पंजाब में कांग्रेस का हश्र क्या आंध्र प्रदेश जैसा होगा ?


पंजाब उन पांच प्रदेशों में शामिल है, जहां आगामी साल के शुरुआती महीनों में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं। वहां कांग्रेस की सरकार है और कैप्टन अमरेन्द्र सिंह मुख्यमंत्री हैं। प्रदेश का जो राजनीतिक माहौल है, उसके अनुसार एक बार फिर वहां कांग्रेस की सरकार आती दिख रही है। पिछले चुनाव में कांग्रेस के सामने अकाली दल-भाजपा गठबंधन के साथ साथ आम आदमी पार्टी भी उसके सामने चुनौती पेश कर रही थी। चुनाव के पहले तक वहां अकाली दल-भाजपा गठबंधन की सरकार थी। अपने दोनों प्रमुख प्रतिद्वंद्वियों को हराते हुए कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बन गई थी।
पिछले चुनाव में मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में आम आदमी पार्टी उभरी थी, लेकिन वह आपसी गुटबाजी में उलझकर कुछ खास नहीं कर पाई। दूसरी तरफ अकाली दल और भाजपा का गठबंधन भी समाप्त हो गया। इन दोनों कारणों से कांग्रेस को मिल रही चुनौती बहुत ही कमज़ोर थी लेकिन कांग्रेस को भले बाहर से चुनौती नहीं मिल रही हो, पर कैप्टन अमरेन्द्र सिंह को चुनौती ज़रूर मिल रही थी और चुनौती देने वाला कोई और नहीं, बल्कि पूर्व क्त्रिकेटर और वर्तमान कॉमेडियन नवजोत सिंह सिद्धू थे, जिन्हें कैप्टन ने अपने मंत्रिमंडल से बाहर जाने के लिए विवश कर दिया था।
अब सिद्धू कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बना दिए गए हैं। प्रदेश अध्यक्ष के रूप में उनकी नियुक्ति अमरेन्द्र सिंह के विरोध के बावजूद की गई है। कहने की जरूरत नहीं कि यह नियुक्ति सोनिया गांधी ने की है, जो इस समय कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष हैं। सिद्धू बागी तेवर दिखा रहे थे। वह संकेत दे रहे थे कि यदि उन्हें पार्टी में सम्मानजनक पद नहीं मिला, तो आम  आदमी पार्टी की ओर जा सकते हैं। आम आदमी पार्टी अभी भी पंजाब की मुख्य विपक्षी पार्टी है, क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में वह कांग्रेस के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी।
आम आदमी पार्टी इस बार भी बहुत ही तैयारी के साथ चुनाव लड़ने जा रही है। दिल्ली में जीत के उसके जो ्रफॉर्मूले रहे हैं, उन्हें वह वहां भी आजमाने जा रही है। उन फॉमूलों में एक तो सब की बकाया बिजली बिलों की माफी है और दूसरी घोषणा 300 यूनिट तक सब को मुफ्त बिजली देने की है। आम आदमी पार्टी की यह घोषणा लोकलुभावन है और यह शायद हिट कर जाए, लेकिन उसके पास कोई पंजाब स्तर का बड़ा नेता नहीं है, जिसके चेहरे पर पार्टी चुनाव लड़ सके।
इसीलिए अखबारों में ये खबरें तैर रही थीं कि सिद्धू आम आदमी पार्टी में शामिल हो सकते हैं। सिद्धू ने खुद ऐसी बात कभी नहीं कही और न ही आम आदमी पार्टी की ओर से ऐसी बात कही गई, लेकिन दोनों की तरफ  से जो बयानबाजी हो रही थी, उसका मतलब यही था कि यदि सिद्धू को कांग्रेस के अंदर संतुष्ट नहीं किया गया, तो उनके पास एक विकल्प आम आदमी पार्टी में शामिल होने का भी मौजूद है।
