कृषि क्षेत्र की बड़ी उलझनें

खरीफ की फसल तैयार हो रही है। इस क्षेत्र में इसका अधिक आधार धान की फसल को ही माना जाता है क्योंकि पंजाब एवं हरियाणा में भारतीय खाद्य निगम की ओर से इसकी खरीद घोषित किये गये न्यूनतम समर्थन मूल्य पर की जाती है। विगत कुछ वर्षों से केन्द्र सरकार किसानों को सीधे अदायगी करने के रौअ में है। पुरानी चली आ रही परम्परा के अनुसार यह अदायगी आढ़तियों के माध्यम से की जाती थी। अब सीधे अदायगी की क्रिया आरम्भ होने से आढ़ती वर्ग का कार्य काफी कम हो गया है। उनकी आय का बड़ा साधन भी उन्हें फसल में से मिलने वाली कमीशन थी। किसान के साथ भी आढ़ती का पुराना रिश्ता था। वह फसल की बुआई से लेकर अपने अन्य सामाजिक कामकाज आढ़ती से ली गई राशि के साथ कर लेता था तथा फसल की बिक्री के समय यह हिसाब-किताब साफ कर लिया जाता था। अब किसानों को बैंक के माध्यम से सीधे अदायगी मिलने से आढ़तियों ने अपने हाथ खींचने शुरू कर दिये हैं। इससे समय-समय पर ज़रूरतमंद किसानों के लिए कठिनाइयां एवं समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। 
इसके साथ ही केन्द्र सरकार की ओर से फसलों की खरीद के लिए किसानों से ज़मीन की मालकी के दस्तावेज़ मांगने से भी मौजूदा व्यवस्था के लिए भारी कठिनाइयां खड़ी हो गई हैं। इसका एक कारण यह भी है कि पंजाब एवं हरियाणा में गेहूं और धान की समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद होने के कारण पंजाब एवं हरियाणा में अन्य बाहरी प्रांतों से गेहूं अथवा धान व्यापारियों की मिलीभुगत से इन राज्यों की मंडियों में लाया जाता है क्योंकि बहुत-से अन्य राज्यों में न्यूनतम समर्थन मूल्य की कोई व्यवस्था नहीं है। केन्द्र सरकार यह समझती है कि नये तरीके से इन राज्यों के बाहर से आने वाली फसल की कालाबाज़ारी नहीं हो सकेगी परन्तु पंजाब जैसे प्रांत की विशेष स्थितियों के कारण इस व्यवस्था को लागू करने से नई उलझनें पैदा हो गई हैं क्योंकि यहां आधी से भी अधिक भूमि की कृषि  काश्तकार की ओर से ज़मीन ठेके पर लेकर की जाती है। एक अनुमान के अनुसार पंजाब में लगभग 11 लाख जोत हैं परन्तु इसका अभिप्राय यह नहीं कि भूमि के मालिकों की संख्या भी इतनी ही होगी। एक अनुमान के अनुसार 16 लाख ज़मीनी मलकीयतें हैं परन्तु इनके काश्तकार लगभग साढ़े 9 लाख हैं। यह मामला भी उलझन भरा बना हुआ है कि यदि ज़मीन के मालिकों को सीधे अदायगी बैंकों के माध्यम से की जानी है तो इससे मूल काश्तकार को अदायगी किस प्रकार होगी क्योंकि ज़मीन के अधिकतर मालिक गिरदावरी के समय काश्तकार के हिस्से में अपना नाम भरवाते हैं ताकि कोई काश्तकार गिरदावरियों के आधार पर ज़मीन पर कब्ज़ा न कर ले। विगत रबी के मौसम में फसल की खरीद की सीधी अदायगी के लिए केन्द्र ने राज्य सरकार पर किसानों की ज़मीनों का रिकार्ड पोर्टल पर डालने के आदेश दिये थे परन्तु प्रदेश सरकार की ओर से इस हेतु खरीफ की फसल तक की छूट मांगी गई थी तथा यह आश्वासन दिलाया गया था कि प्रदेश सरकार निश्चित तौर पर किसानों की ज़मीन का रिकार्ड पोर्टल पर अपलोड कर देगी। आगामी मास धान की खरीद संबंधी इसे लेकर भारी विवाद उत्पन्न होने की आशंका प्रकट की जा रही है। यह भी एक कारण है कि इससे ठेके पर ज़मीन देने की पूरी व्यवस्था लड़खड़ाते हुये दिखाई दे रही है। इसीलिए ज़मीन के ठेके के भाव अधिक स्थानों पर तथा बड़ी सीमा तक कम हो गये हैं। ऐसी स्थिति से प्रदेश की पूरी कृषि एवं ज़मीनी व्यवस्था लड़खड़ा गई प्रतीत होती है।
इसके साथ-साथ बड़ी समस्या पराली जलाने की है। विगत एक दशक से केन्द्र एवं प्रदेश सरकारें इस समस्या को हल करने के लिए यत्न कर रही हैं परन्तु अब तक वे इसमें किसी भी भांति सफल नहीं हो सकीं। केन्द्र सरकार से उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2018 में पंजाब को पराली के प्रबन्धन के लिए दी गई योजनाओं हेतु 270 करोड़ रुपये, 2019 में 273 करोड़ रुपये तथा अब 2020-21 में 272.50 करोड़ रुपये जारी किये गये हैं। अब तक कुल राशि 1050 करोड़ रुपये पराली के प्रबन्धन हेतु दी गई है। पंजाब सरकार के आंकड़ों के अनुसार पराली के प्रबन्धन हेतु 75 हज़ार मशीनें खरीदी गईं तथा इस वर्ष 25 हज़ार और मशीनें खरीदी जाएंगी। इसके लिए प्रत्येक प्रकार की सबसिडी भी दी जाती है। एक अनुमान के अनुसार पंजाब में हर बार 200 लाख टन धान की पराली उत्पन्न होती है जिसमें से अब भी 80 प्रतिशत को जलाया ही जाता है। उत्पन्न हुये ऐसे गम्भीर मामलों के प्रति प्रत्येक स्तर पर बड़ी योजनाबंदी किये जाने की आवश्यकता है ताकि प्रदेश की कृषि व्यवस्था को पुन: पथ पर डाला जा सके।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द