महंगाई की मार से बेहाल होता आम आदमी

पेट्रोल और डीज़ल की लगातार बढ़ती कीमतों से देश का आम जन पहले से ही पूरी तरह पिसा हुआ है। ऊपर से घरेलू गैस सिलेंडर के दामों में बढ़ोत्तरी करना आम आदमी के लिए बहुत ही दुखदाई रहा। देश में आज पेट्रोल और डीज़ल एक सौ रुपए से अधिक प्रति लिटर की दर पर बिक रहे हैं। ऐसे में रसोई गैस की कीमत भी बढ़ाना बहुत बरा फैसला है। पिछले चौदह महीनों से लोगों को घरेलू गैस सिलेंडर की सब्सिडी मिलना भी बंद है। पेट्रोलियम पदार्थों के दामों में बढ़ोत्तरी के बाबत पिछले दिनों पेट्रोलियम एवं गैस मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने एक बयान भी दिया था कि कोरोना संकट के दौरान पेट्रोलियम पदार्थों के दामों को कम करना मुनासिब नहीं है। प्रधान का यह बयान उन मतदाताओं के साथ सरासर अन्याय है जिन्होंने भाजपा को गरीबों की हितैषी पार्टी मानकर लगातार दो बार भारी बहुमत से केंद्र में सरकार बनाने का समर्थन दिया था।
देश की जनता पिछले सवा साल से लगातार कोरोना संक्रमण को झेल रही है। इस दौरान अधिकांश समय देश में लाकडाउन लगने से लोगों को घरों में ही रहना पड़ा है। ऐसे में काम धंधे बंद होने से आम आदमी के रोज़गार के अवसर समाप्त होने से उनके आय के स्रोत बंद हो गए जिससे आम आदमी की कमर टूट चुकी है। दिनों दिन बढ़ती महंगाई और लगातार कम होते काम के अवसर ने देश की जनता की कमर तोड़ दी है। पेट्रोलियम पदार्थों के अलावा खाद्य पदार्थों की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हो रही है। खाने का तेल दुगुनी दर पर बिक रहा है।
कोरोना महामारी के दौरान केंद्र सरकार को पेट्रोलियम पदार्थों पर कस्टम एंड एक्साइज ड्यूटी से खूब कमाई हुई है। सरकार को अप्रत्यक्ष कर से आने वाला राजस्व बढ़कर 4.51 लाख करोड़ रुपए हो गया है। वित्तीय वर्ष 20-21 में पेट्रोलियम उत्पादों के आयात पर 37 हजार 806.96 करोड़ रुपए कस्टम ड्यूटी वसूली गई। वहीं देश में इनके उत्पाद पर सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी से 4.13 लाख करोड़ रुपए की कमाई हुई। 2019-20 में पेट्रोलियम पदार्थों के आयात पर सरकार को कस्टम ड्यूटी के रूप में 46 हजार करोड़ रुपए का राजस्व मिला था। वहीं देश में इनके उत्पाद पर सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी से 2.42 लाख करोड़ रुपए की वसूली हुई। अब अगर दोनों तरह की टैक्स वसूली को देखें तो सरकारी खजाने में 2019-20 में कुल 2.88 लाख करोड़ रुपए जमा हुए। महंगे पेट्रोल-डीज़ल से केवल आम आदमी ही नहीं बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था की हालत बिगड़ गई है जो पहले से ही कोरोना महामारी की मार झेल रही है। केन्द्र सरकार को तत्काल पेट्रोल-डीजल पर टैक्स घटाकर लोगों को महंगाई से राहत देनी चाहिए।
केन्द्र सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक कोरोना संक्रमण के बावजूद सरकार का कर संग्रहण लगातार बढ़ता जा रहा है। सरकार के नुमाइंदों का कहना है कि देश की जनता को कोरोना वैक्सीन के टीके मुफ्त में लगाए जा रहे हैं जिन पर होने वाले खर्च की भरपाई के लिए सरकार को टैक्स में बढ़ोत्तरी करनी पड़ रही है। मगर सरकारी सूत्रों के अनुसार देश के लोगों के टीकाकरण पर अधिकतम 4० हजार करोड़ रुपए खर्च होंगे जबकि सरकार ने कोरोना संक्रमण के बाद बढ़ाए गए टैक्स से कई लाख करोड़ रुपए का राजस्व संग्रहण किया है।
