अभी भी ज़रूरत है कानून के शासन की

कुछ सप्ताह पूर्व भारत के विख्यात कानूनविद न्यायमूर्ति पी.डी. देसाई स्मृति ट्रस्ट द्वारा आयोजित ‘कानून का शासन’ विषय पर बोलते हुए भारत के सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख न्यायाधीश श्री रमन्ना ने जो कुछ कहा, वास्तव में उसमें देश के विशेषकर मध्यम वर्ग और निम्न मध्यमवर्ग के हृदय की पुकार थी, क्योंकि यही लोग कानून की चक्की में ज्यादा पिसते हैं और पुलिस की यातनाओं का शिकार भी होते हैं। पुलिस स्टेशनों में मानवाधिकारों का बुरी तरह हनन किया जाता है और अनेक बार समाज के वरिष्ठ लोग भी पुलिस की ज्यादतियों का शिकार हो जाते हैं। उन्हें अपमान और पीड़ा सहनी पड़ती है। कई बार झूठे केसों में भी लोग फंसा दिए जाते हैं। यह ऐसा कटु सत्य है जिससे देश का कोई भी प्रांत, कोई भी जिला यहां तक कि कोई भी गांव नहीं बचा। माननीय न्यायाधीश ने एक अन्य अवसर पर यह भी कहा कि हमारी संसद के कानूनों में स्पष्टता नहीं रही। हम नहीं जानते कि ये कानून किस उद्देश्य से बनाए गए हैं। यह जनता के लिए हानिकारक हैं या लाभदायक। ऐसा इसलिए है कि क्योंकि वकील और बुद्धिजीवी सदनों में नहीं। आज संसद में कार्यवाही के दौरान उचित बहस या चर्चा नहीं होती। जस्टिस रमन्ना ने आज की संसद की तुलना पहले के समय की संसद से की है, जब संसद कक्ष वकीलों से भरा हुआ रहता था। स्पष्टत: उनका संकेत राज्यसभा में राजनीतिक सौदेबाजी के लिए उन लोगों को सदस्यता देने की ओर है जो देश के बुद्धिजीवी नहीं, अपितु सत्ताजीवी लोग हैं और लोकसभा में भी बहुत से ऐसे बाहुबली पहुंच जाते हैं जिनको कानून और संविधान की जानकारी नहीं होती। केवल धन बल बाहुबल से वोट लेकर वे सांसद बन जाते हैं, पर न कानून की व्याख्या कभी करते और समझते हैं, न ही जनता को उचित प्रतिनिधित्व दे पाते हैं।॒
संसद में संख्या बल बढ़ाने के लिए किसी भी राजनीतिक व्यक्ति को लगभग सभी राजनीतिक पार्टियों, उसकी चुनाव जीतने की क्षमता के कारण टिकट दे देती हैं। ऐसे व्यक्तियों का धन-बल भी चुनावी टिकट पाने में बहुत सहायता करता है। वैसे भी आज सभी राजनीतिक पार्टियां संसद में ऐसे लोगों को चाहती हैं जो उनके संकेत पर समर्थन या विरोध में हाथ खड़ा कर दें। कौन सा कानून क्यों पास किया जाता है, इसकी जानकारी उन्हें हो या न हो। ऐसे लोग ही सत्तापति राजनीतिक दलों को मनमानी करने में सहायक होते हैं और नि:संदेह वे भी सांसद बनकर जनहित नहीं, अपितु अपना हित करने में मनमानी करने में स्वतंत्र हो जाते हैं। 
राज्यसभा का मनोनयन भी पिछले दो दशकों से योग्यता, ज्ञान, समाज या राष्ट्र सेवा की कसौटी पर नहीं किया जाता, अपितु वोटों की मार्केट में जो सहायक हो सकते हैं ऐसे बहुत से लोगों को उच्च सदन का सदस्य बना दिया जाता है। जस्टिस रमन्ना ने हिंदुस्तान के आम आदमी का दर्द महसूस किया है। नेशनल लीगल सर्विस अथारिटी के विजन और मिशन ऐप और डाक्यूमेंट की शुरुआत करते हुए उन्होंने कहा कि मानव अधिकारों का सबसे ज्यादा हनन पुलिस स्टेशनों में ही होता है। हमारे यहां आरोपी के मानव अधिकारों की सुरक्षा के लिए कानून है। इसके बाद भी हिरासत में उत्पीड़न और मौत के मामले सामने आते रहते हैं। उन्होंने इस बात पर दुख व्यक्त किया कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति को पुलिस थाने में तुरंत कानूनी मदद नहीं मिल पाती।  
