संसद को चलने नहीं देना लोकतंत्र का अपमान करने जैसा

विश्व में सबसे बड़े लोकतंत्र का गौरव रखने वाले देश भारत की संसद का मानसून सत्र-2021, निर्धारित समय से दो दिन पूर्व समाप्त कर लोकसभा को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया है। 19 जुलाई को शुरू होने से पूर्व माननीय प्रधानमंत्री व संसद के सभापतियों ने समस्त विपक्षी दलों के नेताओं की बैठक बुलाई थी जिसमें यह सुनिश्चित किया गया था कि मानसून सत्र ढंग से चलने दिया जाए। नोटिस इत्यादि दिए जो चुके थे। सभी कार्यक्र म बन चुके थे परन्तु पहले नोटिस दिए बिना 19 जुलाई की प्रात: काल इजराइल पैगासस जासूसी मामला उठा कर सम्पूर्ण विपक्ष ने सरकार पर बिना सबूत जासूसी का आरोप लगाते हुए हंगामा शुरू का दिया। संसद के दोनाें सदनों की कार्यवाही नहीं दी गई तथा विपक्ष के सदस्य मांग करने लगे कि पूर्व निर्धारित सभी काम रोक कर पहले पैगासस के मामले पर व कृषि कानूनों को रद्द करने पर विचार किया जाए। 
प्रधानमंत्री को परम्परा के अनुसार सदन को अपने नए मंत्रियों का परिचय कराना था, जो कि नहीं हो सका। संसद नहीं चलने दी गई व विपक्ष एक प्रकार से आंदोलनरत् हो गया तथा संसद की कार्यवाही भारी हंगामे के बीच कई बार स्थगित की गई। एक प्रकार से विपक्ष घमासान करने के मूड में आ गया। 3० जुलाई तक संसद का 85 प्रतिशत समय बर्बाद हो चुका था तथा मात्र 15 प्रतिशत समय का उपयोग करते हुए ही कार्य हुआ।
तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने तो संसदीय परम्परा की सीमा को ही लांघ दिया। ऐसा संसदीय इतिहास में कभी नहीं देखा गया। तृणमूल कांग्रेस के सांसद शांतनु सेन ने तो संसद में उत्तर दे रहे केन्द्रीय सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव के हाथों से कागजात छीन कर तथा फाड़ कर उपसभापति हरिवंश के आसन की ओर उछाल कर अशोभनीय कृत्य कर दिया जिसके लिए बाद में उन्हें सदन से निलम्बित कर दिया गया। सदन के उपसभापति हरिवंश ने अश्विनी वैष्णव को पैगासस मामले पर बयान देने की अनुमति दी थी। 
तृणमूल कांग्रेस के सांसद शांतनु सेन के इस अशोभनीय व्यवहार पर भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने कहा कि संसद की मर्यादा के खिलाफ काम करने का टीएमसी का पुराना इतिहास रहा है। शोर मचाना, कागज़ फाड़ना उनकी संस्कृति है। विपक्ष अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए लगातार संसद की कार्यवाही में अवरोध डाल कर देश की विकास यात्रा को रोकना चाहता है। यह लोकतंत्र का अपमान है। टीएमसी के सांसदों ने पैट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी से भी झड़प कर दी जिसको कुछ सांसदों ने बीच बचाव करके समाप्त करवा दिया। राज्य सभा संसद का उच्च सदन है जहां बहुत ही धीर व गम्भीर चर्चाएं होती हैं।
