंजाब भाजपा नेता भुपेश अग्रवाल को अर्जुन नगर में एक भाजपा कार्यकर्ता की निजी कोठी में घेर लिया और रविवार रात से सुबह 4 बजे तक भुपेश अग्रवाल सहित कुछ अन्य भाजपा नेताओं को इस कोठी में ही रहना पड़ा। पुलिस ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद किसानों पर लाठीचार्ज करके कोठी में घिरे भाजपा नेताओं को छुड़वाया। इस घटना के प्राप्त हुए विवरण के अनुसार, राजपुरा में भाजपा नेताओं ने पहले भारतीय विकास परिषद् के स्थानीय कार्यालय में बैठक रखी थी। परन्तु वहां किसान बड़ी संख्या में जमा हो गए और पुलिस ने इस कार्यालय से भाजपा नेताओं को बाहर निकाल लिया था। इसके बाद किसानों और एक भाजपा कौंसलर की मध्य खींचतान हुई और भाजपा नेता भुपेश अग्रवाल ने राजपुरा के लायंस क्लब में प्रैस कांफ्रैंस  करके किसानों को चुनौती दी कि वे अर्जुन कालोनी में एक और बैठक करने जा रहे हैं और यदि किसानों में हिम्मत है तो उन्हें रोक लें। इसके बाद अर्जुन नगर में भुपेश अग्रवाल को किसानों ने एक भाजपा कार्यकर्ता की कोठी में पुन: घेर लिया और जिस कारण स्थिति दोबारा तनावपूर्ण बन गई। किसानों ने यह भी आरोप लगाया कि भुपेश अग्रवाल ने उनके खिलाफ घटिया शब्दावली प्रयोग की थी और उन्हें धमकियां भी दी थीं। इस मामले में पुलिस ने 150 के लगभग किसानों पर केस भी दर्ज किया है और इस संबंधी की गई कार्रवाई के बारे हाई कोर्ट में भी अपना जवाब दाखिल किया है। दूसरी तरफ किसानों ने भी यह मांग की है कि घटिया शब्दावली इस्तेमाल करने वाले नेताओं कि खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई की जाए। 
इसी तरह हरियाणा के शहर सिरसा में चौधरी देवी लाल यूनिवर्सिटी के बाहर आन्दोलनकारी किसानों और पुलिस के मध्य तीव्र झड़पें हुईं। पुलिस ने किसानों पर लाठीचार्ज किया, अनेक किसान घायल हुए और अनेक के कपड़े भी फट गए। यूनिवर्सिटी में दाखिल होने वाले किसानों को भी पुलिस ने हिरासत में ले लिया। प्राप्त जानकारी के अनुसार चौधरी देवी लाल यूनिवर्सिटी में भाजपा की एक बैठक रखी गई थी, जिसे  हरियाणा विधानसभा के डिप्टी स्पीकर रणवीर सिंह गंगुया और सांसद सुनीता दुग्गल सम्बोधित करने पहुंचे थे। किसानों को इसकी जानकारी मिली तो वे वहां भाजपा नेताओं का घेराव करने के लिए पहुंच गये, जिस कारण किसानों और पुलिस के बीच टकराव हो गया। इसी तरह 11 जुलाई को ही फतेहाबाद, झज्जर और अम्बाला में भी किसानों द्वारा पार्टी बैठकें करने आए भाजपा नेताओं का घेराव किया गया। इससे पहले 10 जुलाई को भी किसानों द्वारा जींद, हिसार और यमुनानगर में भाजपा नेताओं का घेराव किया गया। 
इसी दौरान यह भी जानकारी मिली है कि चंडीगढ़ में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं जिनमें अश्विनी कुमार शर्मा, हरजीत सिंह ग्रेवाल और सुरजीत जियाणी आदि शामिल थे, ने पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के साथ पंजाब में किसानों द्वारा भाजपा नेताओं के जगह-जगह किये जा रहे घेराव और अनेक स्थानों पर भाजपा नेताओं एवं वर्करों पर हो रहे हमलों (उनके कहने के अनुसार) के दृष्टिगत मुलाकात की है और उनका राज्य में बिगड़ रही अमन-कानून की  स्थिति की ओर ध्यान दिलाया है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा ही कि भाजपा नेताओं और वर्करों पर हो रहे हमले उनके लोकतांत्रिक तथा मानवाधिकारों का उल्लघंन है, इसलिए उन्हें पार्टी गतिविधियों के लिए सुरक्षा मुहैया की जाए। इस मुलाकात से पहले भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने मुख्यमंत्री के निवास स्थान के समक्ष धरना भी दे दिया था और इस धरने के कारण ही मुख्यमंत्री द्वारा भाजपा नेताओं को भीतर बुला कर उनके साथ बैठक की गई। मुख्यमंत्री से मिलने के बाद पंजाब भाजपा अध्यक्ष अश्विनी शर्मा ने कहा है कि मुख्यमंत्री ने उनकी बात को ध्यान से सुना है परन्तु इस बात का आने वाले समय में ही पता चलेगा कि कैप्टन सरकार आरोपी किसानों के विरुद्ध क्या कदम उठाती है। 
