बारिश के पानी की हार्वैस्ंिटग की आवश्यकता

कृषि और किसान भलाई विभाग के अनुसार पंजाब में पानी का स्तर 60 से लेकर 250 सैं.मी. तक नीचे चला गया है। केन्द्रीय जिलों में हालात और भी चिन्ताजनक हैं, जहां प्रत्येक वर्ष भू-जल का स्तर कम हो रहा है। भू-जल की निकासी रिचार्ज से अधिक है। लगभग 70 फीसदी रकबे की सिंचाई ट्यूबवैलों से की जाती है। सिर्फ 29 से 30 प्रतिशत रकबा नहरी पानी से सींचा जाता है। कृषि के लिए पानी का सही इस्तेमाल बहुत ज़रूरी हो गया है। शहरी और ग्रामीण आबादी के लिए पेयजल की कमी भी होती जा रही है। इस जल संकट को रोकने के लिए बारिश के पानी का उपयोग करने हेतु हार्वैस्टिंग/रिचार्जिंग की आवश्यकता है। पानी जो बेकार  जाता है, उसे रोकने की भी आवश्यकता है।
पहले कृषि को पानी चश्मों से लगता था। फिर कुओं में से बैलों की मदद से निकाला जाना आरंभ हुआ। बिजली आने के बाद किसानों ने मोटरें लगा लीं। इस तरह फसलों की काश्त के लिए रकबा बढ़ने से पानी की आवश्यकता बढ़ती रही। भू-जल का स्तर और नीचे चला गया। जो मोटरें पटों से चलती थीं, किसानों ने पंखे से जोड़ कर चलानी शुरू कर दीं कुएं भी अधिक गहरे करने पड़े। पानी का स्तर और नीचे जाता रहा। किसानों ने मच्छी मोटरें लगा लीं और बिजली की मोटरों एवं ट्यूबवैलों पर कनेक्शन की पावर बढ़ानी शुरु कर दी, जो सबमर्सिबल पम्म लगने से लगातार बढ़ती जा रही है। 
सब्ज़ इन्कलाब के बाद धान-गेहूं का फसली चक्कर शुरू होने से कृषि क्षेत्र में पानी की ज़रूरत और बढ़ गई और भू-जल का इस्तेमाल बढ़ता गया। धान के लिए दूसरी फसलों के मुकाबले अधिक पानी की आवश्यकता थी। फसली विभिन्नता के पक्ष से किसान आलू की फसल के बाद बहार ऋतु की मक्की भी लगाने लग पड़े परन्तु इस फसल को पानी की ज़रूरत भी कोई कम नहीं थी। जो किसान गन्ना, सूरजमुखी जैसी फसले लगाते हैं, उन्हें भी पानी की अवश्यकता अधिक है। पानी की बढ़ रही ज़रूरत को पूरा करने के लिए और भू-जल का स्तर कम होने की समस्या के समाधान के लिए अन्य विधियों के अतिरिक्त वर्षा के पानी का रिचार्ज बहुत ज़रूरी है। 
बहुत-से पुराने कुएं बोर करके ट्यूबवैल लगाए जाने के बाद किसानों ने मिट्टी से बंद कर दिये हैं। इन कुओं में से मिट्टी निकाल कर पुन: बारिश के पानी का उपयोग किया जाना चाहिए। बटों पर धान लगा कर भी पानी की बचत होती है। खेत का पानी खेत में ही रिचार्ज होना चाहिए। पानी को खेत में से निकलने न दिया जाए। धान की सीधी बिजाई जो इस वर्ष 5 लाख हैक्टेयर से अधिक रकबे में की गई है, उससे भी कद्दू करके धान लगाने के मुकाबले पानी कम चाहिए। धान लगाने से पहले खेत को लेज़र कराहे से समतल किया जाए। जिसके बाद पानी की 15 से 25 प्रतिशत बचत होगी। 
संत बलबीर सिंह सीचेवाल ने छप्पड़ों के पानी को शोध कर खेतों में सिंचाई करने के योग्य बनाया है। पंजाब के छप्पड़ों के पानी को सीचेवाल माडल से ट्रीट करके प्रयोग में लाने की अवश्यकता है। चावल निर्यातक विजय सेतीया ने करनाल के निकट एक गांव में छप्पड़ को गहरा करके उसमें राख भर कर केले के पौधे लगा दिये। इस तरह पानी को शुद्ध भी किया और रिचार्जिंग भी हुई। ऐसे माडल भी चालू किये जाने चाहिए। बारिश के पानी की हार्वैस्ंिटग जल संकट को दूर करने के लिए एक प्रभावशाली तकनीक है। 
शहरी क्षेत्र में भी बारिश के पानी की हार्वैस्ंिटग की जानी चाहिए। शहरों में भी उपभोक्ता पानी बहुत बेकार बहाते हैं।    पुराने समय में पानी पीने के लिए मटकों में रखा जाता था, फिर नल लग गए, फिर बिजली की मोटरें लग गईं और अब सबमर्सिबल पम्प लग रहे हैं। इससे उपभोक्ताओं द्वारा पानी बेकार बहाया जा रहा है जिसे रोकने की आवश्यकता है। छतों पर विशेषकर धार्मिक स्थानों, स्कूलों, सामान्य इमारतों और मैरिज पैलिसों आदि स्थानों में यह तकनीक व्यापक स्तर पर अपनाई जा सकती है। शहरों में अधिकतर रकबा पक्का होने के कारण पानी रिचार्ज नहीं होता। बागों और वनों का रकबा बढ़ाने की आवश्यकता है। इससे भी पानी की बचत होगी। जून से लेकर सितम्बर तक बारिश होती है। इस दौरान भू-जल का कम इस्तेमाल किया जाए।