चौटाला की रिहाई के बाद हरियाणा की राजनीति में बढ़ी सक्रियता

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला जेबीटी भर्ती मामले में सीबीआई कोर्ट द्वारा सुनाई गई सज़ा पूरी करके तिहाड़ जेल से रिहा हो चुके हैं। उनके जेल से रिहा होने से एक तरफ जहां इनेलो कार्यकर्त्ताओं के चेहरे पर रौनक लौट आई है, वहीं चौटाला के विरोधियों में भारी हलचल देखने को मिल रही है। चौटाला पिछले करीब 55 सालों से हरियाणा की राजनीति में सक्रिय रहे हैं और उन्होंने पहला विधानसभा चुनाव करीब 53 साल पहले 1968 में लड़ा था और करीब 51 साल पहले वह ऐलनाबाद से पहली बार विधायक बने थे। अब तक वह 5 बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और राज्यसभा सांसद भी रहे हैं। उनकी पहचान एक मजबूत, जुझारू व संघर्षशील नेता की रही है और उनके विरोधी भी उन्हें एक बेहतरीन वक्ता और बेमिसाल संगठनकर्त्ता के तौर पर मानते हैं। जेल से रिहा होने से पहले जब वह पैरोल पर आए हुए थे तो  उनकी गाड़ी के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से उन्हें बाजू पर चोट लगी थी। अभी वह स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं और जल्दी ही उनके प्रदेश की राजनीति में सक्रिय होने की संभावना है। फिलहाल सभी की नजरें पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला के फिर से राजनीति में सक्रिय होने और इससे प्रदेश की राजनीति पर पड़ने वाले प्रभाव की ओर लगी हुई हैं। 
ऐलनाबाद चुनाव
हरियाणा में किसी भी समय ऐलनाबाद विधानसभा सीट का उपचुनाव घोषित हो सकता है। वैसे तो ऐलनाबाद सीट को खाली हुए करीब 6 महीने पूरे होने जा रहे हैं और कोरोना के चलते अभी तक इस सीट के लिए उप-चुनाव घोषित नहीं हुआ है। ऐलनाबाद सीट से पिछले विधानसभा चुनाव में ओम प्रकाश चौटाला के छोटे बेटे अभय सिंह चौटाला विधायक चुने गए थे। उन्होंने किसानों के पक्ष में और तीन कृषि बिलों को रद्द किए जाने की मांग का समर्थन करते हुए अपने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया था। पिछले विधानसभा चुनाव में वह इनेलो के अकेले विधायक चुने गए थे और अब यह पहला मौका है कि हरियाणा विधानसभा में इनेलो का कोई भी विधायक नहीं है। ऐलनाबाद सीट चौधरी देवीलाल परिवार का गढ़ मानी जाती रही है। ऐलनाबाद सीट से हरियाणा बनने के बाद पहली बार ओम प्रकाश चौटाला के छोटे भाई और चौधरी देवीलाल के बेटे प्रताप सिंह विधायक चुने गए थे। उनके बाद इस सीट से ओम प्रकाश चौटाला विधायक बने। एक बार 1972 में चौटाला गांव के ही बृजलाल विधायक बने थे। 
चौटाला परिवार की प्रतिष्ठा दांव पर
ऐलनाबाद सीट से 1977, 1982, 1987, 1996 और 2000 में ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी के उम्मीदवार भागीराम पांच बार विधायक बने। 2005 में चौटाला की पार्टी के ही उम्मीदवार डॉ. सुशील इंदौरा विधायक चुने गए। 2009 में इनेलो प्रमुख ओम प्रकाश चौटाला उचाना और ऐलनाबाद दो सीटों से विधायक चुने गए और उन्होंने ऐलनाबाद से इस्तीफा दे दिया तो उनके स्थान पर उप-चुनाव में उनके बेटे अभय सिंह चौटाला विधायक चुने गए। अभय सिंह चौटाला 2014 में भी ऐलनाबाद से विधायक बने और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे। पिछली बार 2019 के चुनाव में भी ऐलनाबाद से अभय सिंह विधायक बने और अब जनवरी महीने में कृषि बिलों के खिलाफ उनके द्वारा इस्तीफा देने से इस सीट से उपचुनाव होने जा रहे हैं। अब तक इस सीट पर हुए उप-चुनाव सहित करीब एक दर्जन बार चौटाला परिवार का उम्मीदवार ही चुनाव जीतता रहा है जबकि 1991 में कांग्रेस के मनीराम केहरवाला चुनाव जीते थे। इस बार फिर ऐलनाबाद सीट पर होने वाले उपचुनाव में चौटाला परिवार की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। 
