सरकारों की बेरुखी के कारण छोटा किसान तबाही के कगार पर

सब्ज़ इन्कलाब के बाद कृषि विकास संबंधी सरकार द्वारा लाई गई योजनाओं से अधिक लाभ खुशहाल एवं बड़े किसानों ने उठाया है। छोटे किसान और कृषि श्रमिक बस थोड़ा सा लाभ ले सकते हैं। सब्ज़ इन्कलाब के बाद गत शताब्दी के दौरान पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किये गए एक सर्वेक्षण के अनुसार खुशहाल और बड़े किसानों की आय लुधियाना और गुरदासपुर जिलों में छोटे किसानों के मुकाबले औसतन 4 गुणा थी। प्रत्येक बड़े किसान के पास ट्रैक्टर और कृषि के लिए अपने औज़ार थे। लगभग 88 प्रतिशत खुशहाल किसानों ने अपनी कृषि मशीनरी खरीद ली थी। अब इनमें से कुछ किसानों ने अपनी ज़मीनों का रकबा भी बढ़ा लिया है। सीलिंग से बचने के लिए अधिक रकबे को वे लीज़ पर लिया हुआ दिखाते हैं या फिर अपने रिश्तेदारों और पारिवारिक सदस्यों के नाम इंदराज करवा देते हैं। इस तरह बहुत से किसान राज्य की औसत रकबे से बहुत ज़्यादा रकबे पर कृषि कर रहे हैं, जिसके बाद ज़्यादा रकबे पर काश्त उनके लिए अधिक आय का साधन बन जाती है। 
एक सर्वेक्षण के अनुसार कुछ खुशहाल और बड़े किसानों ने कई और व्यापार जैसे ट्रांसपोर्ट, उद्योग, राइस शैलर तथा आढ़त की दुकानें भी शुरू की हुईं हैं। लगभग सभी के पास पक्के और अच्छे घर हैं। विशेषकर लुधियाना और गुरदासपुर जिलों में जहां पर पी.ए.यू. द्वारा मुताअला किया गया था। हरित क्रांति के बाद बड़े और खुशहाल किसानों के रहन-सहन के स्तर में भी बड़ा सुधार आया है और अब उनके रहन-सहन का स्तर और मकान अच्छे हैं। सर्वेक्षण के अनुसार ज़रूरी वस्तुओं की कीमतें बढ़ने और महंगाई होने के उपरान्त छोटे और भूमिहीन किसानों की बचत करने की शक्ति गायब हो गई है। इनमें से अधिकतर ऋणि हैं। 
नई कृषि खोज, नये बीज और नया कृषि ज्ञान-विज्ञान छोटे किसानों के पास बहुत कम पहुंचता है और वह कृषि में आ रही नई क्रांति के भागीदार नहीं बन रहे। अपनी मजबूरियों के कारण पुराना व परम्परागत कृषि विज्ञान ही अधिकतर ने अपनाया हुआ है। सरकारी कृषि प्रसार सेवा और कृषि विशेषज्ञ उनके पास नहीं पहुंचते। कृषि और किसान कल्याण विभाग  तथा पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा अस्तित्व में लाई गईं नयी कृषि विधियां और नये कृषि अनुसंधान से लाभ लेने से वे पीछे रह गये हैं। आई.सी.ए.आर.-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली से सम्मानित और राज्य सरकार के साथ चावलों का सबसे अधिक उत्पादन लेने के तौर पर ‘कृषि करमन पुरस्कार’ विजेता राज्य पुरस्कारी प्रगतिशील किसान राजमोहन सिंह कालेका बिशनपुरा छन्ना कहते हैं कि पी.ए.यू. द्वारा अभी तक किसानों को गेहूं-धान के फसली चक्कर का उचित विकल्प नहीं दिया गया। क्या छोटा और क्या बड़ा प्रत्येक किसान ही इसी फसली-चक्कर को अपनाकर अपनी कृषि कर रहा है, क्योंकि 10 एकड़ वाले किसान को धान-गेहूं का फसली-चक्कर ट्यूबवैलों को बिजली की सुविधा मुफ्त होने के कारण अपना पारिवारिक खर्च चलाने के लिए आवश्यक साधन उपलब्ध करता है। 
संगरूर ज़िले के भवानीगढ़ का प्रगतिशील किसान गुरिन्द्रपाल सिंह कहता है कि छोटा और भूमिहीन किसान गेहूं-धान के फसली चक्कर को कैसे छोड़े, जबकि बड़े और खुशहाल किसान भी इस फसली चक्कर को छोड़ कर कोई अन्य ्रफसली चक्कर नहीं अपना रहे, क्योंकि वैकल्पिक फसली चक्कर उतने लाभदायक नहीं हैं। 
राजमोहन सिंह कालेका कहते हैं कि कृषि और किसान कल्याण विभाग तथा पी.ए.यू. द्वारा की जा रही कृषि प्रसार सेवा चंद बड़े और खुशहाल किसानों तक ही पहुंचती है। सामान्य और छोटा किसान उससे वंचित है। राजनीतिक  कारणों से भी छोटा किसान नया ज्ञान, विज्ञान अपनाने से वंचित रहा है। व्यापारिक बैंक और सहकारी सभाओं ने भी छोटे और भूमिहीन किसान को कज़र् देने से गुरेज किया है। गांव में स्थापित कृषि सेवा केन्द्रों पर भी उसे किराये पर कृषि मशीनरी समय पर उपलब्ध नहीं होती। उसे सरकार द्वारा चलाई गई योजनाओं की जानकारी भी नहीं। छोटे किसानों तक नई तकनीकें पहुंचाने के लिए और उन्हें जानकारी उपलब्ध करने के लिए निजी सम्पर्क आवश्यक है, जो कृषि और किसान कल्याण विभाग तथा पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी द्वारा की जा रही कृषि प्रसार सेवा नहीं कर रही, क्योंकि उनके पास इस स्तर पर पहुंचने के लिए कर्मचारी और योग्य साधन नहीं हैं।