कार्यक्रम में मुख्य न्यायाधीश श्री रमन्ना ने यह भी कहा कि कई रिपोर्टों से पता चलता है कि विशेष अधिकार प्राप्त लोगों पर भी थर्ड डिग्री का इस्तेमाल किया जाता है। पुलिस की ज़्यादतियों को रोकने के लिए लोगों को संवैधानिक अधिकारों और मुफ्त कानूनी सहायता के बारे में बताना ज़रूरी है। श्री रमन्ना ने इस दिन जो ऐप जारी किया उसके द्वारा लोगों को मुफ्त कानूनी सहायता दी जाएगी। जो पीड़ा हिंदुस्तान के हर आम और खास नागरिक को है उसी को श्री रमन्ना ने अभिव्यक्त किया। उनका यह कहना है कि हम ऐसा समाज चाहते हैं जहां कानून का शासन बना रहे। इसके लिए ज़रूरी है कि समाज के उच्च वर्ग और गरीब वर्ग के लिए न्याय के अवसर एक समान हों। यह नहीं भूलना चाहिए कि सामाजिक और आर्थिक रूप से अलग होने के कारण किसी को भी उसके अधिकारों से वंचित नहीं रखा जा सकता। एक विशेष महत्व की बात कहते हुए जस्टिस रमन्ना ने यह स्पष्ट कर दिया कि अतीत से कभी भविष्य तय नहीं किया जाना चाहिए और ऐसे भविष्य का स्वप्न देखना चाहिए जहां समानता हो और सभी के अधिकारों की रक्षा हो सके। इसलिए ‘न्याय तक पहुंच’ नाम से मिशन चलाया जा रहा है, जो सतत चलेगा।
माननीय जस्टिस रमन्ना से एक निवेदन है कि वे सभी प्रांतों की सरकारों और केंद्र सरकार से एक बार यह जानकारी लें कि पिछले पच्चीस वर्षों में पुलिस हिरासत में कितने लोगों की मौत हुई और जेलों में कितने लोग हिरासत में मारे गए। बहुत अच्छा हो वे सरकार से यह भी पूछें कि कितने ऐसे लोग हैं जो वर्षों से जेलों में बंद हैं, जिन पर आज तक मुकद्दमा नहीं चला, उनके लिए सज़ा घोषित नहीं हुई, पर वे उस सज़ा से कहीं अधिक जेल यातना भोग चुके हैं जितनी उस अपराध के लिए दी जाती, जिसके वे आरोपी हैं। जस्टिस रमन्ना से एक और अनुरोध है कि जब वे सबके समान अधिकार की बात करते हैं तो वह यह भी देखें कि कुछ लोग लाखों रुपये वकीलों को देकर सुप्रीम कोर्ट तक न्याय पाने के लिए पहुंचते हैं और अधिकतर उनकी भाषा में उन्हें न्याय मिल जाता है, पर उनका क्या करेंगे जो जिला अदालत तक जाने के लिए भी साधन नहीं जुटा पाते। मुफ्त कानूनी सहायता सुनने में जितना अच्छा लगता है वास्तव में नहीं है। 
मुफ्त कानूनी सहायता देने के लिए जो ढांचा बनाया गया है, वह लगभग नाममात्र का है। अधिकतर उन अधिवक्ताओं को समय पर याद करवाना पड़ता है कि आज किस आरोपी या अपराधी के लिए अदालत में पैरवी करनी है। एक महत्वपूर्ण कार्य जिसे बार बार कहने के बाद भी सरकारें नहीं कर पाईं, जस्टिस रमन्ना यह अवश्य बता दें कि यह थर्ड डिग्री क्या है और पुलिस के एक कर्मचारी को आरोपियों पर अत्याचार करने की कानूनी शक्ति किसने दी है? सच्चाई यह भी है कि पुलिस आज राजनेताओं के हाथ का उपकरण मात्र बनकर रह गई है। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने बहुत सत्य कहा है कि पुलिस को दोधारी तलवार पर चलना पड़ता है। इसका सीधा अर्थ यही है कि पुलिस पुलिस नहीं, अपितु राजनेताओं की इच्छा से घूमने वाला यंत्र है। भारत की सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जी से निवेदन है कि उन्होंने जनता का दर्द तो महसूस किया, इस दर्द की दवा भी अपने  कार्यकाल में दे दें।