गेहूं की समय पर बिजाई के लिए उचित प्रबंध

गेहूं पंजाब की मुख्य फसल है, जो 35-36 लाख हैक्टेयर रकबे पर काश्त की जाती है। पंजाब सरकार ने इस वर्ष 34.90 लाख हैक्टेयर रकबे पर गेहूं की काश्त करने का लक्ष्य रखा है। कृषि और किसान भलाई विभाग के संयुक्त निदेशक बलदेव सिंह के अनुसार गत वर्ष 35.26 लाख हैक्टेयर रकबे पर गेहूं की बिजाई हुई थी, जिससे 171.43 लाख टन उत्पादन हुआ। उत्पादकता 48.62 प्रति क्ंिवटल हैक्टेयर रही, जो गत वर्षों से कम थी। वर्ष 2019-20 में 50.08 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर उत्पादन प्राप्त हुआ था और कुल उत्पादन 175.68 लाख टन था। वर्ष 2018-19 में 182.62 लाख टन का रिकार्ड उत्पादन हुआ था। पंजाब केन्द्रीय पूल में सभी राज्यों से अधिक योगदान डालता है। 
गेहूं की बिजाई शुरू होने में एक माह से भी अधिक समय पड़ा है। वैसे तो गेहूं की समय पर बोई जाने वाली सामान्य किस्मों की बिजाई हेतु अनुकूल समय नवम्बर का पहला पखवाड़ा है परन्तु कई किस्में जैसे एचडी-3226, डीबीडब्ल्यू 187, उन्नत पीबी डब्ल्यू 343 आदि किस्मों की अक्तूबर के चौथे सप्ताह बिजाई आरंभ करने की सिफारिश की गई है। बीज का प्रति हैक्टेयर उत्पादन बढ़ाने में बड़ी भूमिका है। किसान योग्य किस्म के शुद्ध बीजों की अभी से तलाश में लगे हुए हैं। गत वर्षों में तो वे किसान मेले में जाकर एक-दूसरे के अनुभव साझा कर लेते थे और वैज्ञानिकों की सलाह ले लेते थे और अपनी ज़रूरत के अनुसार गेहूं की किस्म का चयन करके मेलों में ही बीज खरीद लेते थे परन्तु इस वर्ष पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी और पंजाब यंग फार्मर्स एसोसिएशन द्वारा मेले नहीं लगाए जा रहे, जो लगाए जो रहे हैं, वे वर्चुअल हैं। 
पंजाब यंग फार्मर्स एसोसिएशन, रखड़ा द्वारा इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीच्यूट-कौलैबोरेटिव आऊटस्टेशन रिसर्च सैंटर रखड़ा और 23-24 सितम्बर को आईसीएआर संस्थानों द्वारा विकसित और सर्व-भारतीय फसलों की किस्मों को नोटिफाई करने वाली कमेटी द्वारा प्रमाणित एचडी-3086, एचडी-3226, डीबीडब्ल्यू-222, डीबीडब्ल्यू-187, एचआई-1620 और एचआई-1628 आदि किस्मों के बीज सदस्य किसानों में वितरित किये जाएंगे। फसलों का अच्छा प्रबंधन जैसे समय पर बिजाई, बीज की मात्रा, समय पर रासायनिक खादों का डालना, सिंचाई करना और नदीनों का उचित समय पर नाश करना आदि भी उत्पादन बढ़ाते हैं। 
उत्पादकता बढ़ाने के लिए कमियाई खादों की भी बड़ी भूमिका है। विभिन्न किस्म की खादों का सही इस्तेमाल करना चाहिए। रूढ़ी की खाद तो अब उपलब्ध ही नहीं और शायद ही कोई किसान डालता हो। आम किसान यूरिया ही डालते हैं। सामान्य ज़मीनों में यूरिया 110 किलो प्रति एकड़, डीएपी 55 किलो या सुपरफास्फेट 155 किलो डालने की पीएयू पैकेज आफ प्रैक्टिसिज़ में सिफारिश की गई है। 
खरीफ की फसलों के मुकाबले गेहूं की फसल फासफोरस खाद अधिक मांगती है। आधी नाइट्रोजन और पूरी फासफोरस तथा पोटाश बिजाई करते समय डाल देनी चाहिए और शेष आधी नाइट्रोजन पहले तथा दूसरे पानी के साथ डाले जाने की सिफारिश है। अधिक उत्पादन लेने हेतु नदीनों की रोकथाम भी बहुच ज़रूरी है। कई स्थानों पर गुल्ली डंडा 50 प्रतिशत तक उत्पादन को कम करने का कारण बनता है। गुल्ली डंडे  को मारने के लिए अब पुराने आईसप्रोट्यूरान आधारित नदीन नाशक काम नहीं करते। किसानों द्वारा किये गए तजुर्बों और आज़माइशों के आधार पर किसानों का बहुमत ‘टोटल’ और ‘झटका’ जैसे नदीन नाशक इस्तेमाल करता है। जहां ये नदीन नाशक काम नहीं करते, वहां ‘शगन’ जैसा कोई नया नदीन नाशक चुन लेना चाहिए। नदीन नाशकों का चयन किसानों को अपने अनुभवों के आधार पर तथा वैज्ञानिकों की सलाह लेकर करना चाहिए। गेहूं का उत्पादन लेने के लिए सिंचाई की उचित व्यवस्था भी आवश्यक है। गेहूं को 4-6 सिंचाईयां आवश्यक हैं। आम फसल पर पहली सिंचाई बिजाई के 21-28 दिन के मध्य कर देना चाहिए। दूसरी 45 दिन, तीसरी 65 दिन, चौथी 85 दिन, पांचवीं 105 दिन और छठी (यदि ज़रूरत हो तो) 120 दिन के बाद कर देनी चाहिए।