कुश्ती के 65 किलो वर्ग में विश्व का नम्बर एक खिलाड़ी बजरंग पूनिया

हरियाणा के झज्जर जिले के एक छोटे से गांव खुदन में एक साधारण किसान परिवार में जन्मे भारतीय पहलवान बजरंग पूनिया को टोक्यो ओलम्पिक में पदक जीतने वाले भारतीय खिलाड़ियों में देखा जा रहा है। उसकी शानदार उपलब्धियों को ध्यान में रखते हुए भारतीय ओलम्पिक संघ द्वारा उसे टोक्यो ओलम्पिक के समापन समारोह में भारतीय दल का नेतृत्व करने का गौरव प्राप्त हुआ है। 26 फरवरी, 1994 को माता ओम प्यारी और पिता बलवान पूनिया के घर जन्में बजरंग पूनिया को पहलवानी करने का शौक अपने परिवार में ही पैदा हुआ। उसने सिर्फ 7 वर्ष की आयु में ही पहलवानी के दांव-पेच सीखने शुरू कर दिये। बजरंग को खाने में गुड़ का चूर्मा सबसे अधिक पसंद है। उसके पिता बलवान सिंह पूनिया भी पहलवानी करते थे और बजरंग के भाई हरिन्द्र पूनिया ने भी पहलवानी में अपने हाथ आज़माये परन्तु घर की हालत ठीक न होने के कारण सिर्फ बजरंग ही पहलवानी के क्षेत्र में आगे बढ़ सका। बजरंग के पिता की इच्छा थी कि उसके पुत्र पहलवानी में नाम रौशन करें और आखिर अपने पिता के इस  सपने को बजरंग पूनिया ने कड़ी मेहनत करते हुए पूरा कर दिखाया। आज यदि वह कुश्ती के 65 किलो भार वर्ग की रैंकिंग में विश्व का नम्बर एक खिलाड़ी है तो इसके पीछे उसकी कड़ी मेहनत छिपी हुई है। बजरंग पूनिया का पहलवानी का अब तक का सफर बहुत ही बेहतर रहा है। वह अब तक कामनवैल्थ चैम्पियनशिप में दो स्वर्ण पदक, वर्ल्ड अंडर-23 चैम्पियनशिप में रजत पदक, एशियन चैम्पियनशिप में दो स्वर्ण, तीन रजत और दो कांस्य पदक जीत चुका है। इसके अतिरिक्त कामनवैल्थ खेल 2014 में रजत और 2018 में स्वर्ण पदक प्राप्त कर चुका है। विश्व चैम्पियनशिप में एक रजत और दो कांस्य पदक भी बजरंग पूनिया भारत की झोली में डाल चुका है। बजरंग पूनिया को अब तक अर्जुन पुरस्कार, राजीव गांधी खेल रत्न अवार्ड और पद्मश्री अवार्ड मिल चुके हैं। टोक्यो ओलम्पिक में बजरंग पूनिया अपना पहला मैच 6 अगस्त को खेलेगा। देशवासियों को उससे बड़ी उम्मीदें हैं।