बहरहाल, सिद्धू की दबाव की राजनीति काम कर गई और वह जो चाहते थे, उसे हासिल भी कर लिया। वह प्रदेश का अध्यक्ष बन चुके हैं और जाहिर है, चुनाव के टिकट वितरण में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण होगी। चूंकि वह कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के प्रतिद्वंद्वी के रूप मे ख्याति प्राप्त कर चुके हैं, इसलिए उनके अध्यक्ष बनने का मतलब है पंजाब कांग्रेस की राजनीति में दो ध्रुवों को बन जाना। अब उसमें दो सत्ता केन्द्र बन गए हैं—एक केन्द्र अमरेन्द्र सिंह थे ही, और दूसरे केन्द्र के रूप में सिद्धू उभर आए हैं।
अमरेन्द्र सिंह की इच्छा के खिलाफ  जाकर सिद्धू को पंजाब प्रदेश कांग्रेस की कमान देना पार्टी के लिए नुकसानदेह भी हो सकता है। पंजाब के सांसद उनके अध्यक्ष बनने के पहले ही अपना विरोध जता चुके हैं। कहने की ज़रूरत नहीं कि वे सांसद अमरेन्द्र सिंह के समर्थक हैं।
कभी कांग्रेस में सोनिया परिवार की तूती बोलती थी। लेकिन अब इस परिवार की हैसियत पहले वाली नहीं रही। सोनिया परिवार कांग्रेस को भले एकजुट बनाये रखने में तो सफल हुआ हो, लेकिन कांग्रेस की जीत सुनिश्चित करना उसके बूते की बात नहीं रही। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की स्थिति इतनी दयनीय हो गई कि मान्यता प्राप्त मुख्य विपक्षी पार्टी होने के लिए आवश्यक 10 फीसदी सीटें भी वह जीत नहीं सकी। इसके अतिरिक्त विधानसभा चुनावों में भी वह एक के बाद एक चुनाव हारती जा रही है। पिछले दिनों हुए चुनाव में वह पुडुचेरी की अपनी सरकार गंवा चुकी है। पश्चिम बंगाल में उसे एक सीट भी नहीं मिली। असम में जीत के लिए अच्छी स्थिति थी, लेकिन कांग्रेस उसका लाभ नहीं उठा सकी। बिहार में उसे एक बड़ा अपयश हाथ लगा। उसने जोर जबर्दस्ती करके 70 सीटें गठबंधन में हासिल कर लीं, लेकिन उसके मात्र 19 उम्मीदवार ही जीत पाए, जबकि गठबंधन के अन्य दलों के 50 फीसदी से ज्यादा उम्मीदवार जीते। कांग्रेस की खराब स्थिति के कारण तेजस्वी मुख्यमंत्री नहीं बन पाए थे।
लगातार मिल रही पराजयों के बाद सोनिया और राहुल का वह खौफ  कांग्रेसियों पर नहीं रहा, जो पहले रहा करता था। यदि पंजाब में कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने बगावत कर दी, तो कांग्रेस को वहां लेने के देने पड़ सकते हैं। हम देख चुके हैं कि आंध्र प्रदेश में मुख्यमंत्री रेड्डी की मौत के बाद उनके बेटे जगन को मुख्यमंत्री नहीं बनाने के कारण कांग्रेस वहां समाप्त ही हो गई। इस समय आंध्र प्रदेश में जगन मुख्यमंत्री हैं, लेकिन विधानसभा में कांग्रेस का एक भी सदस्य नहीं है। लोकसभा में भी कांग्रेस का कोई सदस्य आंध्र प्रदेश से जीतकर नहीं आया है।
आंध्र प्रदेश में भी सोनिया गांधी ने ही जगन के हाथ में सत्ता नहीं सौंपने की गलती की थी, जबकि उस समय कांग्रेस के बहुसंख्यक विधायक जगन के साथ थे। बाद में सोनिया गांधी ने ही आंध्र प्रदेश का विभाजन भी करवा दिया, जिसके कारण वहां उसका रहा-सहा आधार भी समाप्त हो गया। सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या पंजाब में कांग्रेस का वही हाल होगा, जो उसका आंध्र प्रदेश में हुआ? (संवाद)