केन्द्र सरकार ने पहले 20 लाख करोड़ का तथा गत दिनाें सात लाख करोड़ रुपयों के राहत पैकेज की घोषणा की थी। मगर सरकार की इन घोषणाओं का भी आम आदमी को विशेष लाभ नहीं मिल पा रहा है। पैसों के अभाव में लोगों से बिजली के बिल जमा नहीं हो पा रहे हैं। जिन्होंने बैंकों से लोन ले रखा है उनकी किस्तों की भरपाई नहीं हो पा रही है। ऊपर से निजी स्कूल वाले भी बिना पढ़ाई बच्चों से जबरन फीस वसूल रहे हैं जो गरीबों पर सीधा कुठाराघात है।
कोरोना संक्र मण के दौरान बीमार हुए लोगों को उपचार पर बहुत अधिक पैसा खर्च करना पड़ा है जिसकी भरपाई का लोगों को कोई रास्ता नहीं दिख रहा है। लोग कर्ज में डूबे हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद कोरोना से मरने वाले लोगों को सरकारी स्तर पर कुछ मुआवजा मिलने की संभावनाएं बनी हैं। मगर अधिकांश लोगों के मृत्यु प्रमाण पत्र पर कोरोना से मौत होना दर्ज ही नहीं किया गया है। ऐसे में उन लोगों को मुआवजा मिलने की कोई संभावना नजर नहीं आ रही है। यदि केन्द्र सरकार चाहे तो अस्पतालों को निर्देशित कर सकती है कि कोरोना संक्र मण के दौरान जिनकी वास्तव में कोरोना से मौत हुई है, उनको कोरोना से मौत का प्रमाण मृत्यु पत्र दिया जाए ताकि उनको भी मुआवज़ा मिल सके।
देश में कोरोना की प्रथम लहर के दौरान सरकार ने रेल सेवा पूरी तरह से बंद कर दी थी। कई महीनों के बाद सरकार ने कुछ रेलगाड़ियां प्रारंभ की हैं जिनमें सफर करने के लिए लोगों को पहले से अधिक किराया चुकाना पड़ रहा है। केन्द्र सरकार वर्तमान में संचालित सभी रेलगाड़ियों को स्पेशल ट्रेन के रूप में चला रही है जिसका किराया सामान्य से काफी अधिक होता है। चूंकि रेलगाड़ियों में अमूमन आम आदमी यात्र करता है जो पहले ही कोरोना के कारण आर्थिक मार से परेशान है। ऐसी स्थिति में उससे रेल भाड़े के रूप में भी अधिक राशि वसूल करना केन्द्र सरकार का न्याय संगत फैसला नहीं है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा कहते हैं कि वह दिन-रात देश की जनता की उन्नति की बातें सोचते हैं, मगर न जाने वह मौजूदा स्थिति से क्यों अनजान बने हुए हैं। देश के आम आदमी, गरीब, मज़दूर, किसान वर्ग को ऐसा कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा है जिससे वह अपनी पहले जैसी ज़िंदगी बसर कर सके। गांवों में तो स्थिति और भी खराब हो रही है। कोरोना के कारण शहरों से पलायन कर अपने गांव आए हुए लोगों के सामने रोजी रोटी का संकट पैदा हो रहा है। चूंकि गांव से शहर वही लोग गए थे जिनके समक्ष गांव में रोज़ी-रोटी का संकट था। अब लाकडाउन में वो लोग फिर से अपने गांव आने को मजबूर हुए हैं जहां उनके पास रोज़गार का कोई साधन नहीं होने से वे बदतर जीवन जीने को मजबूर हो रहे हैं।
हालांकि केंद्र सरकार ने प्रति व्यक्ति पांच किलो गेहूं प्रतिमाह मुफ्त में देने की घोषणा की है मगर व्यक्ति को जिंदगी जीने के लिए गेहूं के साथ अन्य बहुत सी चीजों की जरूरत होती है जिनको खरीदने के लिए उसके पास पैसा नहीं है। केन्द्र सरकार को शीघ्र अति शीघ्र महंगाई को काबू में करने के उपाय करने चाहिएं। (अदिति)