फसली विभिन्नता में बासमती का महत्व 


बासमती की फसली विभिन्नता में अहम भूमिका है। यह चावलों की खास किस्म है, जिससे खपतकार को खुशबू, पकने के बाद लम्बे, पतले चावल और अच्छा स्वाद प्राप्त होता है। पंजाब की बासमती में यह गुण तो हैं ही क्योंकि पंजाब की भूगौलिक स्थिति इसके अनुकूल है और पंजाब की बासमती को जी-आई टैग हासिल है। पंजाब की बासमती निर्यात की जाती है और विदेशी मुद्रा आती है। गत वर्ष 46.32 लाख टन बासमती भारत से निर्यात की गई जिससे 29850 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा प्राप्त हुई थी। सन् 2019-20 में 44.55 लाख टन बासमती 31000 करोड़ रुपये की निर्यात की गई थी। सन् 2018 के दौरान 44.14 लाख टन बासमती का निर्यात हुआ था जिससे 33000 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा आई थी। इसी प्रकार सन् 2016-17 में 39.9 लाख टन बासमती चावल विदेशों को भेजे गये।  आल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष और निर्यातक विजय सेतिया के अनुसार इस वर्ष गत तीन माह के दौरान कोरोना के कारण लगभग 15 प्रतिशत बासमती चावल का निर्यात कम हुआ है, परन्तु विदेशों में बासमती की मांग अवश्य बढ़ रही है और घरेलू खपत में भी वृद्धि हो रही है। इसलिए बासमती का निर्यात बढ़ने की काफी संभावना है। 
आई.सी.ए.आर. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक और बासमती के प्रसिद्ध ब्रीडर डा. अशोक कुमार सिंह कहते हैं कि पूसा बासमती-1509 किस्म जो पकने को 115-120 दिन लेती है तथा सही समय जुलाई में लगाते हुए कई बार मॉनसून अच्छा होने के कारण बारिश के पानी से ही पक जाती है। यह किस्म भारत में लगभग 6 लाख हैक्टेयर रकबे में काश्त की जाती है। बासमती के निर्यात में पंजाब का मुख्य योगदान है। आजकल किसानों को हरियाणा की करनाल आदि मंडियों पूसा बासमती-1509 की 2800 रुपये प्रति क्ंिवटल तक की कीमत मिल रही है। अमृतसर में यह 2900 रुपये प्रति क्ंिवटल तक भी बिक रही है। जिन किसानों ने अगेती फसल लगाई है, वे अपनी फसल लाकर बेच रहे हैं और उत्तर प्रदेश से भी इस किस्म की फसल आकर हरियाणा की मंडियों में बिक रही है क्योंकि उत्तर प्रदेश में बासमती या धान लगाने पर पंजाब की तरह सरकार द्वारा कोई तिथि निर्धारित नहीं की गई। वहां के किसान इसे अगेती लगा लेते हैं। पूसा बासमती-1509 किस्म बहु-फसली चक्र के लिए भी अनुकूल है। इसके बाद किसान आलुओं और मटर की फसल लेकर गेहूं की काश्त करते हैं। वह औसतन 20 क्ंिवटल प्रति एकड़ का उत्पादन प्राप्त कर लेते हैं। चाहे प्रगतिशील किसान इस किस्म से 25 क्ंिवटल से अधिक उत्पादकता भी प्राप्त कर रहे हैं। ईरान भारत की बासमती चावलों का सबसे बड़ा खरीददार है। 
कृषि और किसान भलाई विभाग के अनुसार पंजाब में धान की काश्त 30.66 लाख हैक्टेयर रकबे पर की गई है। संयुक्त निदेशक डा. बलदेव सिंह के अनुसार 4.85 लाख हैक्टेयर रकबे में बासमती की काश्त हुई है। सन् 1920 में बासमती की काश्त के अधीन अधिक रकबा था। सन् 2017-18 में 5.10 लाख हैक्टेयर रकबा बासमती की काश्त अधीन था। चाहे विशेषज्ञों के अनुसार बासमती की काश्त पंजाब में 8 लाख हैक्टेयर रकबे पर किये जाने का संभावना है। किसान परम्परागत बासमती किस्मों जैसे बासमती-370 की काश्त की ओर अधिक रुझान दिखा रहे हैं। पूर्व अध्यक्ष सेतिया कहते हैं कि पूसा बासमती-1718 जो पूसा बासमती-1121 का विकल्प माना जाता है, की काश्त के अधीन भी रकबा बढ़ रहा है। बासमती की काश्त के अधीन रकबा न बढ़ने का कारण इसका न्यूनतम समर्थम मूल्य का नहीं होना है। न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग किसानों द्वारा लम्बे समय से की जा रही है परन्तु भारत सरकार कोई उत्साह नहीं दिखा रही। दूसरा बासमती किस्मों पर ‘बकाने’ की बीमारी आने के कारण भी इसके अधीन रकबा बढ़ नहीं रहा। बकाने (झंडा रोग) की बीमारी की रोकथाम संबंधी विशेषज्ञों का कहना है कि यदि किसान बीज और पौध लगाने से पहले शोध लें तो इस बीमारी का प्रभाव कम हो सकता है। बासमती की बिजाई से पहले बीज को बाविस्टन-50 डब्ल्यू पी 0.2 प्रतिशत (20 ग्राम)+स्ट्रैपटोसाइक्लीन 0.1 प्रतिशत (10 ग्राम) 10 लिटर पानी में या प्रोवैक्स 200 एफ.एफ. के पानी के घोल में 12 घंटे के लिए डुबो कर रखना चाहिए। 
पौध खेत में लगाने से पहले जड़ों को भी बाविस्टन डब्ल्यू पी 0.2 प्रतिशत या प्रोवैस्स 200 एफ.एफ. के घोल में 6 घंटे डुबो कर फिर खेत में लगाना चाहिए। किसान आम तौर पर बीज का संशोधन तो कर लेते हैं परन्तु जड़ों का नहीं करते। परिणामस्वरूप उनके खेतों में झंडा रोग आता है।