गत लम्बे समय से आन्दोलनकारी किसानों और भाजपा के बीच बढ़ रहे टकराव को मुख्य रख कर ही हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कुछ दिन पहले यह ब्यान भी दिया था कि यदि उनका धैर्य जवाब दे गया तो इसके गंभीर परिणाम निकलेंगे। नि:संदेह हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का यह ब्यान ध्यान मांगता है। चाहे उन्होंने यह बात किसानों द्वारा भाजपा और जे.जे.पी. से संबंधित हरियाणा के नेताओं और मंत्रियों का घेराव करने तथा सरकार के कार्यों में किसानों द्वारा विघ्न डालने के संदर्भ में कही थी, परन्तु इससे यह प्रकटावा अवश्य हो जाता है कि हरियाणा में किसान और भाजपा का टकराव किस स्तर तक पहुंच चुका है तथा इसमें हरियाणा सरकार भी बुरी तरह फंसी हुई नज़र आ रही है। पंजाब में पैदा हुई स्थिति की भी हम ऊपर चर्चा कर आए हैं। 
इस संदर्भ में हम स्पष्ट तौर पर यह कहना चाहते हैं कि केन्द्र सरकार को पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के आस-पास की सीमाओं पर किसान आन्दोलन के कारण पैदा हुई स्थिति को पूरी गंभीरता से लेना चाहिए। जिस तरह प्रतिदिन भिन्न-भिन्न स्थानों पर किसान और भाजपा नेताओं एवं कार्यकर्ताओं की बीच टकराव हो रहे हैं तथा अनेक स्थानों पर टकराव रोकने के लिए पुलिस को भी कड़ी कार्रवाई करनी पड़ रही है, वह बेहद चिन्ताजनक है। ऐसी स्थिति में किसानों, भाजपा कार्यकर्ताओं और पुलिस तीनों में से किसी का धैर्य भी जवाब दे गया तो यह टकराव बहुत भयानक रूप ले सकता है और इसमें व्यापक स्तर पर जानी और आर्थिक नुक्सान भी हो सकता है। केन्द्र सरकार को इस स्थिति में सुधार लाने के लिए तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए। हमारी राय के अनुसार सरकार को तीनों कृषि कानूनों पर अनिश्चितकालीन समय के लिए अमल स्थगित करने की घोषणा करके नि:संदेह किसानों को नये सिरे से बातचीत का निमंत्रण दिया जाना चाहिए और प्रगतिशील बातचीत से इस मामले का कोई सर्वसम्मति से समाधान ढूंढना चाहिए। भाजपा से विगत दिनों 6 वर्ष के लिए निकाले गये भाजपा नेता अनिल जोशी ने भी यही सुझाव दिया है। 
यदि केन्द्र सरकार द्वारा नये सिरे से किसानों को बातचीत का निमंत्रण दिया जाता है तो उन्हें भी इसका समर्थन करना चाहिए। क्योंकि किसान आन्दोलन अब एक ऐसे पड़ाव पर पहुंच चुका है, जहां से आगे यह और लटकता है तो संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं के सभी यत्नों के बावजूद इसका शांतिपूवर्क रहना मुश्किल हो सकता है क्योंकि गत 9 माह से बहुत ही मुश्किल हालातों में किसान धरनों पर बैठे हैं और 500 से अधिक किसान इस आन्दोलन के दौरान अपनी जानें भी गवां चुके हैं। नि:संदेह किसानों का धैर्य भी अब बड़ी सीमा तक टूटता जा रहा है। उनमें गुस्सा बढ़ता जा रहा  है। इसका प्रकटावा इस बात से भी हो सकता है कि अब पंजाब में अनेक स्थानों पर भाजपा नेताओं के साथ-साथ कांग्रेस और अकाली दल के नेताओं का भी किसानों ने घेराव करना शुरू कर दिया है। इससे एक ही तरह से सभी राजनीतिक पार्टियों के साथ किसान आन्दोलनकारी टकराव में आ सकते हैं। यह स्थिति जहां अमन-कानून के पक्ष से राज्य के लिए चिन्ताजनक होगी, वहीं किसान आन्दोलन के लिए भी हालात साज़गार नहीं होंगे। इसलिए संयुक्त किसान मोर्चे के नेतृत्व को उत्पन्न हो रही इस स्थिति की ओर विशेष तौर पर ध्यान     देना चाहिए और आन्दोलन को हर हालत में शांतिपूर्वक और अनुशासन में रखने के लिए स्पष्ट निर्देश देने चाहिए। उन्हें भाजपा या अन्य पार्टियों के नेताओं से एक निश्चित दूरी पर रह कर ही शांतिपूर्वक रोष व्यक्त करना चाहिए। कानून को हरगिज़ अपने हाथों में लेने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। किसी भी रूप में इस आन्दोलन का हिंसक होना भाईचारक साझ को बड़ा आघात पहुंचाएगा और आन्दोलन की भी यह असफलता ही मानी जाएगी। हरजीत सिंह ग्रेवाल और सुरजीत जियाणी जैसे भाजपा नेताओं को भी भड़काऊ बयानबाजी से संकोच करना चाहिए। 
समूचे तौर पर इस समय सभी संबंधित पक्षों को अमन-कानून बनाए रखना चाहिए तथा अपने हकों और अधिकारों का प्रयोग अनुशासन में रह कर ही करना चाहिए।