विपक्ष विरोध के नाम पर हंगामा करके अतिरिक्त दिलचस्पी दिखा रहा है। विपक्ष पैगासस जासूसी व कृषि कानूनों को लेकर आंदोलित है परन्तु इस समय विपक्ष सरकार का पक्ष सुनने से भी इन्कार कर सदन की गरिमा को ही गिराने पर आमादा है। देश की जनता को यह लग रहा है कि विपक्ष की दिलचस्पी सदन में सार्थक चर्चा और बहस में नहीं है। मात्र केवल हंगामा करने में ही है। तृण मूल कांग्रेस की ममता बनर्जी ने 2005 में लोकसभा की सदस्य रहते हुए बंग्लादेश घुसपैठियों को सरंक्षण दिए जाने का विरोध करते हुए लोकसभा अध्यक्ष के समक्ष जाकर उन पर कागज फाड़ कर फैंके थे।
संसद में सांसदों के सड़क छाप आचरण को कोई स्थान नहीं दिया जाना चाहिए। संसद में सार्थक बहस व चर्चाओं से सार्थक कानून बन पाते हैं। हैरानी की बात तो यह है कि किसी भी विपक्षी दल ने शांतनु सेन के अशोभनीय आचरण की आलोचना व निन्दा नहीं की। उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ ने कहा कि विपक्ष अंतर्राष्ट्रीय साज़िश का शिकार हो चुका है। उन्होंने अपने कार्यालय में बुलाए गए पत्रकारों के समक्ष कहा कि संसद सत्र शुरू होने के ठीक एक दिन पूर्व सनसनीखेज चीज़ों को परोस कर समाज में एक विषाक्त वातावरण बनाने का प्रयास किया जा रहा है। जब भी देश में कुछ महत्वपूर्ण होना होता है, विपक्ष देश और दुनिया में भारत के खिलाफ माहौल बनाने की कुत्सित कोशिश में लग जाता है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि को खराब करने और भारत को अस्थिर करने के जिन मंसूबों के साथ विपक्ष काम कर रहा है। वह अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण है।
 गत वर्ष जब अमरीका के राष्ट्रपति भारत यात्रा पर आए थे तो दिल्ली में भीषण दंगा इसी साज़िश के तहत किया गया था। वर्तमान में भारत में कोरोना प्रबंधन को सम्पूर्ण विश्व में सराहना मिल रही है। तब विपक्ष यही माहौल बनाने में व्यस्त है कि सरकार ठीक से काम नहीं कर रही है। संसद एक मंच है जनहित की बात रखने का, लेकिन अगर इसे शोरगुल व हंगामों का मंच बना लिया जाए तो यह लोकतंत्र का गला घोंटने जैसा है। 
जब संसद चलेगी ही नहीं तो सरकार अपना पक्ष किस प्रकार देश के सामने अर्थात संसद में रख पाएगी। केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र तोमर ने कहा कि अगर विपक्ष को किसानों की चिन्ता है तो सदन में कामकाज होने देना चाहिए। कृषि मंत्री नरेन्द्र तोमर ने कहा कि किसानों से जुड़े करीब 15 सवाल हैं। अगर विपक्षी सदस्यों को वास्तव में किसानों की चिन्ता है तो उन्हें सरकार की बात सुननी चाहिए। किसान आंदोलन शुरू होते ही सरकार किसानों से 11 बार बात कर चुकी है तथा आगे भी बात करने को तैयार है। किसान कृषि कानूनों पर आपत्तिजनक अंश तो बताएं। 
लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिरला भी विपक्ष के इस व्यवहार से नाखुश दिखे। वहीं राज्य सभा के अध्यक्ष वेंकैया नायडू भी कम नाराज नहीं हैं। ओम बिरला ने विपक्षी सांसदों से नारेबाजी की प्रतियोगिता से बाज आने को कहा जबकि वेकैंया नायडू ने सदस्यों को आत्म-निरीक्षण करने व संसद का कीमती समय बर्बाद नहीं करने की हिदायत दी।  लगता है कि अध्यक्षों की इन बातों का कोई प्रभाव विपक्षी दलों पर पड़ेगा क्योंकि उन्होंने और विपक्ष ने तो लगभग पक्का इरादा ही बना लिया था कि संसद को किसी भी हालत में चलने नहीं देना। (युवराज)