जारी है कांग्रेस की गुटबाजी
हरियाणा कांग्रेस की गुटबाजी खत्म होने का नाम नहीं ले रही। पिछले 7 सालों से इसी गुटबाजी के चलते हरियाणा में कांग्रेस संगठन के पदाधिकारियों का ऐलान नहीं हो पाया है। करीब 5 साल तक पूर्व सांसद डॉ. अशोक तंवर हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे लेकिन वह जिला व हल्का इकाइयों का गठन करना तो दूर, अपनी टीम भी नहीं घोषित कर पाए। पिछले विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस आलाकमान ने कांग्रेस विधायक दल के नेता पद पर किरण चौधरी के स्थान पर भूपेंद्र सिंह हुड्डा को नेता बना दिया था और तंवर के स्थान पर कुमारी सैलजा को प्रदेशाध्यक्ष की ज़िम्मेदारी सौंपी गई। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हुए इस बदलाव का कांग्रेस को फायदा भी हुआ और कांग्रेस जो 2019 के लोकसभा चुनाव में सभी 10 सीटों पर हार गई थी, वहीं उसी साल हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 31 सीटें हासिल हुईं। वैसे तो कांग्रेस में कुलदीप बिश्नोई से लेकर कैप्टन अजय यादव तक और भूपेंद्र हुड्डा, रणदीप सुरजेवाला, किरण चौधरी से लेकर सैलजा तक अनेक गुट सक्रिय हैं, लेकिन अब हुड्डा और सैलजा गुट की तनातनी उस समय उजागर हो गई जब हुड्डा गुट के कई विधायक कांग्रेस आलाकमान से मिलने पहुंचे और सैलजा को अध्यक्ष पद से हटाकर किसी अन्य को अध्यक्ष बनाए जाने की मांग कर डाली।
 इस बार अध्यक्ष पद से सैलजा को हटाने के मामले में कांग्रेस आलाकमान ने ज्यादा तवज्जो नहीं दी। अब हुड्डा समर्थक यह चाहते हैं कि पार्टी संगठन में उनके ज्यादा से ज्यादा समर्थकों को महत्व मिले। कांग्रेस आलाकमान के पास पहुंचे हुड्डा समर्थकों की यह भी दलील थी कि इनेलो प्रमुख ओम प्रकाश चौटाला अपनी सजा पूरी करके जेल से बाहर आ गए हैं और चौटाला की भावी सक्रियता और प्रदेश के बदले राजनीतिक हालात को देखते हुए कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष पद पर किसी मजबूत नेता को नियुक्त किए जाने की जरूरत है। इस बात से भी साफ हो गया कि चौटाला की जेल से रिहाई को कांग्रेस खेमा भी काफी गंभीरता से ले रहा है। सैलजा को हटाने की मांग को लेकर प्रदेश के दलित समाज को एक गलत संदेश जाता है और तंवर के बाद सैलजा को हटवाना कांग्रेस के लिए कहीं न कहीं नुक्सानदेह भी साबित हो सकता है। सैलजा के पिता चौधरी दलबीर सिंह न सिर्फ चार बार सिरसा से सांसद रहे बल्कि इंदिरा गांधी की सरकार में मंत्री रहने के अलावा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी रहे। चौधरी दलबीर सिंह के निधन के बाद 1988 में सैलजा सक्रिय राजनीति में आ गई थीं और वह नरसिम्हा राव सरकार में मंत्री रहने के अलावा मनमोहन सिंह की सरकार में भी केंद्रीय कैबिनेट मंत्री रहीं। वह अब तक विवादों से भी दूर ही रही हैं। अब देखना होगा कि कांग्रेस की गुटबाजी उन्हें पार्टी संगठन खड़ा करने का मौका देती है या नहीं। 
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